Rajasthan News: चंबल नदी के किनारे बसा कोटा शहर वैसे तो 'कोंचिंग सिटी' के रूप में जाना जाता है. लेकिन इस शहर की पहचान मगरमच्छ और देशी-विदेश से आए परिंदों के आशियाने के तौर पर भी की जाती है. जगह-जगह देश-विदेशी पक्षियों को यहां आशियाना बनाते हुए आसानी से देखा जा सकता है. वहीं नदी व तालाब में बोट पर सवार होकर टापुओं पर मगरमच्छों का स्वच्छंद विचरण पर्यटकों के लिए रोमांच का अनुभव होता है.
वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट आदिल सैफ ने शहर के बीचों बीच स्थित किशोरसागर तालाब में मगरमच्छों की अठखेलियां व धूप सेंकने की तस्वीर अपने मोबाइल कैमरे में कैद की है. ऐसा पहली बार है जब किशोरसागर तालाब में 13 फीट लंबा मगरमच्छ धूप सेकते हुए कैमरे में कैद हुआ है. आदिल ने बताया कि तालाब में वर्तमान में 7 से 8 मगरमच्छ हैं. इनमें दो 10-10 फीट लंबे हैं. लेकिन आज 13 फीट लंबा मगरमच्छ तालाब की दीवार पर बैठा नजर आया है. इसके बाद नाव में बैठकर उसके पास जाकर उसकी अठखेलियों को कैमरे में कैद किया. तालाब में बनी सीमेंट की दीवार पर दो विशालकाय मगरमच्छ आराम फरमा रहे थे.
सर्दी आते ही बाहर आते हैं मगरमच्छ
वन्य जीव विशेषज्ञ बताते हैं कि मौसम में बदलाव के साथ ही मगरमच्छ अपने शरीर के टेम्परेचर को मेंटन करते हैं. खासकर सर्दी के दिनों में अक्सर मगरमच्छ पानी से बाहर आकर धूप में बैठे देखे जा सकते हैं. फिर शाम होते ही गहराई में चले जाते हैं. इसके विपरीत गर्मियों में गर्मी से बचने के लिए ये ठंडी व छायादार जगहों पर चले जाते हैं.
भोजन की तलाश यहां हो जाती है खत्म
जब चंबल नदी से नहरों में पानी छोड़ा जाता है. उसी दौरान पानी के बहाव के साथ मगरमच्छ चंबल से निकलकर नहरों में होते हुए तालाब में पहुंच जाते हैं. ये मगरमच्छ ज्यादातर गुमानपुरा नहर की तरफ वाले हिस्से सेवन वंडर पार्क रोड़ की तरफ देखे जा सकते हैं. यहां तालाब में बनी सीमेंट की दीवार के आसपास टहलते रहते हैं. तालाब में इनके खाने के लिए पर्याप्त भोजन मिल जाता है. इसलिए ये यहीं रह जाते हैं. आदिल ने बताया कि किशोरसागर तालाब में 8-10 प्रजातियों की मछलियां हैं, जिनमें रोहू, कतला, नरेन, डिगल, कैट, कलोट फिश आदि पाई जाती है.
चंदलोही नदी है मगरमच्छों की बस्ती
कोटा शहर से दूर चंद्रलोही नदी है मगरमच्छों की शरण स्थली. यहां हजारों की तादाद में मगरमच्छ देखे जाते हैं. चंद्रलोही नदी आगे जाकर चंबल में मिल जाती है, लेकिन चंद्रलोही नदी के किनारे बसे गांवों में मगरमच्छों का आतंक सालों से देखा जा रहा है. नदी के किनारे जिन किसानों के खेत हैं. वह समूह में खेतों पर जाकर अपना कार्य करते हैं.