सुप्रीम कोर्ट ने धर्मांतरण विरोधी कानून को लेकर राज्य सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है. जस्टिस विक्रमनाथ और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने जयपुर कैथोलिक वेलफेयर सोसायटी की याचिका पर सुनवाई करते हुए सरकार को चार सप्ताह में जवाब देने के निर्देश दिए हैं. राजस्थान विधानसभा ने 9 सितंबर 2025 को ‘राजस्थान विधिविरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध विधेयक' पारित किया था. राज्यपाल की मंजूरी के बाद 29 अक्टूबर को इसकी अधिसूचना जारी की गई थी. प्रदेश में 29 अक्टूबर से इस कानून के प्रावधान लागू हो चुके हैं. इस कानून के विरोध में याचिकाकर्ता की ओर से कहा कि यह कानून संविधान के प्रावधानों और सुप्रीम कोर्ट के पूर्ववर्ती फैसलों के खिलाफ है. याचिका में आरोप लगाया गया है कि विधायिका ने अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर यह कानून बनाया है, जो संवैधानिक सीमाओं का उल्लंघन करता है.
कानून में 1 करोड़ रुपए तक जुर्माना समेत कई प्रावधान
- इस कानून के तहत सामूहिक धर्मांतरण कराने वाली संस्थाओं पर 1 करोड़ रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकेगा.
- ऐसे संस्थानों के भवन नियमों के उल्लंघन या अतिक्रमण पाए जाने पर सीज या ध्वस्त किए जा सकेंगे.
- हालांकि, प्रशासन या स्थानीय निकाय जांच के बाद ही संस्थानों पर कार्रवाई कर सकेगा.
- कानून के तहत सामूहिक धर्म परिवर्तन होने की स्थिति में संबंधित संपत्ति को प्रशासन जब्त कर सकता है.
- लव जिहाद से जुड़े मामलों में 20 साल तक की सजा का प्रावधान रखा गया है.
- केवल धर्म परिवर्तन के उद्देश्य से की गई शादी को रद्द किया जा सकेगा.
धर्म परिवर्तन से 2 महीने पहले देना होगा नोटिस
कानून के मुताबिक, अगर कोई व्यक्ति अपनी इच्छा से धर्म बदलना चाहता है तो उसे धर्म परिवर्तन से कम से कम 90 दिन पहले जिला कलेक्टर या एडीएम को इसकी सूचना देनी होगी. इसके लिए स्वेच्छा से धर्म परिवर्तन का घोषणा पत्र भी देना आवश्यक होगा.
धर्म परिवर्तन कराने वाले धर्माचार्य को भी दो महीने पहले मजिस्ट्रेट को नोटिस देना होगा. इसके बाद प्रशासन उस सूचना को सार्वजनिक नोटिस बोर्ड पर चिपकाएगा और दो महीने के भीतर आपत्तियां मांगी जाएंगी. किसी आपत्ति के आने पर उसकी सुनवाई और निपटारे के बाद ही धर्म परिवर्तन को मंजूरी मिलेगी.
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