Rajasthan: राजस्थान के राजसमंद जिले के नाथद्वारा उपखंड की घोड़च पंचायत के कुंडा गांव में संघर्ष, मेहनत और लगन की एक ऐसी कहानी लिखी गई है. जिसमें यह साबित हुआ है कि अगर सही दिशा में प्रयास किए जाएं तो असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है.मादड़ी गांव के दो लोग इसकी मिसाल बन गए हैं. इन दोनों ने खेती में सफलता हासिल कर लोगों के लिए नई राह खोल दी है.
मेवाड़ की धरती पर उगाई स्ट्रॉबेरी की खेती
उदयपुर जिले की मावली तहसील के असली की मादड़ी गांव के किसान नारायण सिंह और डॉ. महेश दवे मेवाड़ की धरती पर स्ट्रॉबेरी की खेती कर रहे हैं. इसमें सबसे दिलचस्प बात यह है कि इन दोनों लोगों को खेती के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी. लेकिन इस काम को करके उन्होंने किसानों के लिए कृषि में नई राह खोल दी है.
स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए आवश्यक जानकारी जुटाई
मादड़ी गांव निवासी किसान नारायण सिंह ने बताया कि बैंकिंग सेक्टर में नौकरी करते हुए उन्होंने खेती में नए आयाम तलाशने शुरू किए. जिस पर उन्होंने स्ट्रॉबेरी की खेती के बारे में सोचा और इसके लिए रिसर्च भी की. लेकिन उनके गांव में स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए जरूरी जलवायु नहीं थी.फिर इसके लिए उन्होंने महाबलेश्वर, हिमाचल समेत अन्य जगहों का दौरा किया और उत्पादन के बारे में जानकारी ली.
मेडिकल कॉलेज में डॉ. दवे से हुई मुलकात
शोध के दौरान नारायण सिंह की मुलाकात उदयपुर के आरएनटी मेडिकल कॉलेज के मेडिसिन के प्रोफेसर डॉ. महेश दवे से हुई। डॉ. दवे की भी खेती में रुचि थी.घोड़च के कुंडा गांव में उनके पास खाली जमीन थी. वहां दोनों ने खेती शुरू की. एक हजार वर्ग फीट क्षेत्र में स्ट्रॉबेरी की खेती शुरू करने का फैसला किया गया. इसके बाद नारायण सिंह ने डॉ. महेश दवे की मदद से अक्टूबर में स्ट्रॉबेरी की बुवाई की.
दो महीने में तैयार हो गई बंपर पैदावार
स्ट्रॉबेरी की बुवाई के लिए जैविक खाद, नीम की खली और छाया के लिए गीली घास का इस्तेमाल किया गया. इसके अलावा मधुमक्खियों की मदद से पौधों का परागण कराया गया, जिससे फसल की गुणवत्ता और उत्पादन में वृद्धि हुई. दो महीने बाद दिसंबर में खेतों में भरपूर मात्रा में स्ट्रॉबेरी तैयार हो गई. इसके बाद अब बड़े-बड़े सुपरमार्केट, बड़े-बड़े अधिकारी और उद्योगपति उनकी स्ट्रॉबेरी खरीदने आ रहे हैं.
लाखों का हो रहा मुनाफा
डॉ. महेश दवे ने बताया कि अब तक इस खेती पर 8 लाख रुपए की लागत आ चुकी है जबकि 2 लाख रुपए की कमाई हो चुकी है. फसल तैयार होने तक कुल कमाई 16 लाख रुपए होने का अनुमान है, जिससे एक ही फसल में 8 लाख रुपए की कमाई होगी। 2 लाख रुपए का शुद्ध मुनाफा होगा। दोनों ने बताया कि स्ट्रॉबेरी की खेती में लगातार ध्यान और मेहनत की जरूरत होती है. इस फसल की रखवाली के लिए चार लोगों की टीम हर समय तैनात रहती है. सुबह 4 बजे से सिंचाई और पौधों की देखभाल शुरू हो जाती है. स्ट्रॉबेरी की संवेदनशील प्रकृति के कारण पौधों की नमी, पोषण और तापमान पर लगातार ध्यान देना पड़ता है.
तकनीकी मदद भी की जा रही है लगातार
कृषि विभाग के संयुक्त निदेशक संतोष दुरिया और उद्यानिकी विभाग के उपनिदेशक हरिओम सिंह राणा ने बताया कि राज्य सरकार की ओर से उन्हें मल्चिंग शीट, लो टनल और ड्रिप सिस्टम पर सब्सिडी दी गई है. साथ ही समय-समय पर तकनीकी मदद देकर सहयोग भी किया जा रहा है. विभाग की ओर से यहां लगातार दौरा और मॉनिटरिंग भी की जा रही है.अपनी मेहनत के दम पर किसान नारायण सिंह ने डॉ. महेश दवे के साथ मिलकर सफलता की नई इबारत लिखी है। अब क्षेत्र के किसानों के साथ-साथ दूर-दूर से लोग भी यहां खेती की तकनीक की जानकारी लेने आ रहे हैं.
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