Article 370: जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को निरस्त किए जाने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर की गईं. शीर्ष अदालत ने 16 दिनों की सुनवाई के बाद 5 सितंबर को इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था, जो आज सुनाया जाने वाला है. प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ कुछ ही देर में ये फैसला सुनाएगी. लेकिन इससे पहले वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल (Kapil Sibal) ने एक ट्वीट कर बड़े संकेत दिए हैं. उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा, 'कुछ लड़ाइयां हारने के लिए लड़ी जाती हैं. इतिहास को पीढ़ियों के जानने के लिए असुविधाजनक तथ्यों को दर्ज करना होगा. संस्थागत कार्यवाहियों के सही और गलत होने पर आने वाले वर्षों में बहस होती रहेगी. ऐतिहासिक निर्णयों की नैतिक दिशा में इतिहास ही अंतिम मध्यस्थ होता है.'
Courts
— Kapil Sibal (@KapilSibal) December 11, 2023
Some battles are fought to be lost
For history must record the uncomfortable facts for generations to know
The right and wrong of institutional actions will be debated for years to come
History alone is the final arbiter
of the moral compass of historic decisions
महबूबा मुफ्ती ने भी जताई थी आशंका
इससे पहले पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP) की प्रमुख महबूबा मुफ्ती (Mehbooba Mufti) ने शनिवार को कहा था कि, 'जम्मू-कश्मीर प्रशासन की गतिविधियां संकेत दे रही हैं कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा संविधान के अनुच्छेद 370 से जुड़ी याचिकाओं पर सुनाया जाने वाला फैसला देश हित के खिलाफ होने की आशंका है.' मुफ्ती ने अनंतनाग में पत्रकारों से कहा, 'शुक्रवार रात से हम देख रहे हैं कि विभिन्न दलों, विशेषकर PDP के कार्यकर्ताओं के नाम वाली सूचियां थानों के माध्यम से ली जा रही हैं और ऐसा लगता है कि कोई ऐसा निर्णय आने वाला है जो इस देश और जम्मू-कश्मीर के पक्ष में न हो. भाजपा के एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए, कुछ एहतियाती कदम उठाए जा रहे हैं, जोकि दुर्भाग्यपूर्ण है.' उन्होंने जोर देकर कहा कि यह सुनिश्चित करना शीर्ष अदालत की जिम्मेदारी है कि वह भारतीय जनता पार्टी (BJP) के एजेंडे को आगे न बढ़ाए, बल्कि देश और उसके संविधान की अखंडता को बरकरार रखे. मुफ्ती ने कहा कि अदालत के फैसले से यह स्पष्ट होना चाहिए कि भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार द्वारा 5 अगस्त, 2019 को अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को निरस्त करने का निर्णय 'अवैध, असंवैधानिक' था. यह फैसला जम्मू-कश्मीर और यहां के लोगों से किए गए वादों के खिलाफ था.
गुलाम नबी आजाद को पूरा भरोसा
हालांकि जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद ने भी रविवार को उम्मीद जताई कि सुप्रीम कोर्ट संविधान के अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को 2019 में निरस्त किए जाने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर यहां के लोगों के पक्ष में फैसला सुनाएगा. आजाद ने संवाददाताओं से कहा, 'मैंने पहले भी यह कहा है... केवल दो (संस्थाएं) हैं जो जम्मू-कश्मीर के लोगों को अनुच्छेद 370 और 35ए वापस कर सकती हैं और वे संस्थाएं संसद एवं सुप्रीम कोर्ट हैं. उच्चतम न्यायालय की पीठ निष्पक्ष है और हमें उम्मीद है कि वह जम्मू-कश्मीर के लोगों के पक्ष में फैसला देगी.' कांग्रेस से अलग होने के बाद डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी (डीपीएपी) की स्थापना करने वाले आजाद ने कहा कि उन्हें नहीं लगता कि संसद 5 अगस्त, 2019 को लिए गए निर्णयों को पलटेगी क्योंकि इसके लिए लोकसभा में दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होगी. अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35ए को वापस लाने के लिए (लोकसभा में) 350 सीट की आवश्यकता होगी. जम्मू-कश्मीर में किसी भी क्षेत्रीय दल को तीन, चार या अधिकतम पांच सीट मिल सकती हैं. ये पर्याप्त नहीं होंगी. मुझे नहीं लगता कि विपक्ष इतनी संख्या जुटा पाएगा. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पास बहुमत था, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. इसलिए, यह केवल सुप्रीम कोर्ट ही कर सकता है.
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