बचपन में मैं जब अपने घर मुजफ्फरपुर से ननिहाल समस्तीपुर ट्रेन से जाता था तो समस्तीपुर से ठीक पहले ट्रेन कर्पूरीग्राम स्टेशन पर रुका करती थी. इस छोटे स्टेशन पर एक्सप्रेस और लंबी दूरी की ट्रेनों का ठहराव नहीं है. यहां इंटरसिटी और पैसेंजर ट्रेनें ही रुका करती हैं. साथ ही इस स्टेशन पर यात्री ट्रेनों से इतर हमेशा मालगाड़ियां खड़ी नजर आती थी. जिसमें किसी पर गिट्टी, किसी पर खाद तो किसी पर सीमेंट लदा होता था. गर्मी हो या ठंडी यहां हमेशा डोरी वाली हाफ पैंट पहने धूल से सने दर्जनों मजदूर मालगाड़ियों से बोरियां उतारते नजर आते थे.
मुजफ्फरपुर से समस्तीपुर से बीच पड़ने वाले अन्य स्टेशन ढोली, दुबहा, पूसारोड (खुदीराम बोस) से कर्पूरीग्राम अलग था. यहां यात्रियों से ज्यादा मजदूरों की चहल-पहल नजर आती थी. ऐसे में मैं अपने पापा से पूछता था यहां यात्रियों से ज्यादा मजदूर क्यों हैं?
तब वो बताते थे कि यह रैक प्वाइंट है. रैक प्वाइंट मतलब वैसे स्टेशन जहां यात्रियों की आवाजाही के साथ-साथ मालगाड़ियों से सामानों की लोडिंग-अनलोडिंग होती है. फिर पापा बताते थे कि इस स्टेशन का नाम बिहार के मुख्यमंत्री रहे कर्पूरी ठाकुर (Karpoori Thakur) के नाम पर रखा गया है. जिनका घर इसी स्टेशन से कुछ दूर स्थित पितौंझिया गांव में था.
बचपन में मुझे न तो सीएम-पीएम से कोई मतलब था और ना ही किसी नेता के नाम पर पर रखे गए स्टेशन से. सफर खत्म होते मैं अपने नाना-नानी के घर पर छुट्टियां बिताता और फिर वापस अपने घर आ जाता. उम्र बढ़ने के बाद जब पढ़ाई का सिलसिला आगे बढ़ा तो कर्पूरी ठाकुर, ललित नारायण मिश्रा, जॉर्ज फर्नांडिस, जग्रन्नाथ मिश्रा, लालू यादव, नीतीश कुमार सहित बिहार के अन्य नेताओं के बारे में जाना.
कल यानी की मंगलवार को राम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा समारोह से फ्री होने के बाद घर पर छुट्टी मना रहा था, तभी कर्पूरी ठाकुर (Bharat Ratna to Karpoori Thakur) को भारत रत्न दिए जाने की जानकारी मिली. जिससे सहसा बचपन की यादें ताजा हो गई. आज भी कर्पूरी ग्राम स्टेशन की स्थिति कमोवेश वैसी ही है. हाल-फिलहाल में कुछ बड़ा बदलाव नहीं होने वाला है. लेकिन हां, आज उसी स्टेशन पर धूल से सने मजदूर अखबार या फिर मोबाइल में कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न मिलने की खबर पाकर खुद भी गदगद महसूस कर रहा है.
दो फीसदी से भी कम हिस्सेदारी वाली जाति में जन्मे लेकिन शोषितों के नेता बने
सादगी की मिसाल और सामाजिक न्याय के मसीहा रहे जननायक कर्पूरी ठाकुर की आज 100वीं जयंती है. आज से ठीक 100 साल पहले 24 जनवरी 1924 को उनका जन्म इसी स्टेशन के पास स्थित पितौंझिया गांव में हुआ था. कर्पूरी ठाकुर अति पिछड़ा वर्ग (EBC) में आने वाली नाई (हज्जाम) जाति से थे. इस जाति की आबादी बिहार में दो फीसदी से भी कम है. लेकिन इसके बाद भी कर्पूरी ठाकुर दो बार बिहार के मुख्यमंत्री, एक बार डिप्टी सीएम और देश की आजादी के बाद से मृत्यु तक लगातार विधायक रहे.
नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने ट्वीट करते हुए लिखा, "पूर्व मुख्यमंत्री और महान समाजवादी नेता स्व॰ कर्पूरी ठाकुर जी को देश का सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न' दिया जाना हार्दिक प्रसन्नता का विषय है. केंद्र सरकार का यह अच्छा निर्णय है. स्व॰ कर्पूरी ठाकुर जी को उनकी 100वीं जयंती पर दिया जाने वाला यह सर्वोच्च सम्मान दलितों, वंचितों और उपेक्षित तबकों के बीच सकारात्मक भाव पैदा करेगा. हम हमेशा से ही स्व॰ कर्पूरी ठाकुर जी को ‘भारत रत्न' देने की मांग करते रहे हैं. वर्षों की पुरानी मांग आज पूरी हुई है. इसके लिए माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी को धन्यवाद."
हालांकि नीतीश कुमार ने इस ट्वीट से पहले एक और ट्वीट किया था. जिसमें उन्होंने यहीं बाते लिखी थी. लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi) का धन्यवाद करना भूल गए थे. कुछ देर बाद ही जब उन्हें इस बात का अहसास हुआ तो उन्होंने पहला ट्वीट डिलीट करते हुए पीएम मोदी को बधाई देते हुए दूसरा ट्वीट किया. नीतीश के अलावा राजद नेता बिहार के डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव, यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव, कांग्रेस सहित कई अन्य विपक्षी दलों के नेताओं ने भी केंद्र सरकार के इस फैसले की सराहना की है.
क्यों सादगी की मिसाल कहे जाते हैं कर्पूरी ठाकुर
कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न दिए जाने की घोषणा के बाद उनपर कई खबरें लिखा जा चुकी हैं. वो सादगी की मिसाल और सामाजिक न्याय के पुरोधा क्यों कहे जाते है... इसकी भी कई कहानी है. मैं यहां केवल दो उदाहरण से कर्पूरी ठाकुर की सादगी का प्रतिबिंब आपके सामने रख रहा हूं. कर्पूरी ठाकुर 1952 में जब पहली विधायक बने तब उनके पास गांव में एक कच्चा मकान और ढाई बीघा जमीन थी. वो सीएम बने, डिप्टी सीएम बने, नेता प्रतिपक्ष बने, विधायक तो लगातार रहे लेकिन उनके अंतिम समय तक उनकी संपत्ति में कोई इजाफा नहीं हुआ.
एक वाकया और- यह बात उस समय की है जब कर्पूरी ठाकुर सीएम बन चुके थे. उनके गांव में एक शादी थी. जिसमें ऊंची जाति के परिवार को कई नाई की जरूरत थी. जो आम के पत्ते और पानी से भरे मटके के साथ एक कतार में खड़े रहे. शादी की रस्में पूरी की जा रही थी तभी अचानक यह पता चला कि एक नाई कम हो रहा है. तब कर्पूरी ठाकुर ने अपने बेटे रामनाथ ठाकुर को रस्म निभाने के लिए कहा. लेकिन बेटे ने मना कर दिया. इसके बाद कर्पूरी ठाकुर खुद रस्म निभाने के लिए आगे बढ़ गए. जिसे देखकर गांव के लोग शर्मिंदा हो गए.
कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने के सियासी मायने
यह तो रही कर्पूरी ठाकुर की सादगी की मिसाल. लेकिन अब बात कर्पूरी ठाकुर को इस समय भारत रत्न दिए जाने की. लोकसभा चुनाव से पहले कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न दिए जाने की घोषणा के कई सियासी मायने भी हैं. केंद्र की मोदी सरकार के इस फैसले से भाजपा बिहार में मजबूत होगी. कर्पूरी ठाकुर ईबीसी समाज के सबसे बड़े नेता माने जाते हैं. लालू-नीतीश हमेशा उनकी राजनीति को आगे बढ़ाने का दावा करते रहे हैं. लेकिन भाजपा सरकार द्वारा कर्पूरी ठाकुर को सर्वोच्च नागरिक सम्मान दिए जाने से बिहार में बीजेपी लालू-नीतीश के मजबूत वोटबैंक में सेंधमारी करने में सफल होगी.
