भले ही अभिभावक अपनी बेटियों और बात मानने वाले बच्चों का पक्ष अधिक लेते हों. पर आम तौर पर छोटी संतान ही माँ-बाप की अधिक चहेती होती हैं. पारिवारिक गतिशीलता का विश्लेषण करने वाले अध्ययनों की समीक्षा में यह दावा किया गया है. हालांकि, बड़े बच्चों को अक्सर अधिक स्वायत्तता दी जाती है, क्योंकि उम्र बढ़ने के साथ माता-पिता कम नियंत्रण वाले हो जाते हैं. लगभग 19,500 प्रतिभागियों पर आधारित 30 अध्ययनों और 14 डेटाबेस की समीक्षा में यह पाया गया.
कम पसंदीदा बच्चे पर पड़ता नकारात्मक प्रभाव
समीक्षा के प्रमुख लेखक और अमेरिका स्थित ब्रिघम यंग विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर अलेक्जेंडर जेन्सेन ने कहा, "दशकों से शोधकर्ता जानते हैं कि माता-पिता के पक्षपातपूर्ण व्यवहार का बच्चों पर स्थायी परिणाम हो सकता है." यह समीक्षा ‘साइकोलॉजिकल बुलेटिन' पत्रिका में प्रकाशित हुई है. जेन्सेन ने कहा कि यह अध्ययन हमें यह समझने में मदद करता है कि किन बच्चों को पक्षपात का शिकार होने की अधिक संभावना है, जो सकारात्मक और नकारात्मक दोनों हो सकता है.
अलग-अलग व्यवहार से विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है खासकर कम पसंदीदा बच्चे पर. इसके अलावा इससे तनावपूर्ण पारिवारिक रिश्ते भी पैदा हो सकते हैं. माता और पिता, दोनों के ही बेटियों का पक्ष लेने की अधिक संभावना रहती है. इसके अलावा जो बच्चे अधिक कर्तव्यनिष्ठ (जिम्मेदार) और आज्ञाकारी थे उन्हें भी तरजीह दी गई, जिससे पता चला कि माता-पिता के लिए इन बच्चों को संभालना आसान हो सकता है और इसलिए वे उनके प्रति अधिक सकारात्मक रुख अपना सकते हैं.
आज्ञाकारी बच्चों को मिला पसंदीदा व्यवहार
लेखकों ने लिखा, "कर्तव्यनिष्ठ और आज्ञाकारी बच्चों को भी अधिक पसंदीदा व्यवहार मिला." जब जन्म क्रम आधारित औसत की बात आती है, तो छोटे भाई-बहनों को कुछ हद तक तरजीह मिलती है. जेन्सेन के अनुसार, माता-पिता के बड़े भाई-बहनों को अधिक स्वायत्तता देने की संभावना रहती है, संभवतः इसलिए क्योंकि वे अधिक परिपक्व थे. इन बारीकियों को समझने से माता-पिता और चिकित्सकों को संभावित रूप से हानिकारक पारिवारिक पैटर्न को पहचानने में मदद मिल सकती है.
यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि सभी बच्चे प्यार और समर्थन महसूस करें. जेन्सेन ने कहा कि अध्ययन परस्पर संबद्धता पर आधारित है इसलिए यह नहीं बताता कि माता-पिता कुछ बच्चों का पक्ष क्यों ले सकते हैं. हालांकि, यह उन संभावित क्षेत्रों पर प्रकाश डालता है जहां माता-पिता को अपने बच्चों के साथ बातचीत के प्रति अधिक सचेत रहने की आवश्यकता हो सकती है.