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Emergency in India: जब सत्ता जाने से ऐसी डर गईं इंदिरा गांधी की लगा दी देश में इमरजेंसी

25 जून 1975 को भारत के लोकतंत्र के इतिहास में एक काला अध्याय कहा जाता है. आपातकाल लागू करने के इंदिरा गांधी के फैसले को लेकर आज भी कांग्रेस के विरोधी उसे घेरते हैं.

Emergency in India: जब सत्ता जाने से ऐसी डर गईं इंदिरा गांधी की लगा दी देश में इमरजेंसी

Emergency in India: आज से ठीक 49 साल पहले यानी 25 जून 1975 को भारत में आपातकाल की घोषणा हुई थी. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के आपातकाल लगाने के क़दम को भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक काला अध्याय कहा जाता है. पाँच दशक के बाद भी आपातकाल के उस फैसले की गूंज राजनीति में सुनाई देती रहती है और कांग्रेस की विरोधी पार्टियां आपातकाल लगाने के इंदिरा गांधी के फैसले को लेकर कांग्रेस को घेरने की कोशिश करती रहती हैं. 

कब लगी Emergency

25 जून 1975 की रात तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के सिफ़ारिश पर देश के तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने देश में आंतरिक आपातकाल लगाने के आदेश पर हस्ताक्षर किए. ये फैसला संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत लिया गया जिसमें देश की सुरक्षा को युद्ध या विदेशी हमले के अतिरिक्त आंतरिक अशांति से ख़तरा होने पर आपातकाल लगाने का प्रावधान है. 

आपातकाल लागू होने के बाद सभी चुनाव स्थगित कर दिए गए और नागरिक अधिकारों के अधिकारों को समाप्त कर दिया गया. इंदिरा गांधी के फैसले का विरोध करने वाले दिग्गज विपक्षी नेता जयप्रकाश नारायण ने इसे 'भारतीय इतिहास का सबसे काला दौर' कहा था.

क्यों लगाई गई थी  Emergency

1967 से 1971 के बीच तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का दबदबा चरम पर था. वह सरकार और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के साथ-साथ संसद में भी भारी बहुमत रखती थीं. केंद्रीय मंत्रिमंडल के बजाय, केंद्र सरकार की शक्ति प्रधानमंत्री सचिवालय के भीतर केंद्रित थी.

वह सचिवालय के निर्वाचित सदस्यों को एक खतरे के रूप में देखती थीं.  इस खतरे को भांपते हुए, उन्होंने सत्ता खोने के डर से रणनीति बनानी शुरू कर दी. इंदिरा गांधी ने सबसे पहला काम यह किया कि अपने प्रतिद्वंद्वियों को चतुराई से अलग करके कांग्रेस का विभाजन कर दिया.

इस वजह से 1969 में कांग्रेस दो हिस्सों में विभाजित हो गई. पहला था कांग्रेस (ओ) (जिसे "सिंडिकेट" के रूप में जाना जाता था जिसमें पुराने गार्ड शामिल थे) और दूसरा कांग्रेस (आर) जो इंदिरा गांधी के पक्ष में था. कांग्रेस के विभाजन के बाद, इंदिरा गांधी की छवि मज़बूत होने लगी.

1975 में कुर्सी जाने का डर लगा था सताने

1971 के आम चुनावों में इंदिरा का "गरीबी हटाओ" का लोकलुभावन नारा इतना लोकप्रिय हुआ कि लोगों ने उन्हें भारी बहुमत (518 में से 352 सीटें) से पुरस्कृत किया.

लेकिन 1975 में अचानक इंदिरा को अपनी कुर्सी जाने का डर सताने लगा क्योंकि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इंदिरा गांधी को चुनाव में धांधली का दोषी पाया और छह साल तक किसी भी पद पर रहने पर प्रतिबंध लगा दिया. लेकिन इंदिरा गांधी ने इसे मानने से इनकार कर दिया और सुप्रीम कोर्ट में अपील करने की घोषणा की और 26 जून को आपातकाल की घोषणा कर दी गई.

आकाशवाणी पर हुई थी घोषणा

25 जून 1975 को तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने इंदिरा गांधी के अनुरोध पर आपातकाल लगाने के फैसले को मंज़ूरी दे दी. ऑल इंडिया रेडियो पर प्रसारित अपने संदेश में तब इंदिरा गांधी ने कहा, "जब से मैंने आम आदमी और देश की महिलाओं के हित में कुछ प्रगतिशील कदम उठाए हैं, मेरे खिलाफ गहरी साजिश रची जा रही है."

आपातकाल के दौरान 

आपातकाल के दौरान भारत में कई बदलाव देखने को मिले. इसके साथ ही नागरिकों के मौलिक अधिकारों को भी निलंबित कर दिया गया. लोगों को बिना वारंट के गिरफ्तार किया जा सकता था और हिरासत में भी रखा जा सकता था.

इनमें जयप्रकाश नारायण, जॉर्ज फर्नांडिस, घनश्याम तिवारी और अटल बिहारी वाजपेयी को आंतरिक सुरक्षा अधिनियम (मीसा) के तहत हिरासत में लिया गया था. यहां तक ​​कि प्रेस पर भी सेंसरशिप लगा दी गई थी ताकि इस काले अध्याय का कोई जिक्र न हो सके. लेकिन इस दौरान सरकार ने कुछ सामाजिक और आर्थिक सुधार भी लागू किए.  जैसे दहेज प्रथा को गैरकानूनी घोषित किया गया और बंधुआ मजदूरी को खत्म करने की कोशिश की गई.

आपातकाल का अंत

21 मार्च 1977 को इमरजेंसी समाप्त हो गई. जनता के मन से उतर चुकी इंदिरा गांधा को आम चुनावों में मुंह तोड़ जवाब मिला. आम चुनाव में उन्हें और उनकी पार्टी को हार का सामना करना पड़ा, और जनता पार्टी की सरकार बनी.

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