
Ghusmeshwar Mahadev Mandir: राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले से लगभग 40 किलोमीटर दूर शिवाड़ में स्थित घुश्मेश्वर महादेव मंदिर भक्तों के लिए आस्था का एक महत्वपूर्ण केंद्र है. यह मंदिर देश के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक आखिरी माना जाता है, और विशेष रूप से श्रावण मास में यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है.
अद्भुत इतिहास और पौराणिक महत्व
घुश्मेश्वर महादेव मंदिर का इतिहास बेहद अद्भुत है, जो इसे और भी खास बनाता है. पौराणिक कथा के अनुसार, देव गिरी पर्वत के पास सुधर्मा नामक एक ब्राह्मण और उनकी पत्नी सुदेहा रहते थे. संतान सुख से वंचित सुदेहा ने अपनी छोटी बहन घुश्मा का विवाह अपने पति से करवा दिया. सुषमा भगवान शंकर की अनन्य भक्त थीं, और कुछ समय बाद उन्हें एक पुत्र प्राप्त हुआ.
मौसी ने ली थी भांजे की जान
संतान होने की खुशी की बजाय, सुदेहा को अपनी बहन से ईर्ष्या होने लगी. इसी जलन में आकर सुदेहा ने घुश्मा के युवा पुत्र को रात में सोते समय मार डाला. उसके शव को ले जाकर उसने उसी तालाब में फेंक दिया, जिसमें घुश्मा प्रतिदिन पार्थिव शिवलिंगों को विसर्जित करती थी.

स्वयंभू शिलविंग
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जब भगवान शिव को आया क्रोध
उधर, घुश्मा हर रोज की तकह भगवान शिव की आराधना में लीन रही. जैसे कुछ हुआ ही न हो. पूजा समाप्त करने के बाद वह पार्थिव शिवलिंगों को तालाब में छोड़ने के लिए चल पड़ी. जब वह तालाब से लौटने लगी, तो उसी समय उसका पुत्र तालाब के भीतर से निकलकर आता हुआ दिखलाई पड़ा. उसने सदा की भांति आकर घुश्मा के चरणों का स्पर्श किया, जैसे कहीं आस-पास से ही घूमकर आ रहा हो.
इसी समय भगवान शिव भी वहां प्रकट हुए. घुश्मा की भक्ति से प्रसन्न होकर उन्होंने उसे वर मांगने को कहा. साथ ही, महादेव ने सुदेहा की घनौनी हरत के लिए उसका गला काटने को तैयार थे.इसपर घुश्मा ने हाथ जोड़कर उनसे उसे क्षमा करने की प्रार्थना की.
घुश्मा की भक्ति का उदाहरण है घुश्मेश्वर महादेव मंदिर
घुश्मा ने लोक-कल्याण के लिए उसी स्थान पर हमेशा के लिए रहने का निवेदन किया. जिसे महादेव स्वीकार किया. और 12 वें और आखिरी ज्योतिर्लिंग के रूप में वहां प्रकट होकर वहीं निवास करने लगे. सती शिव-भक्त घुश्मा के आराध्य होने के कारण वे यहां घुश्मेश्वर महादेव के नाम से जाने जाते है.
लगभग 900 वर्ष पुराना बताया जाता है मंदिर
इस मंदिर को लगभग 900 वर्ष पुराना बताया जाता है. यहां स्थापित शिवलिंग अपने आप प्रकट हुए हैं और इसे पाताल से जुड़ा हुआ माना जाता है. वेदों और उपनिषदों में भी शिवाड़ के घुश्मेश्वर महादेव का वर्णन मिलता है, और महर्षि वेदव्यास ने भी उपनिषद में इस मंदिर का बखान किया है.

गिरी पर्वत
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देव गिरी पर्वत है एक विशेष आकर्षण
घुश्मेश्वर महादेव मंदिर में देव गिरी पर्वत भी लोगों के लिए एक विशेष आकर्षण का केंद्र है.मंदिर ट्रस्ट ने इस पहाड़ी पर स्थित देवी मंदिर को विकसित किया है और विभिन्न देवी-देवताओं की बड़ी-बड़ी प्रतिमाएं स्थापित की हैं, जो इसे एक अनूठा धार्मिक स्थल बनाती हैं.
किवदंतियां और दावे
शिवाड़ स्थित घुश्मेश्वर महादेव मंदिर को लेकर कई तरह की किवदंतियां भी प्रचलित हैं. ऐसा कहा जाता है कि भगवान शिव के 12वें ज्योतिर्लिंग का नाम 'घुश्मेश्वर' है.हालांकि, इस ज्योतिर्लिंग के स्थान को लेकर कुछ दावे और आपत्तियां भी हैं. जहां कुछ लोग इसे राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले के शिवाड़ स्थित शिवालय घुश्मेश्वर महादेव मंदिर को द्वादश ज्योतिर्लिंग मानते हैं, वहीं कुछ लोग घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के दौलताबाद के बेरूलठ गांव के पास होने का दावा करते हैं.

भक्तों की अटूट आस्था
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भक्तों की अटूट आस्था और विशेष आयोजन
घुश्मेश्वर महादेव मंदिर के प्रति लोगों की विशेष आस्था जुड़ी हुई है. श्रावण मास के दौरान मंदिर ट्रस्ट द्वारा एक महीने तक विशेष धार्मिक आयोजन किए जाते हैं. इस दौरान सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु प्रतिदिन मंदिर पहुंचते हैं और शिव आराधना करते हैं. शिव भक्त भगवान को प्रसन्न करने के लिए आंक, धतूरा और बेलपत्र अर्पित करते हैं.
धार्मिक पर्यटन का प्रमुख केंद्र
शिवाड़ स्थित घुश्मेश्वर महादेव मंदिर को राजस्थान सरकार द्वारा धार्मिक पर्यटन के लिहाज से प्रदेश के 20 धार्मिक पर्यटन स्थलों में पहले पायदान पर रखा गया है. मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष प्रेम प्रकाश शर्मा का कहना है कि श्रावण महोत्सव के दौरान मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं के लिए ट्रस्ट द्वारा समुचित व्यवस्था की गई है, जिसमें प्रशासन का भी भरपूर सहयोग मिल रहा है.
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