Ajmer Sharif: अजमेर में ख़्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर बिना किसी भेद-भाव के हर कोई आता है. ग़रीबनवाज़ कहलाने वाले ख़्वाजा जी के दर पर अमीर-ग़रीब सब आते हैं. पिछले कुछ दशकों में यहां फ़िल्मी सितारों का भी आना-जाना रहा है. अभिनेताओं में अमिताभ बच्चन, अभिषेक बच्चन, शाहरुख़ ख़ान, अजय देवगन, अक्षय कुमार, संजय दत्त, बॉबी देओल, टाइगर श्रॉफ, इमरान हाशमी, सोनू सूद जैसे कलाकारों के अजमेर दरगाह आने की ख़बरें सुर्खियां बनीं. इसी तरह अभिनेत्रियों में प्रियंका चोपड़ा, काजोल, कैटरीना कैफ़, दीपिका पादुकोण, कंगना रनौत, विद्या बालन, हुमा क़ुरैशी भी यहां आ चुकी हैं. फिल्मों से जुड़े अन्य कलाकार भी अजमेर शरीफ़ की दरगाह पर आ चुके हैं, जैसे संगीतकार एआर रहमान, निर्देशक मधुर भंडारकर और निर्माता एकता कपूर आ चुकी हैं. मगर इन सभी फिल्म कलाकारों में शाहरुख़ ख़ान के अजमेर शरीफ़ के दरगाह जाने की कहानी थोड़ी अलग है.
शाहरुख़ ख़ान ने कुछ साल पहले अजमेर शरीफ़ की दरगाह पर उनके साथ हुई एक घटना के बारे में बताया था. उन्होंने बताया कि वर्ष 1990 में वह अपनी मां लतीफ़ फ़ातिमा ख़ान और बहन शहनाज़ ख़ान के साथ अजमेर की दरगाह गए थे. तब उनकी मां बहुत बीमार थीं. उनके पिता का 9 साल पहले निधन हो चुका था. शाहरुख़ पर तब पूरे घर की ज़िम्मेदारी आ गई थी. तब वह 25 साल के थे और अभिनय की दुनिया में पैर जमाने की कोशिश कर रहे थे.
जब शाहरुख़ ख़ान के ग़ायब हो गए रुपये
तब शाहरुख़ को टीवी सीरियल में काम मिला था जिसमें बताया जाता है कि हर एपिसोड के लिए 8 हज़ार रुपये मिलते थे. यह शाहरुख़ और उनके परिवार के लिए एक मुश्किल वक्त था. ऐसे में एक दिन शाहरुख़ अपनी बीमार मां और बहन के साथ अजमेर शरीफ़ की दरगाह गए. वहां उन्होंने दूसरे श्रद्धालुओं की तरह सिर पर फूल-माला का टोकरा लेकर चादर चढ़ाई. लेकिन, तभी शाहरुख़ को पता चला कि उनकी मां ने उन्हें जो 5000 रुपये रखने के लिए दिए थे वो गायब हो गए हैं. वो घबरा गए और इधर-उधर खोजने लगे.
उन्हें परेशान देख पास में बैठे एक फकीर ने पूछा- "कुछ गुम गया है क्या?" शाहरुख ने कहा,"जी." इसके बाद फकीर ने फिर पूछा,"5000 गुम हो गए हैं क्या?" यह सुनते ही शाहरुख़ उसका चेहरा देखने लगे, और सोचने लगे कि इसे कैसे पता चला कि मेरे 5000 गुम हो गए हैं.
इसके बाद उस फकीर ने शाहरुख़ से कहा, "जा, यहां आया है, दर से खाली हाथ नहीं जाएगा, 5 हज़ार गंवाया है, 500 करोड़ कमाएगा…"
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इसके एक साल बाद शाहरुख़ को अपनी पहली फिल्म मिली - दीवाना. वर्ष 1992 में आई शाहरुख़ ख़ान की पहली ही फ़िल्म सुपरहिट साबित हुई औऱ देखते-देखते शाहरुख़ बॉलीवुड के बादशाह बन गए.
