'90 के दशक में पत्रकारिता में आया था, तो मुझे यही कहा गया था कि राजस्थान में राजनीति की ज़मीन उर्वर नहीं है. दो ही दल हैं - भारतीय जनता पार्टी (BJP) और कांग्रेस. हर पांच साल बाद शांति से चुनाव होते हैं और चुपचाप सत्ता बदल जाती है. दोनों दलों के नेता भले ही अपनी-अपनी पार्टी से लड़ते हों, लेकिन आपस में नहीं लड़ते हैं. कोई एक दूसरे की सरकार गिराने की कोशिश भी नहीं करता है. लेकिन पिछले कुछ सालों से राजस्थानी राजनीति भी राष्ट्र की मुख्यधारा की राजनीति जैसी होती जा रही है. कांग्रेस में अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच का झगड़ा हो या BJP में वसुंधरा राजे के दबदबे को कम करने के लिए उनके खिलाफ की गई पेशबंदी हो, पॉलिटिकल रिपोर्टिंग करने में मज़ा आता रहा है, सो, इस हिसाब से देखा जाए, तो इस साल के अंत में होने वाला विधानसभा चुनाव खासा रोचक होने वाला है.
'90 के दशक के आखिरी सालों में अशोक गहलोत को कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष बनाया गया था. तब पार्टी में खासी खेमेबाजी थी. परसराम मदेरणा, शिवचरण माथुर, जगन्नाथ पहाड़िया, राजेश पायलट, हीरालाल देवपुरा आदि नेताओं को एक मंच पर लाने के लिए अशोक गहलोत ने 'भूलो और माफ़ करो' का नारा दिया था. अब 25 साल बाद सचिन पायलट इसी नारे की याद दिला रहे हैं, जिस पर चलने की सीख राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने दी है. खरगे ने इसमें 'आगे बढ़ो' भी जोड़ दिया है, यानी 'भूलो, माफ़ करो और आगे बढ़ो.'
'90 के दशक के बीच में कहीं न्यूज़ चैनल से जुड़ा था. 1998 में अशोक गहलोत पहली बार मुख्यमंत्री बने थे, और तब वह कैमरे के सामने बाइट देने से हिचकते थे. सफेद दीवार के आगे सफेद कुर्ता पहनकर बैठ जाते थे. हम समझाते कि कुर्ते पर काले या नीले रंग का जैकेट जैसा कुछ पहन लें - कभी मानते, कभी नहीं मानते. लेकिन आज वह न्यूज़ चैनलों को देखते ही मुस्कुराने लगते हैं, रंगीन कुर्ते में सरकारी योजनाओं का प्रचार-प्रसार करते नज़र आते हैं. इतना पैसा शायद ही कभी उनकी सरकार ने विज्ञापन पर खर्च किया हो. यह नए-नए-से गहलोत हैं.
आइए, अब बात करते हैं BJP खेमे की. BJP के नज़रिये से देखा जाए, तो पूरा चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे को सामने रखकर लड़ा जाना है, लेकिन मेरे नज़रिये से पूरा चुनाव वसुंधरा राजे पर आकर टिक गया है. दो बार राजस्थान की मुख्यमंत्री रह चुकीं वसुंधरा राज्य में ही राजनीति करना चाहती हैं और सचिन पायलट की तरह किसी पद की घोषणा के इंतज़ार में हैं. वसुंधरा राजे को आलाकमान पद देता है या प्रतिष्ठा, इस पर नज़र रहेगी, और यही इस बार के विधानसभा चुनाव को दिलचस्प बनाए रखेगी. फिलहाल BJP घर ठीक करने में लगी है, ठीक कांग्रेस की तरह. चूंकि PM मोदी ही नेता हैं, तो ज़ाहिर है कि नारा, नीति भी उन्हीं की तरफ से तय होगी. 'लाभार्थी बनाम लाभार्थी' और 'भ्रष्टाचार की दुकान बनाम मोहब्बत की दुकान' - ये दो एजेंडा हैं, जिनके संकेत PM बीकानेर की रैली में दे गए हैं. अब वोटर किसे पसंद करता है, यह देखना दिलचस्प होगा. लिहाज़ा चुनाव भी दिलचस्प रहने वाला है.
चूंकि राजस्थान में 1993 से हर पांच साल में सत्ता बदलती रही है, लिहाज़ा इस हिसाब से इस बार नंबर BJP का है. यह बात BJP को आश्वस्त करती है, लेकिन डबल इंजन मार्का PM नरेंद्र मोदी 2023 में ही 2024 की जीत पक्की करना चाहते हैं. लगातार दो बार से BJP लोकसभा की सभी 25 सीटें जीतती रही है, लेकिन हैटट्रिक बनाना आसान नहीं होता. साफ है कि गहलोत पूरे चुनाव को प्रादेशिक और स्थानीय बनाना चाहेंगे और BJP आलाकमान को चुनावी रणनीति इस रूप में बनानी होगी कि लोग विधानसभा चुनाव में PM मोदी के नाम पर 'कमल' का बटन दबाएं और 2024 में 'कमल' में ही PM मोदी का अक्स देखकर वोट दें. क्या ऐसा हो पाएगा...? यह देखना दिलचस्प रहेगा, इसलिए बार-बार कहा जा रहा है - इस बार का चुनाव रोचक होगा, और याद रखिएगा - नतीजे चौंकाने वाले होंगे.
विजय विद्रोही न्यूज़ चैनल 'आज तक' में ब्यूरो चीफ़ तथा 'ABP न्यूज़' में एक्ज़ीक्यूटिव एडिटर रह चुके हैं...
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