लोकसभा चुनाव में तो इसका फायदा दिखेगा ही साथ ही साथ अगले साल 2025 में होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव में भी भाजपा इस फैसले को भुनाने की भरसक कोशिश करेगी. हिंदी पट्टी के राज्यों में बिहार ही वो राज्य है जहां भाजपा अभी तक अकेले अपने दम पर सरकार नहीं बना सकी है. यहां भाजपा नीतीश कुमार के साथ मिलकर सत्ता का सुख भोग चुकी है. लेकिन अब भाजपा बिहार में अपने दम पर सरकार बनाने की लंबी रणनीति पर काम कर रही है. बिहार के सवर्ण और वैश्य भाजपा को पहले से पसंद करते रहे हैं, अब कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देकर भाजपा EBC वर्ग का साथ भी हासिल करने की कोशिश करेगी.
बिहार में अति पिछड़ी जातियों की आबादी 36 फीसदी
बिहार में 36 फीसदी आबादी अति पिछड़ी जातियों की हैं. जातीय जनगणना 2023 के अनुसार अति पिछड़ों में नाई के साथ-साथ लोहार, कुम्हार, बढ़ई, कहार, सोनार समेत 114 जातियां आती हैं. यह जातियां आज भी बिहार में आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़ी हुई हैं. लेकिन वोट बैंक के नजरिए से देखें तो सरकार बनाने और बिगाड़ने का दम रखती है.
ऐसे में कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न मिलने से बिहार में OBC कैटेगरी की राजनीति पर अति पिछड़ों की राजनीति भारी पड़ सकती है. अति पिछड़ों के वोट भाजपा के खाते में जा सकते हैं. इसलिए भारत रत्न के फैसले को भाजपा का मास्टरस्ट्रोक कहा जा रहा है.
अब भाजपा भी कर्पूरी की विरासत में मांगेगी हिस्सेदारी
कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने का ऐलान कर भाजपा ने विपक्षी दलों के INDIA अलायंस को बेचैन कर दिया है. कोई भी विपक्षी दल इस फैसले का विरोध नहीं कर सकेगा. इस फैसले के जरिए भाजपा बिहार में EBC और OBC वोटर्स के बीच अपनी पकड़ मजबूत करेगी. लालू-नीतीश भले ही कर्पूरी ठाकुर की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने का दावा करते हो लेकिन अब कर्पूरी ठाकुर के लिए देश के सबसे बड़े सम्मान का ऐलान करके बीजेपी ने कर्पूरी ठाकुर की विरासत में हिस्सेदारी की कोशिश भी की है.
केवल लोकसभा नहीं बिहार विधानसभा चुनाव में भी भाजपा उठाएगी फायदा
कर्पूरी ठाकुर के जरिए नीतीश कुमार बिहार में पिछड़ों खासतौर से ओबीसी कार्ड खेलने की पुरजोर कोशिश में लगे थे. जाति जगणना के बाद आरक्षण बढ़ा कर नीतीश ने खुद को ओबीसी वर्ग का मसीहा बताने का संदेश दिया. लेकिन अब मोदी सरकार ने कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न से सम्मानित कर मास्टर स्ट्रोक चल दिया है.
यहां एक बात और गौर करने वाली है. भाजपा का शीर्ष प्रबंधन बड़े फैसले बड़ी प्लानिंग और दूर दृष्टि के साथ करती है. कर्पूरी ठाकुर के जरिए भाजपा बिहार में अकेले दम पर सरकार बनाने की कोशिश करेगी. अभी यह कहना जल्दबाजी लग सकता है लेकिन यह बहुत हद तक संभव है कि 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा बेहतर नतीजों के साथ किसी नए चेहरे को सीएम बना सकती है.
प्रभांशु रंजन NDTV में सीनियर सब एडिटर हैं...
डिस्क्लेमर: इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.