कहते हैं, अगर कोई इंसान अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए सच्ची लगन और मज़बूत इरादों के साथ कड़ी मेहनत भी करे, तो एक न एक दिन कामयाबी कदम ज़रूर चूमती है. यह कहावत उन बच्चों के लिए भी सच साबित हुई, जो गरीबी में रहकर भी पढ़ाई के दम पर ऊंचाइयां छूने के सपने देख रहे थे, और उस एक शख्स के लिए भी, जो उन्हें डॉक्टर बनाने के लिए दिन-रात एक किए रहा.
राजस्थान के बाड़मेर जिले में एक संस्था है '50 विलेजर्स' (50 Villagers या 50 ग्रामीण), जिसे आज से 11 साल पहले 2012 में शुरू किया था डॉ भारत सारण ने. डॉक्टर सारण अपने कुछ साथी डॉक्टरों के साथ मिलकर ऐसे बच्चों को चुनते हैं, जिनके सपने बड़े हैं, लेकिन साधन छोटे और कम. उसके बाद हर बच्चे पर दो साल तक कड़ी मेहनत की जाती है, और उसका रहना-खाना, पढ़ना, और NEET परीक्षा दिलाना भी संस्थान की ज़िम्मेदारी बन जाती है. इसी का नतीजा है कि '50 विलेजर्स' अब तक 90 बच्चों का डॉक्टर बनने का ख्वाब पूरा करने में निमित्त बन चुका है, जिनमें से 33 बच्चों ने तो इसी साल NEET की परीक्षा उत्तीर्ण की है, और सबसे दिलचस्प तथ्य यह है कि इन 33 में से 17 बच्चों को राजकीय मेडिकल कॉलेजों में दाखिला मिला है.
ग्रामीण क्षेत्रों में अभावों के बीच विषम परिस्थितियों में जीने वाले इन बच्चों ने भी जीवट का मुज़ाहिरा किया, और डॉ. सारण की कोशिशों को कामयाब कर दिखाया. ऐसा ही बालक है मुश्ताक, जो बाड़मेर मुख्यालय से 55 किलोमीटर दूर बायतू उपखंड मुख्यालय के निकट माधासर गांव से भी कुछ दूरी पर मौजूद उन ढाणियों में रहता था, जिन्हें 'तेलियों की ढाणी' कहा जाता है. NDTV की टीम ने मुस्लिम समुदाय की ढाणी पर पहुंचकर जिस पहले राहगीर से मुश्ताक का घर पूछा, उसी ने फ़ख्र से बताया कि NEET में चुना जाने वाला उनके समुदाय का पहला बच्चा है मुश्ताक. इसी शख्स ने इशारे से मुश्ताक का घर भी दिखाया.
जब टीम NDTV मुश्ताक के घर पहुंची, तो अच्छी ख़बर मिली कि मुश्ताक दो दिन पहले ही घर लौटा है, लेकिन इस वक्त वह अपनी मां के साथ खेतों में निराई-गुड़ाई करने गया हुआ है. खेत से लौटने पर जब मुश्ताक की मां सुबहानी से बेटे की सफलता को लेकर पूछा गया तो बताया कि बेटा शुरुआत से ही मन लगाकर पढ़ता था और इसे देखते हुए ही 10वीं में दाखिला दिलवाया गया था. जबकि उनके समाज में बच्चों को ज्यादा नहीं पढ़ाया जाता.
मुश्ताक के पिता बाबू खान बालोतरा में कपड़े की फैक्ट्री में मजदूरी करते हैं. मुश्ताक की पांच बड़ी बहनें और एक छोटा भाई है. पिता की कमाई से परिवार का गुजर-बसर मुश्किल से होता है. पिता ने इसी कमाई के साथ पांच बेटियों की शादियां भी की, इसके लिए उन्हें कर्ज भी लेना पड़ा. पति का साथ देने के लिए मुश्ताक की मां भी दिहाड़ी-मजदूरी करती हैं. परिवार की ऐसी खस्ता हालात की वजह से मुश्ताक को बेहतर पढ़ाई और नीट की तैयारी के लिए बाहर भेजना मुश्किल था.
