Supreme Court Judgement: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के केंद्र सरकार के फैसले को बरकरार रखा और कहा कि किसी राज्य की ओर से केंद्र द्वारा लिया गया हर निर्णय कानूनी चुनौती के लिए विषय नहीं हो सकता. भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, बीआर गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पांच न्यायाधीशों वाली संविधान पीठ ने ये फैसला सुनाया.
अस्थाई था अनुच्छेद 370
सीजेआई चंद्रचूड़ ने फैसला पढ़ते हुए कहा कि, 'उद्घोषणा के तहत राज्य की ओर से केंद्र द्वारा लिए गए हर फैसले को कानूनी चुनौती नहीं दी जा सकती है और इससे राज्य का प्रशासन ठप हो जाएगा. अनुच्छेद 370 एक अस्थायी प्रावधान था. अनुच्छेद 370 राज्य में युद्ध की स्थिति के कारण एक अंतरिम व्यवस्था थी'. शीर्ष अदालत ने यह भी उल्लेख किया कि याचिकाकर्ताओं का यह तर्क कि केंद्र सरकार राष्ट्रपति शासन के दौरान राज्य में अपरिवर्तनीय परिणामों वाली कार्रवाई नहीं कर सकती, यह स्वीकार्य नहीं है.
'संप्रभुता का कोई तत्व बरकरार नहीं रखा'
सीजेआई ने कहा, 'हमने माना है कि जम्मू और कश्मीर राज्य ने भारत संघ में शामिल होने पर संप्रभुता का कोई तत्व बरकरार नहीं रखा. हम निम्नलिखित कारणों से इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं. महाराजा हरि सिंह द्वारा निष्पादित विलय पत्र का पहला पैराग्राफ आठ बशर्ते कि दस्तावेज में कुछ भी राज्य में और उसके ऊपर महाराजा की संप्रभुता की निरंतरता को प्रभावित नहीं करेगा.' सीजेआई ने आगे कहा कि 25 नवंबर, 1949 को "युवराज करण सिंह" द्वारा जम्मू-कश्मीर राज्य के लिए एक उद्घोषणा जारी की गई थी. इसमें कहा गया था कि भारत का संविधान न केवल राज्य में अन्य सभी संवैधानिक प्रावधानों को हटा देगा (जो इसके साथ असंगत थे) बल्कि उन्हें निरस्त भी करेगा. ये उद्घोषणा जम्मू और कश्मीर द्वारा अपने संप्रभु शासक के माध्यम से भारत को संप्रभुता के पूर्ण और अंतिम आत्मसमर्पण को दर्शाती है.
'राष्ट्रपति की शक्ति का प्रयोग वैध'
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'राष्ट्रपति द्वारा जारी घोषणा अनुच्छेद 370 के खंड 3 की शक्ति का प्रयोग करती है और एकीकरण की प्रक्रिया की परिणति है. इस प्रकार, हमें नहीं लगता कि अनुच्छेद 370 के खंड 3 के तहत राष्ट्रपति की शक्ति का प्रयोग दुर्भावनापूर्ण था. हम राष्ट्रपति की शक्ति के प्रयोग को वैध मानते हैं.' न्यायालय ने यह भी कहा कि अनुच्छेद 370 जम्मू-कश्मीर के संघ के साथ संवैधानिक एकीकरण के लिए था और यह विघटन के लिए नहीं था और राष्ट्रपति यह घोषणा कर सकते हैं कि अनुच्छेद 370 का अस्तित्व समाप्त हो जाता है. कोर्ट ने कहा, 'अनुच्छेद 370(1)(डी) का उपयोग करके संविधान के सभी प्रावधानों को लागू करने के लिए राज्य सरकार की सहमति की आवश्यकता नहीं थी. इसलिए, भारत के राष्ट्रपति द्वारा केंद्र सरकार की सहमति लेना दुर्भावनापूर्ण नहीं था.'
'30 सिंतबर तक J&K में कराएं चुनाव'
सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को 30 सितंबर, 2024 तक जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव कराने का भी निर्देश दिया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल करने पर केंद्र की दलील के मद्देनजर, वह निर्देश देता है कि जल्द से जल्द राज्य का दर्जा बहाल किया जाए. शीर्ष अदालत ने 16 दिनों तक दलीलें सुनने के बाद 5 सितंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था. केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के अपने फैसले का बचाव करते हुए कहा था कि पूर्ववर्ती राज्य जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले प्रावधान को निरस्त करने में कोई "संवैधानिक धोखाधड़ी" नहीं हुई थी. केंद्र की ओर से अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता पेश हुए.
'संविधान सभा के बाद मिला स्थायित्व'
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने दलीलें शुरू करते हुए कहा था कि अनुच्छेद 370 अब "अस्थायी प्रावधान" नहीं है और जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा के विघटन के बाद इसे स्थायित्व मिल गया है. उन्होंने तर्क दिया था कि अनुच्छेद 370 को निरस्त करने की सुविधा के लिए संसद खुद को जम्मू-कश्मीर की विधायिका घोषित नहीं कर सकती थी, क्योंकि संविधान का अनुच्छेद 354 शक्ति के ऐसे प्रयोग को अधिकृत नहीं करता है. 5 अगस्त, 2019 को केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 के तहत दिए गए जम्मू और कश्मीर के विशेष दर्जे को रद्द करने की घोषणा की और क्षेत्र को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया.