सुप्रीम कोर्ट अपना ही आदेश लिया वापस, तथ्य छिपाने के लिए भरतपुर के पूर्व प्रधान पर 8 लाख का जुर्माना

राजस्थान में भरतपुर जिले के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला बापिस ले लिया. साथ ही कोर्ट को गुमराह करने के चक्कर में पूर्व प्रधान पर 8 लाख का जुर्माना भी लगाया है. 

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सुप्रीम कोर्ट दिल्ली.

Rajasthan News: राजस्थान के भरतपुर जिले के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एक दुर्लभ कदम उठाते हुए अपना पुराना आदेश वापस ले लिया. बुधवार को सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पाया कि भरतपुर जिले की उचैन पंचायत समिति के पूर्व प्रधान हिमांशु ने महत्वपूर्ण तथ्य छिपाकर अदालत को गुमराह किया था. इस पर कोर्ट ने कड़ी नाराजगी जताई और हिमांशु पर 8 लाख रुपये का जुर्माना ठोका. यह जुर्माना एक मिसाल के तौर पर लगाया गया ताकि भविष्य में कोई ऐसा न करें.

राज्य सरकार की दलीलें जो बदल गईं पूरी कहानी

राजस्थान सरकार ने अतिरिक्त महाधिवक्ता शिव मंगल शर्मा की मदद से सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की. इस याचिका में राज्य ने बताया कि 1 सितंबर 2025 को कोर्ट ने जो आदेश दिया था वह गलत तथ्यों पर आधारित था. उस आदेश में राजस्थान हाई कोर्ट के फैसले का पालन करते हुए हिमांशु को प्रधान पद पर बहाल करने को कहा गया था. लेकिन सरकार ने साफ किया कि हिमांशु ने अपनी याचिका में कई जरूरी बातें छिपाईं.

सरकार ने कोर्ट को बताया कि हिमांशु प्रधान पद पर नहीं थे. 12 अगस्त 2024 को पंचायत के 15 में से 13 सदस्यों ने उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पास कर दिया था. इसके दो दिन बाद 14 अगस्त 2024 को प्रधान का पद खाली घोषित हो गया. फिर 16 फरवरी 2025 को राम अवतार सिंह को नया प्रधान चुना गया.

हिमांशु ने अविश्वास प्रस्ताव के खिलाफ जो दीवानी मुकदमा दायर किया था वह गैर-अभियोजन के कारण खारिज हो चुका था. उनकी पुनर्स्थापना याचिका अभी लंबित थी. लेकिन हिमांशु ने सुप्रीम कोर्ट में इनमें से कोई भी तथ्य नहीं बताया.

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छिपाई गई पूरी घटनाक्रम की सच्चाई आई सामने

राज्य सरकार ने कोर्ट में ऐनेक्सर R-4 से R-17 तक के दस्तावेज पेश किए. इनसे पता चला कि हिमांशु को 11 फरवरी 2024 को जांच रिपोर्ट के आधार पर सस्पेंड किया गया था. राजस्थान हाई कोर्ट ने 19 मार्च 2024 को सिर्फ सस्पेंशन पर रोक लगाई थी अविश्वास प्रस्ताव की प्रक्रिया पर नहीं. हाई कोर्ट ने 12 अगस्त 2024 के आदेश में साफ कहा था कि अविश्वास प्रस्ताव पर टिप्पणी नहीं करनी चाहिए.

इसके बाद राज्य निर्वाचन आयोग ने प्रधान पद के लिए चुनाव करवाए जो पूरी तरह वैध थे. फिर भी हिमांशु ने सुप्रीम कोर्ट में रिट याचिका WP (C) 818/2025 दाखिल कर खुद को मौजूदा प्रधान बताया. कोर्ट ने इसे गुमराह करने की कोशिश माना और कहा कि ऐसे में न्याय प्रक्रिया पर बुरा असर पड़ता है.

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वकीलों की जिम्मेदारी पर कोर्ट की सख्त टिप्पणियां

अपना आदेश वापस लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने हिमांशु और उनके वकील पर तीखी टिप्पणियां कीं. कोर्ट ने कहा कि वकील का असली घर कोर्टरूम होता है मुवक्किल का घर नहीं. साथ ही जोड़ा कि हम वकीलों पर अदालत के अधिकारी के रूप में भरोसा करते हैं.

कोर्ट ने साफ कहा कि सुप्रीम कोर्ट से कोई मदद मांगने वाले को सभी सच्चे तथ्य बताने चाहिए. हिमांशु ने ऐसा नहीं किया जिससे अदालत का समय बर्बाद हुआ और गलत पूर्वाग्रह बना. कोर्ट ने तथ्यों को छिपाने को न्यायिक प्रक्रिया पर हमला बताया. इसलिए आदेश वापस लेने के साथ 8 लाख का जुर्माना लगाया ताकि आगे कोई ऐसा न करें.

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सुनवाई में कौन-कौन शामिल हुए

राजस्थान सरकार की तरफ से अतिरिक्त महाधिवक्ता शिव मंगल शर्मा सोनाली गौड़ और अनीशा रस्तोगी ने पैरवी की. राज्य निर्वाचन आयोग की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस वी राजू उपस्थित रहे. नए प्रधान राम अवतार सिंह की तरफ से वरिष्ठ वकील मनींदर सिंह ने पक्ष रखा.

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