इसी बीच परिवार को बाड़मेर के एक संस्थान '50 विलेजर्स' के बारे में पता चला, जो कि गरीब बच्चों की पढ़ाई में मदद करता है. मुश्ताक ने भी इस संस्थान की चयन परीक्षा में हिस्सा लिया, जिसमें उसका चयन हो गया. इसके बाद मुश्ताक ने लगन के साथ पढ़ाई की और इस वर्ष NEET में 650 अंक प्राप्त कर देश में 7162 रैंक हासिल की.
मुश्ताक ने अपनी सफलता का श्रेय '50 विलेजर्स' संस्थान और उसके संस्थापक डॉ. भरत सारण को देते हुए कहा कि '50 विलेजर्स' उसके डॉक्टर बनने के सपने में सहयोग नहीं करती तो आज वो फैक्ट्री में मजदूरी कर रहा होता.
मुश्ताक ने युवाओं को संदेश देते हुए कहा कि कोई भी परेशानी और कोई भी बाधा इतनी बड़ी नहीं होती कि वह आप के हौसलों को हरा दे.
मुश्ताक का छोटा भाई 11वीं कक्षा में पढ़ता है, उसका भी सपना डॉक्टर बनने का है, जिसके लिए वह भी तैयारी कर रहा है.
इसी तरह NDTV की टीम बाड़मेर-जालोर हाईवे पर स्थित सरणु गांव पहुंची. इस गांव के महादेव ने साल 2023 में NEET में 665 अंक प्राप्त कर ऑल इंडिया रैंक 3629 रैंक हासिल की है. महादेव के पिता गुजरात में ट्रक चलाते थे, जिनकी करीब 12 वर्ष पहले एक सड़क हादसे में मौत हो गई. इसके बाद परिवार की जिम्मेदारी महादेव की मां कमला देवी पर आ गईं.
कमला देवी ने एनडीटीवी से बात करते हुए कहा कि पति की मौत के बाद 4 बच्चों परवरिश करना मुश्किल हो गया था. परिवार दो वक्त की रोटी का मोहताज हो गया था. ऐसे में कमला ने मनरेगा में मजदूरी करना शुरू कर दी. दो बेटियों की शादी की और बड़े बेटे को B.Ed कॉलेज में दाखिला दिलाया. महादेव पढ़ाई में होशियार था, गांव की सरकारी स्कूल से 11वीं पास कर ली. लेकिन परिवार की माली हालात खराब होने की वजह से उसकी आगे की पढ़ाई का सपना पूरा होता नहीं दिख रहा था.
ऐसे में उसी स्कूल के अध्यापक ने '50 विलेजर्स' के बारे में बताया. लेकिन इसमें भी एक परेशान थी, क्योंकि महादेव 11वीं कक्षा पास कर चुका था, और यह संस्था केवल 11वीं के छात्रों का ही चयन करती है. महादेव ने अपना सपना पूरा करने के लिए 11वीं कक्षा में दोबारा दाखिला लिया. इसके बाद महादेव का चयन हो गया.
महादेव ने गरीबी के आगे हार मानकर शिक्षा छोड़ रहे युवाओं को संदेश देते हुए कहा कि यदि आपकी मेहनत लगन और लक्ष्य पाने का इरादा पक्का है तो लगातार मेहनत करते जाएं मंजिल एक दिन आपको जरूर मिलेगी.
