
Dates Farming in Jodhpur: राजस्थान के जोधपुर जिले में कृषि के क्षेत्र में लगातार हो रहे नवाचारों से किसानों को काफी मदद मिल रही है. इसी कड़ी में जिले में स्थापित केंद्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान यानी काजरी बी भारतीय किसानों को विदेशों की कृषि संस्कृति सीखने में मदद कर रहा है. इसके साथ ही अब खाड़ी देशों में पैदा होने वाला खजूर भी यहां पैदा किया जा रहा है.
बंपर पैदावार से मालामाल हो रहे किसान
इस बार कई महीनों से तैयार खजूर की फसल ने काजरी में बंपर पैदावार दी है, जिससे यहां के किसान मालामाल हो रहे हैं. आपको बता दें कि मानसून से पहले खजूर की ADP-1 किस्म के आने से इनकी तुड़ाई भी शुरू हो गई है.
गुजरात से शुरू हुआ था इसका अनुसंधान
खजूर की फसल के संबंध में बताया गया कि काजरी ने वर्ष 2015 में गुजरात के आनंद कृषि विश्वविद्यालय से इसकी एडीपी-1 किस्म के 150 पौधे लाकर संस्थान में इसका अनुसंधान शुरू किया था, जो टिशू कल्चर तकनीक से तैयार किए गए हैं.
खजूर का पौधा 30 साल तक उपज देता है
इस तकनीक के बारे में विभागाध्यक्ष डॉ. धीरज सिंह ने बताया कि शोध के परिणाम बहुत सफल, सकारात्मक और उत्साहवर्धक रहे इसका उत्पादन बढ़ रहा है. इस किस्म के फल का रंग चमकीला लाल होता है और यह बहुत मीठा होता है. खजूर का पौधा 30 साल तक उपज दे सकता है. एक पेड़ पर सात से दस गुच्छे होते हैं. प्रति पेड़ 60 से 180 किलोग्राम उपज मिलती है.
तेज गर्मी की होती है जरूरत
खजूर की ADP-1 किस्म के फूल आने पर नर पौधों से पराग लेना और मादा पौधों के फूलों का हाथ से परागण करना ज़रूरी होता है. यह प्रक्रिया हर साल करनी होती है. एक हेक्टेयर में लगभग 7 नर पौधे होने चाहिए. इसकी खेती शुष्क और अर्ध-शुष्क जलवायु और 7 से 8.5 pH वाली मिट्टी में की जा सकती है. खजूर के पैर पानी में और सिर गर्मी में रहता है. यानी पानी के साथ-साथ इसे तेज़ गर्मी की भी ज़रूरत होती है.
शुष्क क्षेत्र से सफल साबित हो रही यह किस्म: काजरी निर्देशक
काजरी के कार्यकारी निदेशक डा. सुमन्त व्यास ने बताया कि शुष्क क्षेत्रों के लिए खजूर की यह किस्म सफल साबित हुई है. खजूर की बागवानी पश्चिमी राजस्थान के लिए उपयुक्त है यहां की जलवायु परिस्थितियां इसकी व्यावसायिक खेती के लिए बहुत उपयुक्त है.काजरी ने पिंड अवस्था को प्राप्त करने के लिए आंशिक सुखाने और पैकिंग के लिए भी तकनीक विकसित की है. एडीपी-1 की किस्म थार में सफल एवं अधिक उपज देने वाली साबित हुई है.खुशी की बात है कि किसानों एवं वैज्ञानिकों के आपसी समन्वय से राजस्थान में फलोउद्यानिकी का क्षेत्र बढ रहा है.
क्या होती टिशू कल्चर तकनीक
खजूर के पौधे के ऊतक का एक छोटा सा टुकड़ा उसके बढ़ते हुए शीर्ष से लिया जाता है और उसे पोषक तत्वों और पौधों के हार्मोन युक्त जेली में रखा जाता है. ये हार्मोन इसके पौधे के ऊतकों में कोशिकाओं को तेजी से विभाजित करने का कारण बनते हैं जो कई कोशिकाओं का निर्माण करते हैं और एक स्थान पर एकत्र होते हैं फिर इन्हें उपयुक्त पौधे हार्मोन युक्त एक अन्य में स्थानांतरित किया जाता है जो इसकीजड़ों में विकसित होने के लिए उत्तेजित करता है. विकसित जड़ों वाले को विभिन्न हार्मोन युक्त एक अन्य जेली में स्थानांतरित किया जाता है जो पौधे के तने के विकास को उत्तेजित करते हैं. अब इसजिसमें जड़ें और तना होता है, को एक छोटे पौधे के रूप में अलग किया जाता है.इस तरह, केवल कुछ मूल पौधे कोशिकाओं या ऊतकों से कई छोटे पौधे पैदा किए जा सकते हैं.
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