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This Article is From Mar 08, 2024

Maha Shivratri 2024: वागड़ क्षेत्र में पहाड़, गुफा और पानी के बीच में बसते हैं भोलेनाथ

Banswara Temples: बांसवाड़ा में शिवजी के मंदिर पहाड़, गुफा और पानी के बीच बने हुए हैं. अपने आराध्य देव महादेव की पूजा अर्चना और दर्शन के लिए श्रद्धालुओं ने हर गांव में मंदिर बनाए हैं.

Maha Shivratri 2024: वागड़ क्षेत्र में पहाड़, गुफा और पानी के बीच में बसते हैं भोलेनाथ

Famous Temples in Rajasthan: वागड़ में पहाड़, गुफा और नदियों में पानी के बीच शिवजी का परिवार रहता है. बांसवाड़ा के हर गांव में अमूमन शिवजी के मंदिर प्रतिष्ठापित हैं. अपने आराध्य देव महादेव की पूजा अर्चना और दर्शन के लिए श्रद्धालुओं ने हर गांव में मंदिर बनाए हैं. बांसवाड़ा में शिवजी के मंदिर पहाड़, गुफा और पानी के बीच बने हुए हैं. बांसवाड़ा दाहोद रोड़ पर पाडीकला गांव में रामेश्वर महादेव का मंदिर पहाड़ी पर बना है, यहां शिवरात्रि पर मेला भरता है. बांसवाड़ा जयपुर मार्ग पर खमेरा में भाटिया महादेव का मंदिर गुफा में हैं. यहां पर भी शिवरात्रि पर बांसवाड़ा, डूंगरपुर, प्रतापगढ़ समेत मध्यप्रदेश के श्रद्धालु भी आते हैं. इसके अलावा आनंदपुरी के पास माही और अनास नदी के संगम पर पानी के बीच में संगमेश्वर महादेव मंदिर, बदरेल के पास खांदू खुर्द गांव में नदी के बीच चारणेश्वर महादेव मंदिर, शहर में कागदी नदी के बीच में अंकलेश्वर महादेव मंदिर बना हुआ. ये तीनों मंदिरों में बारिश की सीजन में चार माह तक पानी में डूबे रहते हैं. संगमेश्वर और चारणेश्वर महादेव मंदिर में पूजा अर्चना और दर्शन के लिए श्रद्धालु नाव से जाते हैं.

32 कलात्मक पाषाण स्तंभों पर बना है रामेश्वर मंदिर

पाडीकला गांव में ऊंची पहाड़ी पर प्राचीन रामेश्वर महादेव मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में होना बताया जा रहा है. यह मंदिर 32 कलात्मक पाषाण स्तंभों पर बना है. इस पूर्वाभिमुख मंदिर में काले रंग के स्वयंभू शिवलिंग है. इसके पास ही माता पार्वती की मूर्ति प्रतिष्ठापित की गई है. यहीं पर द्वारपाल के रूप में भैरवजी की आकर्षक प्रतिमा है. जनश्रुतियों के अनुसार, 800 साल पुराने इस मंदिर को मुगल शासक औरंगजेब ने तुड़वा दिया था, जिसके खंडित स्तंभ आज भी मौजूद हैं. मंदिर का जीर्णोद्धार 16वीं शताब्दी में करवाया गया था. जबकि मुख्य मंदिर तक पहुंचने के लिए 125 सीढ़ियां बनवाई है. ताकि श्रद्धालु पहाड़ी पर बने इस मंदिर तक आराम से जा सके. सूत्रधार समाज की वंशगाथा संग्रहीत करने वाले भाट के चौपड़े में वर्णित तथ्यों में इस मंदिर को सूत्रधार समाज द्वारा बनवाना बताया गया है. इनके वंशज पास ही के बड़ोदिया में रहते हैं. इस स्थान के बारे में कहा जाता है कि पांडव अपना अज्ञातवास काल बिताने के लिए यहीं से होकर घोटिया आंबा गए थे. मंदिर में वर्तमान में पं. इच्छाशंकर शर्मा द्वारा शिवजी की पूजा अर्चना की जाती है.

