Paper Leak: जब भी मैं किसी परीक्षा में पेपर लीक के बारे में सुनती हूं, तो मुझे उन स्टूडेंड्स के साथ हुए अन्याय के बारे में सोचकर ग़ुस्सा आता है, जिन्होंने ईमानदारी से पढ़ाई कर परीक्षा की तैयारी की है. मैं उन बच्चों के बारे में सोचती हूं जिनके मां-बाप ने पैसे नहीं होने के बाद भी बच्चों को पढ़ने भेजाऔर उनके साथ वो भी इस यात्रा में लगे रहे. ऐसे बच्चों की कोई गलती नहीं होती लेकिन पेपर लीक की सज़ा उन्हें भी मिलती है. कुछ स्टूडेंट्स ने बताया कि पहले तो एक-दो साल उनकी परीक्षाएं ही नहीं हुईं और जब हुईं तो पेपर लीक हो गए. तब तक उनकी परीक्षाएं देने की उम्र ख़त्म हो गई. तो उन्होंने पूछा कि अब हम क्या करें?
इस तरह पेपर लीक ईमानदार छात्रों के भविष्य के साथ एक खिलवाड़ है. हालांकि इस बार एसओजी ने नीट परीक्षा के दौरान पहले से ही सख्ती बरती और स्थिति को नियंत्रित कर लिया. लेकिन पेपर लीक की समस्या को पूरी तरह नियंत्रित करने के लिए हमें सबसे पहले स्वयं अपने ऊपर काम करना पड़ेगा.
ये सवाल पूछा जाना चाहिए कि ये क्यों ज़रूरी है कि व्यक्ति हमेशा सफल ही रहे? और अगर योग्यता ना हो तो भी वो कोई भी कीमत चुकाकर सफलता पाने का प्रयास क्यों करता रहे?
उदाहरण के लिए नीट में जिस तरह की गड़बड़ियां हुई हैं उससे सवाल उठता है कि लोगों के पास ऐसी क्या मजबूरी है कि उन्हें डॉक्टर ही बनना है? सवाल ये भी है कि क्या कोई ऐसा डॉक्टर किसी मरीज़ का इलाज कर सकेगा जिसे खुद ही जानकारी ना हो?
उपभोक्तावादी समाज
दरअसल आज हमने एक ऐसी सोसाइटी बना ली है जो उपभोग करनेवाली सोसाइटी है, जिसमें सभी चाहते हैं कि उन्हें हर चीज़ मिलनी चाहिए. हम ज़रूरत से ज़्यादा चीज़ें हासिल करना चाहते हैं, और ये सब शॉर्टकट से हासिल करना चाहते हैं. हम चाहते हैं कि चाहे जो भी हो, हमें ये चीज़ मिलनी ही चाहिए.
मुझे एक बार एक बस्ती में एक ऐसा परिवार मिला जिसमें एक लड़का अपनी मां से कह रहा था कि उसे बाइक, मोबाइल फ़ोन, और जीन्स चाहिए क्योंकि वो जब बाहर जाता है तो उसके दोस्तों के पास ये सब होते हैं. तो लोगों में एक प्रतियोगिता की भावना आ गई है, और हर किसी भी शॉर्टकट से हर चीज़ हासिल करना चाहते हैं.
इसके साथ ही आज के दौर में फ़ेसबुक और सोशल मीडिया पर जिस तरह से लोग अपनी छुट्टियों की या अपने बारे में तस्वीरें लगाते हैं, उससे लोगों को तत्काल मशहूर होने की जल्दी होती है. इसे भी समझना और समझने की ज़रूरत है.

पेपर लीक से परीक्षाओं की विश्वसनीयता प्रभावित होती है
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सख़्त उपायों की ज़रूरत
इसलिए सबसे पहले हमें एक ईमानदारी भरा माहौल तैयार करना चाहिए जिसमें कोई ग़लत काम करते हुए लोगों को डर लगे. अकादमिक क्षेत्रों में भी पीएचडी की पढ़ाई करनेवालों को ईमानदारी के बारे में बताया जाता है, इस बारे में क़ानून भी बनाए गए हैं.
परीक्षाओं में किसी को चोरी या चीटिंग करते पकड़े जाने पर पुलिस के हवाले भी कर दिया जाता है. इसी तरह से पेपर लीक के मामलों में भी आजीवन कारावास देने के जैसा सख़्त क़दम उठाना चाहिए, क्योंकि ऐसे लोग छूटकर बाहर आएंगे तो दोबारा यही अपराध करेंगे.
समाज में इस ईमानदारी की भावना को विकसित करने की ज़िम्मेदारी शिक्षकों पर भी है, और मां-बाप पर भी. बच्चों के अभिभावकों को भी ज़िम्मेदार होना होगा क्योंकि इस वजह से भी लोग अंधी दौड़ में शामिल होने लगते हैं.
लोगों के पास बुद्धि की कमी नहीं है क्योंकि वो फ़ोटो से छेड़छाड़ कर सकते हैं, ब्लूटूथ का इस्तेमाल कर सकते हैं, ईयर बड्स का इस्तेमाल करते हैं, और इन सारी चीज़ों के लिए दिमाग़ की ज़रूरत होती है. लेकिन वो क्रिएटिविटी में खर्च नहीं होकर नेगेटिव चीज़ों में ख़र्च हो रही है.
इनके अलावा पेपर लीक के मामलों को नियंत्रित करने के लिए परीक्षण का माहौल भी बेहतर करने का प्रयास करना चाहिए. फेस रिकग्निशन टेक्नोलॉजी, सीसीटीवी, एआई का इस्तेमाल, ऑनलाइन परीक्षा जिसमें स्क्रीन पर एक समय में सिर्फ़ एक ही सवाल आए - इन जैसे उपायों पर विचार किया जाना चाहिए.
साथ ही परीक्षा केंद्रों पर और कमरों में राउंड लगाना चाहिए, सेंटर सुपरिंटेंडेंट को वहां जाना चाहिए. ये चीज़ें दिखने में छोटी लगती हैं लेकिन वो अहम होती हैं क्योंकि इससे एक संदेश जाता है कि उनपर नज़र रखी जा रही है.
परिचय: डॉ. सुधी राजीव जयपुर स्थित हरिदेव जोशी पत्रकारिता और जनसंचार विश्वविद्यालय की कुलपति (वाइस चांसलर) हैं. वह जोधपुर स्थित जय नारायण व्यास यूनिवर्सिटी में कला, शिक्षण और सामाजिक विज्ञान संकाय की डीन तथा इस यूनिवर्सिटी के अंग्रेज़ी विभाग में प्रोफ़ेसर तथा विभागाध्यक्ष रह चुकी हैं. वह जे एन व्यास यूनिवर्सिटी में महिला अध्ययन केंद्र की संस्थापक निदेशक रही हैं. वह इंग्लिश के कौशल विकास के लिए राजस्थान स्टेट नॉलेज कमीशन की सदस्य तथा राजस्थान राज्य उच्चतर शिक्षा परिषद की भी सदस्य रह चुकी हैं.
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.
(अपूर्व कृष्ण के साथ बातचीत पर आधारित लेख)