
भले ही इंसान ने चांद को फतह कर लिया हो, लेकिन आस्था और अंधविश्वास के आगे यह सब बेमानी नजर आते हैं. इसका जीता जागता उदाहरण राजस्थान का बांसवाड़ा जिल में देखने को मिला, जहां एक माह पूर्व महात्मा गांधी हॉस्पिटल के ट्रॉमा सेंटर में हुई एक युवक की मौत के बाद उसके परिजन उसकी आत्मा को ले अस्पताल पहुंच गए. परिजनों के मुताबिक ऐसा करने से मृत व्यक्ति की आत्मा को शान्ति मिलती है.
गत 29 सितंबर को इलाज के दौरान मुकेश नामक एक युवक की मौत हो गई थी. करीब महीने बाद परिजन हॉस्पिटल पहुंचे तो उनके अंधविश्वास के आगे पूरा अस्पताल लाचार नजर आया. आदिवासी समुदाय के आत्मा ले जाने वाली प्रक्रिया शुरू हुई तो अस्पताल में भर्ती मरीज परेशान हो गए, लेकिन अस्पताल प्रशासन उन्हें रोकने में नाकाम दिखा.
रिपोर्ट के मुताबिक अस्पताल से मृत युवक की आत्मा को लेने बड़ी संख्या में ग्रामीण लोग ढोल बजाते हुए पहुंचे और जब परिजन के साथ आए भोपे ने जब आत्मा को ले जाने की पूरी प्रक्रिया शुरू कर दी तो हॉस्पिटल के ट्रॉमा सेंटर में भर्ती मरीज डरकर बेड से नीचे उतर गए. इस दौरान वार्ड प्रभारी ने उन्हें रोकने की भी कोशिश की, लेकिन परिजनों ने किसी की नहीं सुनी और वह करीब एक घंटे तक आत्मा को अस्पताल से घर ले जाने की प्रक्रिया में मशगूल रहे.
गौरतलब है अस्पताल में मौत के बाद मृतक की आत्मा इधर-उधर भटकती न रहे इसलिए राजस्थान के भील आदिवासी समाज लंबे अर्से से यह अनुष्ठान करते आ रहे हैं. मान्यता है कि परिजन अस्पताल पहुंचकर हवन की जोत जलाकर मृतक की आत्मा को अपने गांव ले जाते हैं और उसकी मूर्ति स्थापित करते हैं. परिजनों की मानें तो वे पिछले दिनों हुई परिजन की मौत के बाद उनकी आत्मा लेने अस्पताल में आएं हैं. वहीं, मामले पर प्रतिक्रिया मांगने पर अस्पताल प्रशासन ने लंबी चुप्पी साध ली.
अस्पताल में मृत युवक की आत्मा लेने आए लोगों का कहना है कि लोग उनके अनुष्ठान को अंधविश्वास या फिर ढोंग कह सकते हैं, लेकिन उन्हें अपनी मान्यता पर पूरा विश्वास है. उन्होंने बताया कि वो मृत परिजनों की आत्माएं ले जाकर उनकी पूजा करते हैं. उनका कहना है कि ऐसा करने से उनके घर में सुख-समृद्धि आती है और ऐसा न करने पर अनिष्ट हो सकता है.
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