विज्ञापन

Rajasthan: राजा ने नरबलि नहीं दी तो देवी ने फेर लिया मुंह , आज भी उसी रूप में होते हैं माता के दिव्य दर्शन, जानें पूरी कहानी

Rajasthan Tourism: आमेर किले के निर्माण की शुरुआत 16वीं शताब्दी के अंत में राजा मान सिंह ने की थी. इसमें स्थापित शिला माता को काली मां का ही एक रूप माना जाता है.

Rajasthan: राजा ने नरबलि नहीं दी तो देवी ने फेर लिया मुंह , आज भी उसी रूप में होते हैं माता के दिव्य दर्शन, जानें पूरी कहानी
Shila Mata Mandir

Shila Mata Mandir: राजस्थान के जयपुर में आमेर किला विश्व में अपनी एक अलग ही पहचान रखता है.  एक पहाड़ी के ऊपर, माओटा झील के सामने स्थित लाल बलुआ पत्थर और सफेद संगमरमर से बना यह किला अब यूनेस्को (UESCO) विश्व धरोहर सूची में शामिल है. यह वास्तुकला और स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है.

आमेर किला

आमेर किला

Credit- IANS

इसी में मौजूद मां शिला देवी का मंदिर ( Shila Mata Mandir ) काफी सालों पुराना है. जिसकी महिमा आज भी बरकरार है. इसमें मां काली की मूर्ति को स्थापित किया गया है जिसे शासक मान कर यहां के राजाओं ने राज किया.

राजा मानसिंह ने प्रथम शिला माता शक्तिपीठ की स्थापना की

आमेर किले के निर्माण की शुरुआत 16वीं शताब्दी के अंत में राजा मान सिंह ने की थी. इसमें स्थापित शिला माता को काली मां का ही एक रूप माना जाता है. कहा जाता है कि जयपुर राजवंश के शासकों ने माता को ही शासक मानकर राज्य किया. मां के आशीर्वाद से आमेर के राजा मानसिंह ने 80 से अधिक युद्ध जीते थे. शिला माता शक्तिपीठ की स्थापना राजा मानसिंह प्रथम के जरिए कराई गई थी. इसलिए कहा जाता हैं कि शिलादेवी जयपुर के कछवाहा राजपूत राजाओं की कुल देवी हैं.

माता का मुख उत्तर दिशा की ओर

माता का मुख उत्तर दिशा की ओर

 नरबलि नहीं देने में पेर लिया था माता ने मुंह

मान्यता है कि माता ने राजा मानसिंह से वचन लिया था कि उन्हें प्रतिदिन एक नरबलि दी जाएगी. कुछ समय तक तो राजाओं ने अपना वचन निभाया, लेकिन बाद में नरबलि की जगह पशुबलि दी जाने लगी. इस पर माता नाराज हो गईं और अपना मुख उत्तर दिशा की ओर कर लिया. आज भी माता का मुख उत्तर दिशा की ओर ही है.आखिरी पशुबलि 1972 में दी गई थी. इसके बाद जैन अनुयायियों के विरोध के बाद इसे बंद कर दिया गया।

महिषासुर मर्दिनी के रूप में है देवी की मूर्ति

इसके बाद 1906 में मानसिंह द्वितीय ने शिला माता मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया.  पूरा मंदिर संगमरमर से बना है. शिला माता की मूर्ति काले पत्थर से बनी है जो एक शिलाखंड पर विराजमान है. देवी के दाहिने हाथ में तलवार, चक्र, त्रिशूल, बाण और बाएं हाथ में ढाल, अभय मुद्रा, सिर और धनुष है. जिसमें देवी को महिषासुर मर्दिनी के रूप में दिखाया गया है.

माता का केवल दिखता है मुंह और हाथ

इस मूर्ति को हमेशा वस्त्रों और लाल गुलाब से ढका रखा जाता है. जिसमें केवल माता का केवल मुंह और हाथ ही दिखाई देते हैं. इस मूर्ति में देवी मां एक पैर से महिषासुर को दबा रही हैं तथा दाहिने हाथ के त्रिशूल से उस पर प्रहार करती हुई दिख रही हैं. इसीलिए देवी की गर्दन दाहिनी ओर मुड़ी हुई है. यह मूर्ति चमत्कारी मानी जाती है.  शिला देवी के बाई ओर कछवाहा राजाओं की कुलदेवी अष्टधातु की हिंगलाज माता की मूर्ति भी बनी हुई है. साथ ही शिला माता देवी के बायीं से दायीं ओर भगवान गणेश, ब्रह्मा, शिव, विष्णु एवं कार्तिकेय की अपने वाहनों पर सवारी करते हुए प्रतिमाएं स्थापित की गई है.

चांदी की प्लेट से ढका हुआ द्वार

चांदी की प्लेट से ढका हुआ द्वार

चांदी की प्लेट से ढका हुआ है प्रवेश द्वार

मंदिर का प्रवेश द्वार चांदी की प्लेट से ढका हुआ है, जिस पर दस महाविद्याओं और नवदुर्गा की आकृतियां उकेरी गई हैं. इसका मुख्य द्वार चांदी से बना है. जिसपर नवदुर्गा, शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री की मूर्तियां प्रतिष्ठित हैं. यहां दस महाविद्याओं  को काली, तारा, षोडशी, भुवनेश्वरी, छिन्नमस्ता, त्रिपुरभैरवी, धूमावती, बगलामुखी, श्रीमातंगी और कमला देवी के रूप में दर्शाया गया है. मंदिर में मीणाओं की कुल देवी हिंगला की मूर्तियां भी स्थापित हैं. कहते हैं कि कछवाहा राजवंश से पहले यहां मीणाओं का शासन था.

Rajasthan.NDTV.in पर राजस्थान की ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें. देश और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं. इसके अलावा, मनोरंजन की दुनिया हो, या क्रिकेट का खुमार, लाइफ़स्टाइल टिप्स हों, या अनोखी-अनूठी ऑफ़बीट ख़बरें, सब मिलेगा यहां-ढेरों फोटो स्टोरी और वीडियो के साथ.

फॉलो करे:
डार्क मोड/लाइट मोड पर जाएं
Previous Article
Rajasthan: झालरापाटन का द्वारकाधीश मंदिर, जहां अपराधियों को मिलती है माफी और किसानों-व्यापारियों को मार्गदर्शन
Rajasthan: राजा ने नरबलि नहीं दी तो देवी ने फेर लिया मुंह , आज भी उसी रूप में होते हैं माता के दिव्य दर्शन, जानें पूरी कहानी
Lal chhatri and Darikhana darshan was completed in the Dwarkadhish temple Jhalrapatan
Next Article
भगवान कृष्ण का दर्शन करने 3 दिन बाद पहुंचे थे महादेव, जानें लाल छतरी के दर्शन की वर्षों पुरानी मान्यता 
Close