
राजस्थान की रेतीली धरती पर कदम रखेंगे तो एक गाना जरूर कान में गूंजेगा ‘केसरिया बालम पधारो म्हारे देश'. राजस्थान को जानने समझने वाला हर व्यक्ति बचपन से इस मीठे से गीत को सुनता चला रहा होगा. इस गाने में रची बसी राजस्थान की माटी की खुशबू ने कभी ये सोचने का मौका ही नहीं दिया कि ये गीत कितना पुराना है किसने गाया है. बस किसी का स्वागत करना हो तो अनायास ही जेहन में यही गीत आना लाजमी सा हो चुका है. आज आपको बताते हैं इस गीत को अमर बनाने वाली वो आवाज कौन सी थी. जिसके नाम कुछ और भी कीर्तिमान दर्ज हैं.
अल्लाह जिलाई बाई के सुर
इस गीत को सबसे पहले सुरों से सजाया अल्लाह जिलाई बाई ने. 1 फरवरी 1902 में जन्मी अल्लाह जिलाई बाई दस साल की उम्र से गीत संगीत में रुचि लेने लगी थीं. उनके हुनर को पहचाना बीकानेर के महाराज गंगासिंह ने. अल्लाह जिलाई बाई के फन का अहसास होने के बाद महाराज ने उन्हें पहले उस्ताद हुसैन बख्श और बाद में अच्छन महाराज से संगीत की शिक्षा दिलवाई. सही मार्गदर्शन मिला तो अल्लाह जिलाई बाई की आवाज में भी निखार आता गया. उनके सुरों से अभिभूत होकर 13 साल की उम्र में महाराज ने उन्हें राज्य गायिका की पदवी दे दी. अपनी उसी काबिलेतारीफ आवाज में अल्लाह जिलाई बाई ने पहली बार केसरिया बालम गाया. जो आज भी भुला पाना आसान नहीं है.
समय के साथ बदला स्वरूप
समय बीतता गया लेकिन केसरिया बालम की मिठास कम नहीं हुई. ये अलग बात है कि वक्त के साथ इसका स्वरूप कई बार बदला. कभी फिल्म, कभी टीवी सीरियल और कभी एड में इस गाने का खूब इस्तेमाल हुआ. इसे मेल-फीमेल दोनों आवाजों में आज सुना भी जा सकता है. स्वरूप कितने भी हो सकते हैं. लेकिन गाने की मिठास और जज्बात वही के वही हैं. ऐसी यादगार आवाज की धनी अल्लाह जिलाई बाई को निधन के बाद राजस्थान रत्न से भी नवाजा गया.