NEET UG Exam 2025: इस वर्ष मेडिकल प्रवेश परीक्षा नीट यूजी में 11.08 लाख विद्यार्थी 20% अंक भी हासिल नहीं कर पाए हैं. परीक्षा में सम्मिलित 22.09 लाख विद्यार्थियों में से मात्र 11.01 लाख विद्यार्थी ही 720 में से 144 या इससे अधिक अंक प्राप्त कर पाए हैं. लेकिन ऐसा नहीं है कि इस बार प्रश्न पत्र का उच्च स्तर होने के कारण ऐसा हुआ है. पिछले कुछ वर्षों में प्रश्न पत्र का स्तर सामान्य होने पर भी यह आंकड़ा कमोबेश जस का तस रहा है. दरअसल यह आंकड़ा उच्च माध्यमिक स्तर पर स्कूली शिक्षा में विज्ञान विषय के शैक्षणिक स्तर पर बड़ा प्रश्न चिन्ह खड़ा करता है.
नीट यूजी परीक्षा वर्ष 2021 से 2025 तक, पिछले 5 वर्षों के आंकड़ों का अध्ययन एवं विश्लेषण किया जाए तो ज्ञात होता है कि 49.57 लाख अर्थात लगभग 50 लाख विद्यार्थी ऐसे हैं जिनके अंक 22.5% से भी कम हैं.
क्या कहते हैं नीट-यूजी के पिछले वर्षों के आंकड़े?
- वर्ष 2021 - 7.74 लाख विद्यार्थी हासिल नहीं कर पाए 19.16% अंक
- वर्ष 2022 - 8.83-लाख विद्यार्थी हासिल नहीं कर पाए 16.25% अंक
- वर्ष 2023 - 10.24 लाख विद्यार्थी हासिल नहीं कर पाए 19.02% अंक
- वर्ष 2024 - 11.68 लाख विद्यार्थी हासिल नहीं कर पाए 22.5% अंक
- वर्ष 2025 - 11.08 लाख विद्यार्थी हासिल नहीं कर पाए 20% अंक
निश्चित तौर पर 12वीं में अध्ययनरत अथवा 12वीं उत्तीर्ण विद्यार्थियों द्वारा नीट परीक्षा में फिजिक्स, केमेस्ट्री तथा बायोलॉजी विषयों में कुल मिलाकर 20% अंक भी हासिल नहीं कर पाना चिंता एवं चिंतन दोनों का विषय है.
क्यों आ रहे हैं कम नंबर
मेडिकल प्रवेश परीक्षा में कम अंकों का मूल कारण सीनियर सेकेंडरी स्तर पर विद्यार्थियों में विज्ञान विषय की बुनियादी जानकारी का अभाव होना है. दरअसल फिजिक्स, केमिस्ट्री तथा बायोलॉजी तीनों ही प्रयोगिक विषय हैं, तथा सीबीएसई एवं अन्य स्टेट बोर्ड्स में लगभग 30% अंक प्रायोगिक परीक्षाओं के हैं.
शिक्षा के व्यवसायीकरण के इस दौर में प्रायोगिक परीक्षाओं में येन-केन-प्रकारेण विद्यार्थियों को अंक प्राप्त हो ही जाते हैं. ऐसे में विद्यार्थियों के लिए बोर्ड परीक्षाओं में उत्तीर्ण होना आसान हो जाता है ,एवं सीनियर सेकेंडरी स्तर पर सेंट्रल एवं स्टेट-बोर्ड्स का परीक्षा परिणाम भी कमोबेश 90% के इर्द-गिर्द ही होता है.
लेकिन सीनियर सेकेंडरी स्तर पर विषय-वस्तु का मौलिक ज्ञान भी नहीं होने के कारण नीट जैसी प्रतियोगी परीक्षा में लाखों विद्यार्थी 20-22% अंक भी प्राप्त नहीं कर पाते.
निश्चित तौर पर अब समय आ गया है कि प्रायोगिक-विषयों के अंकों के वितरण पर पुनर्विचार किया जाए. सैद्धांतिक-परीक्षाओं के अंकों का अनुपात बढ़ाकर, प्रायोगिक परीक्षाओं के अंकों का अनुपात कम किया जाना चाहिए.
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डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.
लेखक परिचयः देव शर्मा कोटा स्थित इलेक्ट्रिकल इंजीनियर और फ़िज़िक्स के शिक्षक हैं. उन्होंने 90 के दशक के आरंभ में कोचिंग का चलन शुरू करने में अग्रणी भूमिका निभाई. वह शिक्षा संबंधी विषयों पर नियमित रूप से लिखते हैं.