Health News: भारत के आदिवासी समुदायों के लिए तेंदूफल सिर्फ एक फल नहीं, बल्कि उनकी संस्कृति और आजीविका का आधार है. ‘हरा सोना' कहलाने वाला तेंदूफल और इसके पत्ते आदिवासियों को आर्थिक सशक्तिकरण के साथ-साथ स्वास्थ्य लाभ भी दे रहे हैं.
आदिवासियों की आय का नया स्रोत
छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और ओडिशा जैसे राज्यों में तेंदूफल और पत्तों का संग्रहण आदिवासियों के लिए रोजगार का बड़ा माध्यम बना है. छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में इस साल 4,500 आदिवासी परिवारों को तेंदूपत्ता संग्रहण से रोजगार मिला.
सरकार ने तेंदूपत्ता का दाम बढ़ाकर 5,500 रुपये प्रति मानक बोरा कर दिया, जिससे एक परिवार को रोजाना 1,500 रुपये तक की कमाई हो रही है. खास बात यह है कि इस काम में 60% से ज्यादा महिलाएं शामिल हैं, जो उनकी आर्थिक स्वतंत्रता को बढ़ावा दे रहा है.
सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व
आदिवासी समुदायों जैसे गोंड, बैगा और कोरकू में तेंदूफल का विशेष स्थान है. इसे ‘वन देवता का आशीर्वाद' माना जाता है और त्योहारों में प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है. तेंदूपत्ता को भी भगवान का प्रसाद समझा जाता है, जो आदिवासियों की आस्था का प्रतीक है.
सेहत का खजाना
तेंदूफल में विटामिन सी, आयरन और एंटीऑक्सीडेंट्स भरपूर मात्रा में होते हैं, जो कुपोषण, पेट के रोग, दस्त और त्वचा की समस्याओं से लड़ने में मदद करते हैं. आयुर्वेद में इसके पत्तों और छाल का उपयोग दवाइयों में होता है. यह फल कैंसर और हृदय रोगों से बचाव में भी सहायक है. कम कैलोरी वाला यह फल वजन नियंत्रण और त्वचा की चमक के लिए भी फायदेमंद है.
नए उत्पादों से बढ़ रही आय
गैर-सरकारी संगठन आदिवासियों को तेंदूफल से जूस, जैम और हर्बल उत्पाद बनाने का प्रशिक्षण दे रहे हैं. इससे उनकी आय दोगुनी हो रही है. विशेषज्ञ मानते हैं कि तेंदूफल की खेती और इसके उत्पादों को बढ़ावा देकर ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत किया जा सकता है. तेंदूफल आज आदिवासियों के लिए आर्थिक और स्वास्थ्यवर्धक समृद्धि का प्रतीक बन चुका है.
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