राजस्थान में जयपुर के सवाई मानसिंह मेडिकल कॉलेज (SMS) से जुड़े सभी अस्पतालों के अधीक्षकों ने सामूहिक रूप से इस्तीफा भेज दिया है. उन्होंने यह कदम चिकित्सा शिक्षा विभाग के हाल ही में आदेश के विरोध में उठाया है. उन्होंने इस संबंध में कॉलेज प्रिंसिपल डॉ. दीपक माहेश्वरी से मुलाकात की और इसके बाद स्वास्थ्य मंत्री गजेंद्र सिंह खींवसर से मिलने पहुंचे. गौरतलब है कि दो दिन पहले ही एसोसिएशन ने चेतावनी दी थी कि अगर सरकार आदेश वापस नहीं लेती तो सभी अधीक्षक सामूहिक इस्तीफा देंगे.
हाल में चिकित्सा शिक्षा विभाग ने एक आदेश जारी किया था, जिसके तहत राज्य के सभी सरकारी मेडिकल कॉलेजों के प्रिंसिपल, नियंत्रक और संबद्ध अस्पतालों के अधीक्षक को निजी प्रैक्टिस करने पर रोक लगा दी गई है. आदेश में कहा गया था कि अब इन पदों पर कार्यरत चिकित्सक निजी क्लीनिक पर मरीज नहीं देख सकेंगे. आदेश जारी होते ही मेडिकल कॉलेजों में नाराजगी फैल गई. इस आदेश के बाद, कांवटिया, जेके लोन, गणगौरी सहित एसएमएस से संबद्ध अस्पतालों के अधीक्षको अपने इस्तीफे लेकर कॉलेज प्रिंसिपल डॉ. दीपक माहेश्वरी से मिलने पहुंचे.

एक सुपरिंटेंडेंट के इस्तीफे की कॉपी
सरकार की मंशा पर संदेह
इस पूरे मामले में राजस्थान मेडिकल कॉलेज टीचर्स एसोसिएशन (RMCTA) ने भी सरकार के फैसले का विरोध किया है. एसोसिएशन के सचिव डॉ. राजकुमार हर्षवाल ने कहा कि विभाग ने ऐसा आदेश क्यों जारी किया, इसकी मंशा स्पष्ट नहीं है. यह निर्णय वरिष्ठ चिकित्सकों के अधिकारों पर सीधा हमला है. उन्होंने इस आदेश को असंवैधानिक बताते हुए यह भी कहा कि जब सेवानिवृत्ति की आयु 65 वर्ष है, तब किसी पद पर अधिकतम आयु सीमा 57 वर्ष तय करना अनुचित है.
RMCTA का दावा है कि सरकार इस आदेश के ज़रिए राज्य से बाहर के डॉक्टरों को लाने की तैयारी कर रही है, जिससे स्थानीय शिक्षकों और वरिष्ठ प्रोफेसरों की वरिष्ठता व योग्यताओं पर प्रतिकूल असर पड़ेगा. एसोसिएशन का कहना है कि प्रिंसिपल और अधीक्षक को क्लिनिकल एवं यूनिट हेड की भूमिका से हटाना शैक्षणिक गुणवत्ता को भी नुकसान पहुँचाएगा.
क्या है विवादित आदेश
चिकित्सा शिक्षा विभाग ने 11 नवंबर को एक आदेश जारी कर कई बदलाव किए हैं. इसमें कहा गया है कि मेडिकल कॉलेजों के प्रिंसिपल और अधीक्षक अब निजी प्रैक्टिस नहीं कर सकेंगे. साथ ही, डॉक्टर सीधे प्रिंसिपल पद पर नियुक्त नहीं होंगे. प्रिंसिपल पद के लिए 3 वर्ष अधीक्षक/अतिरिक्त प्रिंसिपल और 2 वर्ष विभागाध्यक्ष का अनुभव जरूरी होगा. चयन के लिए 4 सदस्यीय उच्चस्तरीय समिति गठित की गई है. प्रिंसिपल और अधीक्षक को क्लिनिकल कार्य केवल 25% तक सीमित किया गया है. इन दोनों पदों पर बैठे व्यक्तियों को यूनिट हेड या विभागाध्यक्ष नहीं बनाया जाएगा.
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