Rajasthan News: चित्तौड़गढ़ जिले के दो अभ्यारण में पिछले 4 सालों में सिर्फ एक बार वन्यजीव की गणना हो सकी, इसका कारण कोरोना और मौसम की खराबी बताई जाती है. जिले के बस्सी और सीता माता अभ्यारण्य में 2022 में हुई गणना में पैंथर के कुनबों में बढ़ोतरी हुई हैं. साल 2020 और 2021 में कोरोना के चलते वन्यजीव की गणना नहीं की जा सकी. हालांकि हर साल बैशाखी पूर्णिमा के अवसर पर वन्यजीव की गणना की जाती है.
बता दें कि 24 घण्टे पानी स्त्रोत पर निगरानी रखकर और अन्य तरीकों से वन्यजीव की गणना की जाती हैं. इसमें दिन से लेकर चांदनी रात के समय पानी के जलस्त्रोत पर पेड़ों पर उनके मचान बनाकर, पत्थरों से बनी विशेष झोपड़ी से निगरानी रखने और अन्य माध्यमों से वन्यजीव की गणना की जाती हैं.
2022 में हुई वन्यजीव गणना में 56 पैंथर
2022 वन्यजीव में हुई गणना के मुताबिक बस्सी अभ्यारण्य में 3 नर, 2 मादा, 1 शावक और 8 अज्ञात पैंथर (नर-मादा का पता नहीं होना) समेत कुल 14 पैंथर की गणना की गई. वहीं 186 सियार, 26 जरख, 23 जंगली बिल्ली, 40 लोमड़ी, 21 छोटा बिज्जू, दो कबर बिज्जू, 678 नीलगाय, 129 चिंकारा, 52 चीतल, 12 चौसिंगा, 385 जंगली सुअर, 33 सेही, 1577 लंगूर, 16 गिद्ध, समेत सारस, जंगली मुर्गा, शिकारी पक्षी, मोर आदि की गणना की गई. यह वाटर होल के आधार पर की गई वन्यजीव की गणना थी.
सीतामाता वन्यजीव अभ्यारण्य में 108 उड़न गिलहरी
वर्ष 2022 में फील्ड स्टाफ के आधार पर सीतामाता अभ्यारण्य में वन्यजीवों में 108 उड़न गिलहरी की गणना हुई हैं. इस अभ्यारण्य में पैंथरों की संख्या में 6 नर, 3 मादा, 2 बच्चे और 46 अज्ञात समेत कुल 57 पैंथर की गणना की गई. वहीं 762 सियार, 171 जरख, 197 जंगली बिल्ली, 184 लोमड़ी, 91 छोटा बिज्जू, 12 बड़ा बिज्जू, 14 कबर बिज्जू, 10 चींटी खोरा, 35 साम्भर, 1297 नीलगायें, 312 चौसिंगा, 1113 जंगली सुअर, 140 सेही, 108 उड़न गिलहरी, 4517 लंगूर, 10 गिद्ध समेत जंगली मुर्गा, शिकारी पक्षी और मोर की गणना की गई.
इस बार वन्यजीवों के गणना की संभावना
वर्ष 2020 से 2023 के इन चार सालों में वर्ष 2022 में ही वन्यजीव की गणना हो सकी. 2023 में बदले मौसम के मिजाज से वन्यजीव की गणना नहीं हो सकी. इस बार मौसम ने साथ दिया तो इस साल मई में वन्यजीवों की गणना होने की संभावना हैं.
ऐसे होती हैं गणना
बस्सी और सीतामाता सेंचुरी में वन्यजीवों की गणना के समय वाटर होल के पास अलग-अलग पेड़ों पर मचान बनाएं जाते हैं. मचान पर बैठकर वन्यजीव पर निगरानी की जाती हैं. कई जगह पत्थरों की बनी झोपड़ी में बैठकर कर 24 घण्टे तक वन्यजीव की गणना की जाती हैं.
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