
Allahabad High Court: उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के बलात्कार संबंधी हालिया दृष्टिकोण पर कड़ी आपत्ति जताई तथा उसकी टिप्पणियों को पूर्णतः ‘‘असंवेदनशील'' तथा ‘‘अमानवीय दृष्टिकोण'' वाला बताते हुए इन पर रोक लगा दी. इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 17 मार्च के अपने एक आदेश में कहा था की महज स्तन पकड़ना और ‘पायजामे' का नाड़ा खींचना बलात्कार के अपराध के दायरे में नहीं आता.
इसे 'बेहद गंभीर मामला' करार देते हुए न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा, ‘‘ सामान्य परिस्थितियों में हम इस स्तर पर स्थगन देने में सुस्त हैं. लेकिन चूंकि पैराग्राफ 21, 24 और 26 में की गई टिप्पणियां कानून के सिद्धांतों से पूरी तरह अलग हैं और पूरी तरह असंवेदनशील और अमानवीय दृष्टिकोण वाली हैं, इसलिए हम उक्त टिप्पणियों पर स्थगन देने के लिए इच्छुक हैं.''
अदालत ने इस मामले में स्वत: संज्ञान लिया
दरअसल ‘‘वी द वूमेन ऑफ इंडिया'' नामक संगठन उच्च न्यायालय द्वारा की गई विवादास्पद टिप्पणियों को प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना के संज्ञान में लाया जिसके बाद शीर्ष अदालत ने इस मामले में स्वत: संज्ञान लिया. उच्च न्यायालय की विवादास्पद टिप्पणियों पर रोक लगाने का तात्पर्य यह है किसी तरह की विधिक प्रक्रिया में इनका आगे इस्तेमाल नहीं किया जा सकेगा.
केंद्र, उत्तर प्रदेश सरकार और अन्य को नोटिस जारी किया गया
पीठ ने कहा, ‘‘ हमें न्यायाधीश के खिलाफ ऐसे कठोर शब्दों का प्रयोग करने के लिए खेद है.'' पीठ ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 17 मार्च के आदेश से संबंधित मामले में स्वत: संज्ञान लेते हुए शुरू की गई कार्यवाही में केंद्र, उत्तर प्रदेश सरकार और अन्य को नोटिस जारी किया.
मामले की सुनवाई दो सप्ताह बाद की जाएगी
पीठ ने उच्चतम न्यायालय के रजिस्ट्रार (न्यायिक) को निर्देश दिया कि वह अपना आदेश इलाहाबाद उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार को बताएं, जिसके बाद इसे "तुरंत" वहां के मुख्य न्यायाधीश के समक्ष रखा जाएगा. उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से मामले की जांच करने और उचित कदम उठाने का आग्रह किया गया. पीठ ने कहा कि मामले की सुनवाई दो सप्ताह बाद की जाएगी.
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