Fake Degree Racket in Rajasthan: राजस्थान में पैसे लेकर फर्जी डिग्री देने के मामले में पुलिस की विशेष टीम SOG ने शुक्रवार को बड़ी कार्रवाई की है. SOG की टीम ने दो प्राइवेट यूनिवर्सिटी के संस्थापक, संचालक और रजिस्ट्रार को गिरफ्तार किया है. इन तीनों की गिरफ्तारी के बाद एसओजी ने बताया कि ये सब 50 हजार से एक लाख रुपए तक लेकर लोगों को फर्जी डिग्री दिया करते थे. जिसकी बदौलत कई लोग राजस्थान के अलग-अलग सरकारी विभागों में नौकरी पर भी लगे. एसओजी की टीम अब गिरफ्तार तीनों आरोपियों से पूछताछ कर नौकरी में आए लोगों तक पहुंचने की जुगत में लगी है.
दरअसल SOG ने फर्जी डिग्री बांटने के आरोप में चूरू के राजगढ़ में स्थित OPJS यूनिवर्सिटी के संस्थापक जोगेंद्र सिंह, OPJS यूनिवर्सिटी की रजिस्ट्रार रही सरिता कड़वासड़ा और सनराइज यूनिवर्सिटी के संचालक जितेंद्र यादव को गिरफ्तार किया है. इन तीनों पर बड़ी संख्या में फर्जी डिग्री जारी करने का आरोप है.
18 शिक्षकों के भरोसे 18 कोर्स चलाती थी OPJS यूनिवर्सिटी
एसओजी के डीआईजी परिस देशमुख ने बताया कि फर्जी डिग्री जारी करने के आरोप में इन लोगों को गिरफ्तार गया है. डीआईजी ने बताया कि ओपीजेएस यूनिवर्सिटी 50 हजार से लेकर लाखों तक में अलग-अलग भर्ती परीक्षाओं के लिए फर्जी डिग्री देती थी. जोगेंद्र सिंह पर पहले भी फर्जी डिग्री देने के आरोप रहे हैं. यूनिवर्सिटी के पास सिर्फ 28 कर्मचारी थी. इनमें 10 नन टीचिंग स्टाफ थे. 18 शिक्षकों के भरोसे यूनिवर्सिटी 18 कोर्स चला रही थी.
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PTI भर्ती परीक्षा में बड़े पैमाने पर हुआ फर्जी डिग्री का इस्तेमाल
SOG के DIG पारिस देशमुख ने आगे बताया कि इन फर्जी डिग्रियों का सबसे अधिक इस्तेमाल PTI भर्ती परीक्षा में हुआ. इस भर्ती परीक्षा में 1300 अभ्यर्थियों ने बताया कि उनके पास यूनिवर्सिटी पीटीआई की डिग्री है. जबकि तब तक यूनिवर्सिटी सिर्फ 500 अभ्यर्थियों को पीटीआई में एडमिशन देने के लिए अधिकृत थी. पीटीआई भर्ती परीक्षा में 1200 अभ्यर्थियों के रिकॉर्ड मिस मैच है. अब यह सभी रडार पर हैं. 200 से अधिक लोग नौकरी में हैं, जिन्होंने फर्जी डिग्री देकर नौकरी पाई है. अब इन पर विभागीय कार्रवाई होगी.
मनचाहे पैसे न मिलने पर वेरिफिकेशन में मुकर जाती थी यूनिवर्सिटी
जांच में पता चला है कि यूनिवर्सिटी पहले अभ्यर्थियों रोल नंबर जारी करने के पैसे लेती थी. फिर जब परिणाम आ जाता था तो डिग्री के लिए लाखों रूपये की मांग करती थी. अगर कोई अभ्यर्थी मुंहमांगी रकम नहीं देता था तो वेरिफिकेशन के समय यूनिवर्सिटी उसके स्टूडेंट होने से इनकार कर देती थी. पैसे दे देने पर अभ्यर्थी का वेरिफिकेशन हो जाता था.
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