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This Article is From May 03, 2024

चित्तौड़गढ़ की 5 सौ साल पुरानी कावड़ कला, लकड़ी के दरवाजे पर बयां की जाती हैं अतीत की कहानियां

भारत की संस्कृति की विविधता में चित्तौड़गढ़ भी अपनी अलग ही पहचान रखता है. इसी संस्कृति में आज हम आपको बताएंगे कहानी सुनाने की एक अनूठी कला के बारे में जो पांच सौ सालों से चली आ रही है.

चित्तौड़गढ़ की 5 सौ साल पुरानी कावड़ कला, लकड़ी के दरवाजे पर बयां की जाती हैं अतीत की कहानियां
कावड़ पर धार्मिक, शिक्षा, कहानियां को चित्रों के माध्यम से बनाकर तैयार किया जाता है.

रंग और रण की भूमि राजस्थान में रंगीन भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. एक ऐसी कला जो पूरे भारत में सिर्फ चित्तौड़गढ़ के बस्सी कस्बे में ही देखने को मिलती है. राजस्थान... पधारों म्हारें देश का बुलावा देता यह राज्य प्राचीन सभ्यता का हिस्सा रह चुका है. 

चित्तौड़गढ़ को मेवाड़ की राजधानी भी कहा जाता है 

राजस्थान में ही है इतिहास का बेहद गौरवशाली ईलाका है. चित्तौड़गढ़ को  पुराने समय में मेवाड़ की राजधानी भी कहा जाता था. इन सबसे परे बसती है रंगों और कहानियों की एक दुनिया, जिससे ज्यादातर लोग अनजान हैं. कावड़, जो कहानी सुनाने की एक अनूठी कला है. चित्तौड़गढ़ के बस्सी कस्बे की यह कावड़ कला पांच सौ साल पुरानी है. जो आज भी परम्परागत रूप से पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है. पूरे भारत में यह कावड़ कला बस्सी में ही है. 

बस्सी गांव के 70 वर्षीय द्वारका प्रसाद आज भी कावड़ कला को जिंदा रखे हुए हैं.

बस्सी गांव के 70 वर्षीय द्वारका प्रसाद आज भी कावड़ कला को जिंदा रखे हुए हैं.

द्वारका प्रसाद आज भी कावड़ कला को जिंदा रखे हुए हैं 

बस्सी गांव के 70 वर्षीय द्वारका प्रसाद आज भी पांच सौ साल पुरानी अपनी पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही कावड़ कला को जिंदा रखे हुए है. द्वारका प्रसाद कावड़ कला के बारे में बताते हैं कि पुराने समय में कम पढ़े लिखे लोगों को कावड़ कला पर चित्रण करके लोगों को समझाया जाता था.  

अडूसा लकड़ी से तैयार किया जाता है कावड़

कावड़ को तैयार करने के लिए अडूसा लकड़ी का प्रयोग किया जाता हैं जो हल्की होने के साथ-साथ जल्दी खराब भी नही होती. कावड़ बनाने के लिए पहले सही साइज में अलग-अलग हिस्सों को जुड़ा जाता है. इसके बाइद कावड़ तैयार किया जाता है. कावड़ शब्द किवाड़ से बना जिसका हिंदी भाषा में दरवाजा कहा जाता है. यानी दरवाजे की तरह खिलने वाला कावड़,  कावड़ को तैयार करने के लिए विभिन्न रंगों का उपयोग किया जाता है. कावड़ पर कहानी उखेरने से पहले उस कहानी की स्क्रिप्ट तैयार की जाती हैं फिर उसे चित्रण के माध्यम से कावड़ पर बनाया जाता हैं.कावड़ पर धार्मिक, शिक्षा, कहानियां को चित्रों के माध्यम से बनाकर तैयार किया जाता है.

कावड़ को तैयार करने के लिए अडूसा लकड़ी का प्रयोग किया जाता हैं जो हल्की होने के साथ-साथ जल्दी खराब भी नहीं होती.

कावड़ को तैयार करने के लिए अडूसा लकड़ी का प्रयोग किया जाता हैं जो हल्की होने के साथ-साथ जल्दी खराब भी नहीं होती.

शिक्षा से जुड़ी कहानियां चित्रों के माध्यम से बनाई जाती है

कावड़ पर ना सिर्फ धार्मिक कथाओं का वर्णन किया जाता है बल्कि, कावड़ पर बेटी पढ़ाओ-बेटी बचाओ, खरगोश और हाथी की कहानी समेत स्वास्थ्य, शिक्षा से जुड़ी कहानिया चित्रों के माध्यम से बनाई जाती है. 
 

स्टूडेंट्स को कावड़ कला की ट्रेनिंग दी जाती है

द्वारका प्रसाद बताते हैं कि वो इस कावड़ कला को जीवित रखने के लिए ट्रेनिंग भी लोगों को देते हैं, पिछले दिनों कलकत्ता में भी स्टूडेंट्स को पांच दिन की ट्रेनिंग दी और उन्हें कावड़ कला के बारे में समझाया.कावड़ को तैयार करने के बाद देश के कई हिस्सों में आयोजित होने वाले हस्तशिल्प मेले में इसको बिक्री के लिए ले जाया जाता हैं.एक कावड़ एक हज़ार से शुरू होकर हज़ारों रुपयों तक साईज के अनुसार बिकती हैं.कई देशों में ऑनलाइन ऑर्डर से भी कावड़ भेजी जाती हैं.इस कला को लेकर द्वारका प्रसाद को कई पुरुष्कार भी मिले हैं.

बस्सी में दो जगहों पर बनाई जाती है कावड़

बस्सी की यह कावड़ कला देश में अपनी अनूठी छाप छोड़ती है.बस्सी में एक दो जगहों पर ही यह कावड़ बनाई जाती हैं.चित्रण के माध्यम से कावड़ से कहानी सुनानी की यह अनूठी कला पांच सौ साल से चली आ रही हैं. सरकार ऐसी लुप्त होती कलाओं को आगे बढ़ाने का प्रत्यन करें तो लुप्त होती कलाओं को बचाया जा सकता हैं.
 

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