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मीसा बंदियों को 'सम्मान' बिल पर बोले गहलोत, कहा- 'क्या 2014 के बाद जेल जाने वाले पत्रकारों के लिए भी बिल आ जायेगा?'

शहीद दिवस पर गहलोत ने कहा कि क्रांतिकारियों का रास्ता आसान नहीं था. उन्होंने चिंता व्यक्त की कि आज समाज में नफरत और सांप्रदायिकता बढ़ रही है, जबकि क्रांतिकारियों ने ऐसे भारत की कल्पना नहीं की थी.

मीसा बंदियों को 'सम्मान' बिल पर बोले गहलोत, कहा- 'क्या 2014 के बाद जेल जाने वाले पत्रकारों के लिए भी बिल आ जायेगा?'

Rajasthan: पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने मीसा के तहत जेल जाने वाले बंदियों को 'लोकतंत्र सेनानियों' के तौर पर सम्मान देने और उसपर लाये जाने वाले बिल पर सवाल उठाए हैं. उन्होंने कहा कि इस तरह के बिलों का कोई मतलब नहीं है, क्योंकि सरकारें बदलने के साथ इन्हें लागू और रद्द किया जाता है. उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि अगर ऐसा ही चलता रहा, तो कोई सरकार भविष्य में यह भी प्रस्तावित कर सकती है कि 2014 के बाद जिन पत्रकारों और साहित्यकारों को जेल में डाला गया, उन्हें भी पेंशन दी जाए. गहलोत ने एक पत्रकार का जिक्र किया, जो केरल से था और डेढ़ साल जेल में रहा. उन्होंने ऐसे कानूनों की प्रासंगिकता पर गंभीर सवाल खड़े किए.

40 से अधिक क्रांतिकारियों के परिजनों को सम्मानित किया गया

शहीद दिवस के अवसर पर जयपुर में 40 से अधिक क्रांतिकारियों के परिजनों को सम्मानित किया गया. इस कार्यक्रम में रानी लक्ष्मीबाई, मंगल पांडे, सुखदेव, राजगुरु, रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाकुल्ला खान सहित कई अन्य स्वतंत्रता सेनानियों के परिवारों को सम्मान दिया गया. इस अवसर पर क्रांतिकारियों के योगदान को याद किया गया और उनके बलिदानों को नई पीढ़ी तक पहुंचाने की जरूरत पर जोर दिया गया.

क्रांतिकारियों का रास्ता आसान नहीं था- अशोक गहलोत

अशोक गहलोत ने इस अवसर पर कहा कि क्रांतिकारियों का रास्ता आसान नहीं था. उन्हें यह भी नहीं पता था कि वे अपने जीवनकाल में आजादी देख पाएंगे या नहीं, फिर भी उन्होंने अपने प्राणों की आहुति दे दी. गहलोत ने चिंता व्यक्त की कि आज समाज में नफरत और सांप्रदायिकता बढ़ रही है, जबकि क्रांतिकारियों ने ऐसे भारत की कल्पना नहीं की थी.

उन्होंने कहा कि आज भी देश में छुआछूत और भेदभाव की समस्याएं बनी हुई हैं, जो हमारे लिए कलंक की तरह हैं. गहलोत ने उम्मीद जताई कि इस कार्यक्रम के माध्यम से यह संदेश जाएगा कि क्रांतिकारी किस तरह के भारत का सपना देखते थे.

क्रांतिकारी अशफाकुल्ला खान के पोते अशफाकुल्ला ने मांग की कि क्रांतिकारियों के बारे में शिक्षा पाठ्यक्रम में पढ़ाया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि पहले से ही उनके योगदान को सिलेबस में कम कर दिया गया था, और अब उसे और हटाया जा रहा है, जिससे नई पीढ़ी उनके बारे में नहीं जान पाएगी. 

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