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मवेशी चराने वाले ग्वालों ने देखा था गुफा में शिवलिंग

खमेरा ग्राम पंचायत के भाटिया गांव में पहाड़ी पर गुफा में प्राचीन गोपेश्वर महादेव मंदिर है. लोक मान्यता के अनुसार पहले यहां घना जंगल था, उस दौरान मंदिर के सामने से बड़ी नदी बहती थी, जो अब नाला बन चुकी है. करीब 500 साल पहले जंगल में कुछ ग्वाले गाय भैंस, बकरियां चराने आया करते थे. मवेशियों को नदी में पानी पिलाने के लिए गए तो किनारे पर चट्टानों के बीच एक छोटा सा गहराई वाला छेद देखा. उसमें पत्थर डाला तो वह गहराई में चला गया. इसके बाद मशाल जलाकर छेद में झांका तो अंदर एक बड़ी गुफा नजर आई. एक दो लोग रेंगकर उसमें घुसे, जहां शिवलिंग, नदी, भगवान गणेशजी की स्थापित मूर्तियां मिली. ग्रामीण तब से यहां रोज पूजा अर्चना करने लग गए. कुछ दिनों बाद मंदिर के आगे गिरी चट्टान टूटकर खिसककर गिर गई. अब गुफा में जाने का रास्ता बन गया. लोगों ने इसे भगवान शिवजी का चमत्कार व चट्टान पर स्वयं भगवान के पदचिन्ह मानते हुए फिर से गुफा में पूजा अर्चना करनी शुरू कर दी. गुफा में अंदर शिवलिंग के तीनों ओर 3 सुरंग थी. कुछ साधु संतों और ग्रामीणों ने देखा कि सुरंग के अंदर पगडंडी बनी हुई है. बुजुर्गों के अनुसार इस सुरंग का पता लगाया तो यह प्रतापगढ़ के गौतमेश्वर मंदिर में निकलती है.

Maha Shivratri 2024

Maha Shivratri 2024
Photo Credit: NDTV Reporter

चार माह तक पानी में रहते हैं भोले बाबा

शहर से करीब 62 किमी दूर पंचायत समिति अरथूना की इटाउवा ग्राम पंचायत के बिलड़ी भैसाऊ गांव की सीमा पर बना यह मंदिर एक हजार साल पुराना बताया जा रहा है. माही और अनास नदी के संगम तट पर बना यह मंदिर बारिश के मौसम में चार माह तक पानी में डूबा रहता है. इस दौरान नाव के सहारे पूजा अर्चना और दर्शन के लिए श्रद्धालु जाते हैं. शेष आठ माह यहां पर सड़क मार्ग से जाया जाता है. मंदिर में भगवान की पूजा अर्चना भैसाऊ के कटारा परिवार द्वारा की जाती है. मंदिर में आमली ग्यारस और शिवरात्रि पर मेला भरता है, जहां राजस्थान, गुजरात और मध्यप्रदेश के श्रद्धालु आते हैं. इस मंदिर में दर्शन के लिए अरथूना और आनंदपुरी से नाव के जरिये जा सकते हैं. वहीं सड़क मार्ग से अरथूना की इटाउवा पंचायत से होकर जाते हैं. बांसवाड़ा डूंगरपुर के बी माही अनास नदी के बीच में बने इस मंदिर में शिवरात्रि और आमली ग्यारस पर विशाल मेला भरता है. बारिश की सीजन में इसकी टूरिस्ट प्वॉइंट के रूप में पहचान होती है. इसे चमत्कारी मंदिर भी कहा जाता है. श्रद्धालुओं द्वारा यहां पर जो भी मन्नत मांगी जाती है, वह जरूर पूरी होती है.

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