शाहरुख़ इसके बाद भी कई बार अजमेर शरीफ़ गए, और उस फकीर को तलाश करने की कोशिश की. मगर वह नहीं मिला. अजमेर शरीफ़ की दरगाह में आस्था से जुड़ी ऐसी और भी कहानियां सुनाई जाती हैं.
आगरा से पैदल अजमेर शरीफ़ गए बादशाह अकबर
अजमेर शरीफ़ की दरगाह की एक मशहूर कहानी 16वीं शताब्दी में मुग़ल साम्राज्य के बादशाह अकबर की सुनाई जाती है. बादशाह अकबर ने ख़्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह के बारे में पहली बार तब सुना जब वो आगरा के पास शिकार करने गए थे.
एक रात उन्हें कुछ लोगों ने बताया कि पास ही अजमेर में ख्वाजा जी की दरगाह है जिसमें लोगों की बड़ी श्रद्धा है. ये सुनकर अकबर ने दरगाह जाने का फैसला किया. सबने उन्हें रोका क्योंकि अचानक वहां जाने में ख़तरा हो सकता था. लेकिन अकबर नहीं माने. यह 20 जनवरी 1562 का दिन था. आज से 462 साल पहले. अकबर दरगाह गए, उन्हें वहाँ जाकर अच्छा लगा.
इसके बाद बादशाह आगरा लौट आए और राजकाज में लग गए. उनका साम्राज्य बड़ा हो रहा था, किसी चीज़ की कोई कमी नहीं थी. लेकिन सबकुछ होने के बाद भी वो दुखी रहते थे क्योंकि उनका कोई बेटा नहीं था. उन्होंने मन में मांगा कि अगर उन्हें बेटा हुआ, तो वो पैदल चलकर दरगाह जाएंगे.
इसके बाद 1569 की 30 अगस्त को सलीम का जन्म हुआ, जो बाद में बादशाह जहांगीर कहलाए. सलीम के जन्म के चार महीने बाद बादशाह अकबर मन्नत पूरी करने अजमेर गए. लगभग 455 साल पहले, 20 जनवरी 1570 को वो आगरा से निकले. अजमेर 370 किलोमीटर दूर था. लाव लश्कर साथ था, हाथी-घोड़े सब थे. लेकिन, बादशाह पैदल चल रहे थे, नंगे पाँव.
मुग़ल-ए-आज़म बनने के लिए पृथ्वीराज कपूर की लगन
बादशाह अकबर के पैदल अजमेर दरगाह जाने का ये दृश्य - 1960 की मशहूर फिल्म मुगले आजम का पहला सीन था. पृथ्वीराज कपूर अकबर बने थे. इस सीन के बारे में बाद में उनके बेटे शम्मी कपूर ने एक इंटरव्यू में बताया था कि उनके पिता अकबर के किरदार में पूरी तरह डूब गए थे.
जिस दिन यह सीन फिल्माया गया उस दिन काफी गर्मी थी, रेगिस्तान में शूटिंग हो रही थी. और पृथ्वीराज कपूर गर्म रेत पर नंगे पैर चले, इसकी वजह से उनके पैरों में छाले पड़ गए.
फिल्म में लड़ाई के सीन भी थे, जो राजस्थान में भीषण गर्मी के बीच फिल्माए गए. पृथ्वीराज कपूर ने उन दृश्यों में भी लोहे का असली कवच पहना हुआ था. के आसिफ के निर्देशन में बनी मुग़ले आज़म को अगर क्लासिक फिल्म कहा जाता है, तो उसके पीछे कोई तो वजह रही होगी.
अजमेर शरीफ़ की दरगाह से जुड़ी कहानियों की सत्यता को विज्ञान और तर्क की कसौटी पर परखना संभव नहीं है. लेकिन, आस्था एक ऐसी भावना होती है, जिसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है.
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.