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बंगाली भाषी मजदूरों की 'हिरासत' पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, राजस्थान सरकार से भी जवाब तलब

सुप्रीम कोर्ट ने यह साफ कर दिया कि असली नागरिकों को बेवजह परेशान नहीं किया जा सकता. उन्होंने केंद्र और सभी राज्यों से जवाब मांगा है ताकि यह पता लगाया जा सके कि मजदूरों की पहचान की जांच के लिए क्या तरीका अपनाया जा रहा है.

बंगाली भाषी मजदूरों की 'हिरासत' पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, राजस्थान सरकार से भी जवाब तलब
बंगाली भाषी प्रवासी श्रमिकों को 'हिरासत' में लेने पर जनहित याचिका: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्यों से जवाब मांगा

Rajasthan News: देश की सबसे बड़ी अदालत, यानी सुप्रीम कोर्ट में एक ऐसी याचिका पर सुनवाई हुई है, जिसने पूरे देश के साथ-साथ हमारे राजस्थान को भी झकझोर दिया है. यह याचिका उन गरीब प्रवासी मजदूरों के बारे में है, जिन्हें सिर्फ बंगाली बोलने या बंगाली भाषा के दस्तावेज होने की वजह से बांग्लादेशी नागरिक मानकर हिरासत में लिया जा रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की गंभीरता को समझते हुए केंद्र सरकार और 9 राज्यों (जिनमें राजस्थान भी शामिल है) से जवाब मांगा है. कोर्ट ने कहा है कि असली नागरिकों को इस तरह परेशान नहीं किया जा सकता और इसके लिए कोई ठोस तरीका निकालना होगा.

'बंगाली बोलने पर शक' राजस्थान में भी मजदूरों की परेशानी

याचिकाकर्ता, पश्चिम बंगाल प्रवासी कल्याण बोर्ड, ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि गृह मंत्रालय के एक सर्कुलर के नाम पर राज्यों में मजदूरों को सिर्फ इस वजह से परेशान किया जा रहा है कि वे बंगाली भाषा बोलते हैं. उनके पास बंगाली में लिखे हुए पहचान पत्र या दूसरे दस्तावेज होते हैं, और इसी को शक का आधार मान लिया जाता है. यह समस्या सिर्फ एक राज्य तक सीमित नहीं है. मजदूरों के वकील प्रशांत भूषण ने कोर्ट को बताया कि ओडिशा, राजस्थान, महाराष्ट्र, दिल्ली, बिहार, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, हरियाणा, और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में ऐसी घटनाएं हो रही हैं.

राजस्थान में भी (खासकर उन इलाकों में जहां प्रवासी मजदूर ज्यादा काम करते हैं) इस तरह की घटनाएं सुनने में आ रही हैं. ये मजदूर दिन-रात मेहनत करके राजस्थान की अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने में मदद करते हैं, लेकिन अब उन्हें अपनी पहचान साबित करने के लिए जूझना पड़ रहा है. कोर्ट में वकील ने बताया, 'इन लोगों को उनकी नागरिकता की जांच के नाम पर हिरासत में लिया जा रहा है और कई मामलों में तो उन्हें प्रताड़ित भी किया जाता है. जांच करने में हमें कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन इस दौरान मजदूरों को हिरासत में नहीं लेना चाहिए.'

सुप्रीम कोर्ट का फैसला: असली और नकली में फर्क जरूरी

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सूर्यकांत और जॉयमल्य बागची की बेंच ने इस मामले पर सुनवाई करते हुए एक महत्वपूर्ण बात कही. उन्होंने कहा कि राज्यों को यह जानने का हक है कि मजदूर कहां से आए हैं, लेकिन दिक्कत यह है कि जब तक जांच चलती है, तब तक ये लोग परेशानी में होते हैं. बेंच ने तुरंत कोई अंतरिम आदेश देने से इनकार कर दिया, क्योंकि उनका मानना था कि इसका गलत असर भी हो सकता है. अगर कोर्ट बिना पूरी जानकारी के कोई आदेश देता है, तो इसका फायदा वे लोग उठा सकते हैं जो वाकई में गैरकानूनी तरीके से देश में आए हैं और जिन्हें कानून के हिसाब से वापस भेजना जरूरी है. लेकिन, कोर्ट ने यह साफ कर दिया कि असली नागरिकों को बेवजह परेशान नहीं किया जा सकता. उन्होंने केंद्र और सभी राज्यों से जवाब मांगा है ताकि यह पता लगाया जा सके कि मजदूरों की पहचान की जांच के लिए क्या तरीका अपनाया जा रहा है और कैसे यह सुनिश्चित किया जाए कि असली भारतीय नागरिक बेवजह परेशान न हों.

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