Vedaa Review: 15 अगस्त को बॉलीवुड की तीन बड़ी फिल्में सिनेमाघरों में रिलीज हुई है. राजकुमार राव और श्रद्धा कपूर की स्त्री-2, अक्षय कुमार की खेल खेल में और जॉन अब्राहम की वेदा. इन तीनों फिल्मों की कहानी अलग-अलग है. जॉन अब्राहम की फिल्म वेदा में राजस्थान के बाड़मेर की कहानी है. इस फिल्म में समाज के जाति व्यवस्था के काले सच को सामने लाया गया है. जाति व्यवस्था पर पहले भी कई फिल्में बन चुकी हैं. लेकिन बीत कुछ सालों से इस विषय पर फिल्म बनाने से कोई भी निर्देशक बच रहा था. लेकिन निखिल आडवाणी ने वेदा में इस सालों पुराने समाज के सच को सामने लाने का काम किया है.
राजस्थान के बाड़मेर जिले की कहानी
फिल्म की कहानी राजस्थान के बाड़मेर की रहने वाली दलित परिवार की लड़की वेदा बरवा की है, जिसका किरदार शरवरी वाघ ने निभाया है. वेदा का सपना बॉक्सर बनने का है. वेदा ने कॉलेज में बॉक्सिंग सीखनी शुरू की. जहां एंट्री होती है अभिमन्यु (जॉन अब्राहम) की. वो आर्मी ऑफिसर था, किसी वजह से कोर्ट मार्शल कर के सेना से बरखास्त कर दिया गया.
वेदा, अभिमन्यु का दुश्मन बनता है प्रधान
कहानी में विलन का किरदार प्रधान जितेंद्र सिंह ((अभिषेक बनर्जी) का है. जितेंद्र ऊंची जाति का आदमी है. जाति के दंभ में वो कुछ ऐसा करता है कि वेदा और अभिमन्यु का दुश्मन बन जाता है. फिर दोनों प्रधान से लड़ते हैं. इस दौरान वेदा अपने लिए न्याय की परिभाषा कैसे बुनती है, यही फिल्म की कहानी है.
अगड़ी जाति के प्रधान ने करवाई वेदा के भाई की हत्या
फिल्म आगे बढ़ती है तो पता चलता है कि वेदा का भाई एक ऊंची जाति की लड़की से प्यार करता है. लेकिन जब गांव में प्रधान जितेंद्र प्रताप सिंह (अभिषेक बनर्जी) को पता चलता है तो भरी पंचायत में वेदा के परिवार की खूब बेइज्जती करता है. प्रधान वेदा के भाई की हत्या भी कर देता है.
भाई की मौत देख वेदा अभिमन्यु के साथ जंग में उतरती है
वेदा अपनी आंखों के सामने भाई की दर्दनाक मौत देखकर टूट जाती है. फिर वह गलत के खिलाफ जंग लड़ने का फैसला करती है. गांव में हिंसा का नंगा नाच शुरू होता है. वेदा अभिमन्यु की शरण में आती है. अभिमन्यु कैसे उसे उस चक्रव्यूह से बचाता है? इसके लिए पूरी फिल्म देखनी पड़ेगी.
जाति व्यवस्था पर तीखी टिप्पणी
‘वेदा' में भारतीय समाज में सालों से चली आ रही जाति व्यव्सथा पर तीखी टिप्पणी की गई है. इस व्यव्सथा पर पहले भी कई फिल्में बनी है. ऐसे में कहानी पुरानी है, लेकिन निखिल आडवाणी ने लंबे समय बाद इस व्यवस्था पर फिल्म बनाकर समाज के इस काले सज को सामने लाए हैं. फिल्म कितनी जोरदार है यह तो देखने पर ही पता चलेगा.
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