
जैसलमेर के मेघा गांव में मिला जीवाश्म डायनासोर का नहीं बल्कि, फाइटोसॉर (Phytosaur) का है. यह भारत के लिए बेहद रोमांचक खोज है. क्योंकि, देश में पहली बार किसी फाइटोसॉर का इतनी अच्छी तरह संरक्षित जीवाश्म मिला है. 2023 में बिहार-मध्यप्रदेश की सीमा पर फाइटोसॉर की एक किस्म का जीवाश्म मिला था, लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि जैसलमेर का यह जीवाश्म भारत में पहला पक्का और संरक्षित फाइटोसॉर जीवाश्म है, जो यह दर्शाता है कि करोड़ों वर्ष पहले थार मरुस्थल का यह क्षेत्र जलीय जीवन से भरपूर रहा होगा.
जीवाश्म अंडे के साथ मिला
लगभग डेढ़ से दो मीटर लंबा यह जीवाश्म पास में मिले एक जीवाश्म अंडे के साथ मिला है, जिससे यह अनुमान लगाया जा रहा है कि यह अंडा भी उसी सरीसृप का हो सकता है. मौके पर गए वैज्ञानिकों का कहना था कि ऐसा लग रहा था कि ये फाइटोसॉर अण्डे को अपने बगल में दबाकर बैठा है.

जैसलमेर देश में सबसे बड़ा जीवाश्म स्थल
एनडीटीवी से बात करते हुए भू-वैज्ञानिक डॉ. नारायण दास इनाखिया ने बताया, “इस फाइटोसॉर की खोज के साथ जैसलमेर अब देश में सबसे बड़े और व्यापक जीवाश्म स्थलों में शामिल हो गया है. 180 मिलियन वर्ष पहले यह क्षेत्र जुरासिक युग का हिस्सा था, जहां डायनासोर फलते-फूलते थे. जैसलमेर का पश्चिमी इलाका जिसे ‘लाठी फॉर्मेशन' कहा जाता है, करीब 100 किलोमीटर लंबा और 40 किलोमीटर चौड़ा है. यहां की चट्टानें मीठे पानी, समुद्री जीवन और जलीय वातावरण का प्रमाण देती हैं. यही कारण है कि यहां फाइटोसॉर मिला है, क्योंकि उस समय यहां एक तरफ नदी और दूसरी तरफ समुद्र रहा होगा. ”
जैसलमेर में इससे पहले भी कई महत्वपूर्ण खोजें हुई हैं
- थियाट गांव में हड्डियों के जीवाश्म मिले थे.
- उसके बाद डायनासोर के पैरों के निशान (फुटप्रिंट) मिले.
- 2023 में डायनासोर का अंडा अच्छी स्थिति में मिला.
जैसलमेर को भारत का जुरासिक पार्क' कहा जा सकता है
यह खोज जैसलमेर की पांचवीं जीवाश्म खोज है, जिससे इसे सही मायनों में 'भारत का जुरासिक पार्क' कहा जा सकता है. डॉ. इनाखिया ने आगे कहा, “जैसलमेर में जियो-टूरिज़्म की अपार संभावनाएं हैं. यहां पर जड़ (रूट) जीवाश्म, समुद्री जीवाश्म और डायनासोर जीवाश्म हैं, जिन्हें सुरक्षित और संरक्षित कर वैज्ञानिक अध्ययन के लिए इस्तेमाल किया जाना चाहिए. इसके अलावा तानोट क्षेत्र में पाई जाने वाली भूमिगत सरस्वती नदी की धाराएं भी भूगर्भीय दृष्टि से बहुत रोचक हैं. ये 5-6 हजार साल पुरानी वेदकालीन हैं, जबकि जैसलमेर के जीवाश्म 180 मिलियन साल पुराने हैं. ”

पुराने तलाब की सफाई के दौरान मिला जीवाश्म
यह जीवाश्म मेघा गांव के प्राचीन तालाब के पास मिला, जब स्थानीय लोग तालाब की सफाई कर रहे थे. गांव वालों ने तस्वीरें खींचकर जिला प्रशासन और पुरातत्व विभाग को सूचना दी. इसके बाद डॉ. नारायण दास इनाखिया की अगुवाई में भूवैज्ञानिकों की टीम मौके पर पहुंची. फिर जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर के पृथ्वी विज्ञान विभाग के डीन और वरिष्ठ जीवाश्म वैज्ञानिक प्रो. वी. एस. परिहार ने जीवाश्म का निरीक्षण कर इसे फाइटोसॉर बताया.
मगरमच्छ जैसा दिखता था फाइटोसॉर
फाइटोसॉर मगरमच्छ जैसा दिखता था, और यह जीवाश्म करीब 200 मिलियन वर्ष पुराना है. यह मध्यम आकार का फाइटोसॉर था, जो संभवतः नदी किनारे रहता था और मछलियों को खाकर जीवित रहता था. फाइटोसॉर 229 मिलियन वर्ष पुराने भी हो सकते हैं और यह प्रारंभिक जुरासिक काल से भी संबंधित हो सकता है. मेघा गांव की यह खोज दुर्लभ और वैज्ञानिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण मानी जा रही है.
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