ऐसी ही कहानी बाड़मेर जिले के NEET टॉपर सूर्य प्रकाश की है. सूर्य प्रकाश बाड़मेर जिले के गुडामालानी इलाके के नोखड़ा गांव में रहते हैं. पिता डूंगरा राम मानसिक रोगी हैं, जिनका पिछले 15 वर्षों से इलाज चल रहा है. बेटे की मानसिक हालत और परिवार की दयनीय स्थिति को देखते हुए सूर्य प्रकाश के दादा नरसिंगाराम का भी मानसिक संतुलन बिगड़ गया. डूंगरा राम का कुछ दिन उनके पिता नरसिंगाराम ने ख्याल रखा, लेकिन कुछ समय के बाद वह भी मानसिक रोगी हो गई. इसके बाद पति और ससुर के इलाज और परिवार चलाने की जिम्मेदारी शिव प्रकाश की मां पूरा देवी पर आ गई.
परिवार की पुश्तैनी जमीन थी, लेकिन उस जमीन में बारिश होने पर ही अनाज पैदा होता था. खेतों में इतना अनाज भी पैदा नहीं होता था कि परिवार को दो वक्त की रोटी भी भरपेट मिल सके. इन सब मुश्किलों से लड़ते हुए पूरा देवी ने जैसे-तैसे करके परिवार को संभाला.
ऐसी हालात के बीच सूर्य प्रकाश का डॉक्टर बनने का सपने पूरा होता नहीं दिख रहा था. सूर्य प्रकाश 5 किलोमीटर पैदल सरकारी स्कूल में पढ़ने जाता था. वह लगन के साथ पढ़ाई करता था. परिवार की आर्थिक हालात उसके डॉक्टर बनने के सपने में बाधा बन रही थी.
सूर्य प्रकाश की मां का कहना है कि उन्होंने फैसला किया था कि 10वीं के बाद बेटे की पढ़ाई छुड़वाकर परिवार के गुजर-बसर में उनकी मदद करवाने का फैसला किया था. लेकिन उसके स्कूल के अध्यापकों ने '50 विलेजर्स' के संस्थापक डॉ भरत सारण को अपने विद्यालय में बुलाया. इसके साथ ही '50 विलेजर्स' में चयन के लिए सूर्य प्रकाश को प्रोत्साहित किया. सूर्य प्रकाश ने पूरी लगन के साथ NEET की तैयारी की.
सूर्य प्रकाश ने NEET में 720 में से 670 अंकों के साथ बाड़मेर जिले में पहला स्थान हासिल किया. उसे 2898 वीं ऑल इंडिया रैंक मिली.
उनके दादा ने नम आखों के साथ बताया कि सूर्य प्रकाश पर परिवार की उम्मीदें टिकी हुई हैं. साथ ही उन्होंने बताया कि वह सूर्य प्रकाश के पिता को भी पढ़ा कर सरकारी नौकरी में भेजना चाहते थे. लेकिन उनका मानसिक संतुलन बिगड़ गया. इसके बाद उनकी खुद की भी हालत वैसी ही हो गई. पिछले 15 सालों से दोनों बाप-बेटे घर में बंद रहने को मजबूर थे.
जिले के टॉपर सूर्य प्रकाश का कहना है कि सफलता का कोई शॉर्टकट नहीं होता है. नियमित अध्ययन और लक्ष्य हासिल करने की ललक आपको मंजिल के नजदीक लेकर जाते हैं. किसी भी बाधा को राह का रोड़ा न बनने दें, उसे हथियार बना लें.
सूर्य प्रकाश डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम को अपना आदर्श मानते हैं. पढ़ाई पूरी करने के बाद अब्दुल कलाम की तरह ही अपना जीवन मानव सेवा में लगाना चाहते हैं.
उनका कहना है कि वह मोबाइल से दूर रहते हैं. इसके साथ ही वह युवाओं सोशल मीडिया और मोबाइल से दूर रहने की सलाह देते हैं.
अपनी सफलता का श्रेय डॉ भरत सारण को देते हुए सूर्य प्रकाश कहते हैं कि '50 विलेजर्स' के बिना संभव उनका सपना पूरा होना संभव नहीं था. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि आगे जीवन में वह भी डॉ भरत सारण की राह पर चलते हुए ग्रामीण एवं आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों की शिक्षा देने के लिए काम करेंगे.