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Explainer: संवैधानिक मान्यता और पहचान के संकट की लड़ाई! ट्विटर पर ट्रेंड कर रहा 'नहीं चाहिए राजस्थानी भाषा'

Rajasthani Language Debate: राजस्थानी भाषा को मान्यता दिलवाने की मांग कई सालों से चल रही है. इसके लिए समय-समय पर आंदोलन भी हुए हैं. पहली बार साल 2003 में राज्य विधानसभा ने एक प्रस्ताव पारित कर केंद्र को भेजा था, लेकिन राजस्थानी आधिकारिक भाषा नहीं बन पाई.

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Explainer: संवैधानिक मान्यता और पहचान के संकट की लड़ाई! ट्विटर पर ट्रेंड कर रहा 'नहीं चाहिए राजस्थानी भाषा'
राजस्थानी भाषा की बहस काफी पुरानी है.

Rajasthani Language: राजस्थानी भाषा को लेकर सालों से बहस चली आ रही है. एक और जहां राजस्थानी भाषा को संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल करवाने की जद्दोजहद है तो दूसरी और प्रदेश के भीतर ही इसको लेकर एक राय नहीं है. पश्चिमी राजस्थान को छोड़कर बाकी राजस्थान के लोगों का मानना है कि राजस्थानी भाषा के नाम पर मारवाड़ी को थोपा जा रहा है. जबकि मारवाड़ी राजस्थान के 50 में 13-14 जिलों में ही बोली जाती है.

बुधवार को विश्व मातृभाषा दिवस के मौके पर ट्रेंड करना शुरू हुआ (#नहीं_चाहिए_राजस्थानी_भाषा) 'एक्स' पर आज भी टॉप ट्रेंड कर रहा है. इसके तहत लोग राजस्थानी भाषा की मान्यता और उसकी पहचान को लेकर को लेकर बहस कर रहे हैं. एक यूजर ने लिखा, 'राजस्थानी भाषा कौनसी भाषा है मेवाड़ी, बागड़ी, मारवाड़ी, खैराड़ी, ढूंढाडी, नागौरी, गोड़वाड़ी, थाली, सिरोही, रांगड़ी, भीली, तोरावाटी, निमाड़ी, गोड़वड़ी, देवड़ाबाड़ी, दठकी, शेखावाटी, या बृज कौनसी भाषा को मान्यता की बात हो रही है? जो अपरिभाषित है?'

भारतीय ट्राइबल्स पार्टी के नेता कांतिबाई आदिवासी ने लिखा है, 'अनादिकाल से चली आ रही बोली भाषा को खत्म कर दिया है. हम राजस्थान में भील आदिवासी 1 करोड़ भीली बोलते. वहीं मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, दादरा नगर हवेली में भी भीली बोली जाती है. हम पर अन्य बोली ना थोपी जाए. देश में भील 3 करोड़ हैं.'

राजस्थानी भाषा को 8वीं अनुसूची में शामिल करने की मांग 

राजस्थानी भाषा को मान्यता दिलवाने की मांग कई सालों से चल रही है. इसके लिए समय-समय पर आंदोलन भी हुए हैं. पहली बार साल 2003 में राज्य विधानसभा ने एक प्रस्ताव पारित कर केंद्र को भेजा था, लेकिन राजस्थानी आधिकारिक भाषा नहीं बन पाई. उसके बाद साल 2009, 2015, 2017, 2019, 2020 और 2023 में भी केंद्र सरकार के पास यह आग्रह भेजा जाता रहा है. पिछली कांग्रेस सरकार ने राजस्थानी भाषा को मान्यता दिलवाने के लिए राजस्थान भाषा समिति का भी गठन किया था. 

राजस्थानी भाषा को मान्यता मिलने में अड़चनें?

राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता ना मिलने की वजहों में से सबसे बड़ी वजह इसकी लिपि न होना है. इसके अलावा राजस्थान में भी राजस्थानी भाषा को लेकर एक राय नहीं है. क्योंकि राजस्थान के अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग भाषाएं बोलियां बोली जाती हैं. राजस्थान के मारवाड़ क्षेत्र में मारवाड़ी बोली बोली जाती है, जिसमें जैसलमेर, जोधपुर, पाली, नागौर जिले आते हैं. वहीं, कोटा, झालावाड़, बूंदी और बारां जिलों में हाड़ौती बोली बोली जाती है.

वहीं दक्षिणी राजस्थान में मेवाड़ी और अलवर, भरतपुर जिलों में मेवाती बोली बोली जाती है. वहीं जयपुर के आस-पास के जिलों टोंक, अजमेर में ढूंढाड़ी और सीकर, चूरू और झुंझुनू जिलों में शेखावाटी बोली बोली जाती है. ऐसे में राजस्थानी भाषा का कोई एक सूत्र नहीं है. इस बात की स्पष्टता नहीं है कि किसे राजस्थानी भाषा कहा जाए. 

क्या होती हैं ऑफिशियल लैंग्वेज?

भारत के संविधान की आठवीं अनुसूची के आर्टिकल 344 (1) और 351 में 22 ऑफिशियल भाषाओं का जिक्र है. साल 1950 में 14 भाषाओं को आधिकारिक भाषा की सूची में डाला गया. उसके बाद 1967 में सिंधी और 1992 में चार भाषाओं कोंकणी, मणिपुरी और नेपाली भाषाओं को भी आधिकारिक भाषा की सूची में शामिल किया गया. वहीं, आखिरी बार 2004 में चार भाषाओं बोडो, डोगरी, मैथिली और संथाली को भी आधिकारिक भाषाओं की लिस्ट में शामिल किया गया था. 

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