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पारसी थे रतन टाटा, क्या है 'टॉवर ऑफ साइलेंस' जहां अपने प्रियजनों के शवों को छोड़ देते हैं पारसी धर्म के लोग? 

Ratan Naval Tata Passes Away: पारसी धर्म के लोगों का मानना है कि शव प्रकृति का है और वो उसे प्रकृति के सुपुर्द कर देते हैं. भारत में पहला 'टॉवर ऑफ साइलेंस' 1822 में कोलकाता में बना था.

पारसी थे रतन टाटा, क्या है 'टॉवर ऑफ साइलेंस' जहां अपने प्रियजनों के शवों को छोड़ देते हैं पारसी धर्म के लोग? 
Ratan Tata Death

Ratan Tata Death: देश के दिग्गज कारोबारी टाटा समूह (Tata Group) के प्रमुख रतन टाटा का बुधवार रात को निधन हो गया. 86 साल के रतन टाटा (Ratan Tata) की तबीयत बीते कुछ दिनों से खराब चल रही थी. उनका मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में इलाज चल रहा था. रतन टाटा के निधन पर कारोबार जगत में शोक की लहर छाई है. एक कारोबारी से कहीं ज्यादा परोपकारी जैसा जीवन जीने वाले रतन टाटा के निधन से लोग उदास हैं.

रतन टाटा पारसी धर्म को मानते थे. रतन टाटा ने 8 दिसंबर 1937 को मुंबई में एक पारसी परिवार में जन्म लिया था. रतन टाटा पिता नेवल टाटा और सूनी कमिसारीट के बेटे थे. रतन टाटा जब 10 साल के थे, तब उनके मां-बाप अलग हो गए थे. इससे रतन टाटा का अपना बचपन और किशोरावस्था दादी के साथ गुजारन पड़ा था. 

रतन टाटा का अंतिम संस्कार पारसी धर्म के अनुसार ही किये जाने की संभावना है. ऐसे में आइए जानते हैं कि पारसी धर्म में अंतिम संस्कार कैसे होता है. 

क्या है 'टॉवर ऑफ साइलेंस' ?

पारसी धर्म दुनिया के सबसे पुराने धर्मों में से एक है. पारसियों में अंतिम संस्कार का तरीका काफी अलग है. इस प्रक्रिया में  पारसी धर्म के लोग अपने प्रियजनों के शवों को एक 'गोल इमारत' में छोड़ जाते हैं. इस इमारत को 'टॉवर ऑफ साइलेंस' कहा जाता है. शव को छोड़ने के बाद उसे गिद्ध या दूसरे जानवर खा जाते हैं. इस पूरी प्रक्रिया को 'दख्मा' कहा जाता है. 

कोलकाता में बना पहला 'टॉवर ऑफ साइलेंस'

पारसी धर्म के लोगों का मानना है कि शव प्रकृति का है और वो उसे प्रकृति के सुपुर्द कर देते हैं. भारत में पहला 'टॉवर ऑफ साइलेंस' 1822 में कोलकाता में बना था. पारसी धर्म के लोग मानते हैं कि शवों को जलाने से वायु प्रदूषण होता है, शवों को अगर नदी में फेंका जाए तो इससे पानी प्रदूषित होता है, इसलिए वो शवों को कुदरत के हवाले कर देते हैं. 

अब कम हुआ चलन 

हालांकि अब 'टॉवर ऑफ साइलेंस' में शवों को रखने का चलन कम हो गया है. बीबीसी की एक रिपोर्ट में पारसी धर्म के लोग बताते हैं कि अब 'टॉवर ऑफ साइलेंस' के आस-पास आबादी बढ़ रही है, जिससे ऐसा करना अब प्रैक्टिकल नहीं रहा. अब शवों को खाने वाले गिद्ध भी नजर नहीं आते. ऐसे में शव को प्राकृतिक तौर पर डिकम्पोज़्ड नहीं किया जा सकता है. 

इन सब वजहों के बाद अब पारसी शवों को या तो जलाते हैं या फिर दफनाते हैं. 

भारत में पारसी धर्म को मानने वालों की तादाद करीब 70 हजार है. इनमें से ज्यादार पारसी मुंबई में रहते हैं. इसके अलावा कोलकाता, गुजरात और चेन्नई में भी पारसी रहते हैं. भारत में दो 'टॉवर ऑफ साइलेंस' हैं, जिसमें से दूसरा मुंबई में हैं.

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