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कांकरी डूंगरी आंदोलन: जब आंदोलनकारियों ने घेर ली थी पहाड़ी, NH किया जाम

बांसवाड़ा-डूंगरपुर के सांसद राजकुमार रोत (Rajkumar Roat) ने चार साल पहले कांकरी डूंगरी में हुए एक उग्र आंदोलन को याद किया है जब शिक्षक भर्ती के दौरान आरक्षण को लेकर जबरदस्त विरोध हुआ था.

कांकरी डूंगरी आंदोलन: जब आंदोलनकारियों ने घेर ली थी पहाड़ी, NH किया जाम
सितंबर-2020 में हुए आंदोलन के दौरान की तस्वीरें.

Kankari Dungri: बांसवाड़ा-डूंगरपुर के सांसद राजकुमार रोत ने कांकरी डूंगरी में हुए उग्र आंदोलन का जिक्र किया है. डूंगरपुर जिले के इस इलाके में 4 साल पहले हुई घटना को याद करते हुए उन्होंने आरोप लगाया कि आदिवासी क्षेत्र में माहौल खराब करने की कोशिश हो रही है. राजकुमार रोत ने आदिवासियों के उस विरोध का जिक्र किया है जो 24 सितंबर 2020 को शुरू हुआ था. उस दिन से थर्ड शिक्षक भर्ती लेवल-1 में रिक्त 1167 सीटों पर जनजाति वर्ग से भर्ती की मांग को लेकर आंदोलन किया था जो कई दिनों चला. उसके बाद मामला इस कदर गरमाया कि पुलिसकर्मियों को पत्थरबाजी का भी सामना करना पड़ा. 

करीब 18 दिन तक धरना और फिर उग्र हुआ आंदोलन

आंदोलनकारियों ने पहले तो अपनी मांग को लेकर करीब 18 दिन तक धरना दिया. लेकिन न तो स्थानीय प्रशासन और न ही सरकार ने उन्हें नीचे लाने के लिए बातचीत शुरू की. इसी दौरान पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार को समर्थन देने वाली भारतीय ट्राइबल पार्टी (BTP) ने उनकी मांग का पहले दिन से ही समर्थन किया. इसी पार्टी से राजकुमार रोत भी विधायक थे.

आंदोलनकारियों की मांगों की सुनवाई नहीं हुई तो प्रदर्शनकारियों ने पहाड़ से नीते उतर कर 24 सितंबर को नेशनल हाइवे का रुख किया और उसे जाम कर दिया. फिर 28 सितंबर तक यह आंदोलन चला. इस दौरान प्रदर्शनकारियों ने नेशनल हाईवे-8 स्थित काकरी डूंगरी पर महापड़ाव डाला. इस दौरान पत्थराबाजी में पुलिस अधिकारी समेत करीब एक दर्जन से ज्यादा पुलिसकर्मी घायल भी हुए.

भर्ती से जुड़ा था मामला, फिर पद रह गए खाली और शुरू हुआ विवाद 

दरअसल, राजस्थान में डूंगरपुर-बांसवाड़ा के सभी इलाकों के साथ उदयपुर, सिरोही और प्रतापगढ़ के कुछ गांवों को ट्राइबल सब-प्लान (TSP) में शामिल किया था, लेकिन बाद में दायरा बढ़ाने के साथ ही 4 जिले पाली, उदयपुर, राजसमंद, चित्तौड़गढ़ और सिरोही को भी जोड़ गया था. राज्य की सरकारी नौकरियों के लिए इस क्षेत्र में अलग से आरक्षण व्यवस्था लागू है. जिसमें 50 प्रतिशत सामान्य वर्ग, 45 प्रतिशत एसटी और 5 प्रतिशत एससी वर्ग को दिया गया है.

इसी के तहत शिक्षक भर्ती- 2018 में टीएसपी क्षेत्र के लिए सरकार ने 5431 पदों पर भर्ती निकाली गई थी. टीएसपी एरिया की आरक्षण व्यवस्था के अनुसार 50% पद अनारक्षित है. इनमें 45% पद एसटी वर्ग और 5% पद एससी वर्ग के अभ्यर्थियों के लिए आरक्षित है. इसके मुताबिक इस भर्ती में अनारक्षित वर्ग से 2 हजार 721 पद भरने का प्रावधान किया गया. इनमें रीट में 60 प्रतिशत से अधिक अंक लाने वालों अभ्यर्थियों का चयन किया गया. लेकिन नियमानुसार 1167 पद खाली रह गए और यही से पूरा विवाद खड़ा शुरू हो गया. 

क्या थी आंदोलनकारियों की दलील?

भर्ती परीक्षा में 1167 पद खाली रह जाने के बाद प्रदर्शनकारियों की मांग थी कि इन खाली पड़े पदों पर एसटी कोटे से भर्ती की जाए. जाहिर तौर पर सरकार के लिए यह आसान नहीं था, क्योंकि ऐसे में न्यूनतम 36 प्रतिशत अंक वाले जनजाति अभ्यर्थियों के लिए भी नियुक्ति देने का प्रावधान किया जाना था. 

इधर, सामान्य वर्ग के अभ्यर्थियों का कहना था कि एसटी वर्ग के अभ्यर्थी उन पदों को एसटी वर्ग के अभ्यर्थियों से भरने की मांग पूरी तरह गलत है. क्योंकि हाईकोर्ट की डबल बेंच ने पहले ही अनारक्षित इन रिक्त पदों को सामान्य वर्ग से ही भरने का फैसला दिया है. ऐसे में सामान्य वर्ग के खाली पदों को भरने के लिए रीट में 60 प्रतिशत अंक जरूरी है. 

कैबिनेट मंत्री बोले- फिर से खुलेगी कांकरी डूंगरी की बंद पड़ी फाइल

हाल ही में कैबिनेट मंत्री बाबूलाल खराड़ी ने भी इस मामले पर बयान देते हुए कहा था कि कांकरी डूंगरी में बंद फाइलों को फिर से खोला जाएगा और उनकी जांच की जाएगी. इसमें जो भी आरोपी है, उनके खिलाफ ठोस कार्रवाई होगी. उन्होंने कहा कि कांकरी डूंगरी दंगे जब हुए तब कांग्रेस की सरकार थी. दंगे करवाने वालों ने कांग्रेस को समर्थन दिया था.  

मंत्री ने आगे कहा कि 1167 अनारक्षित पदों को एसटी वर्ग से भरने के नाम पर गुमराह किया गया था. लेकिन असल में ये पद एससी, एसटी, ओबीसी ओर जनरल, किसी भी वर्ग के व्यक्ति के लिए ओपन थी. उन्होंने सड़कों पर पथराव की घटनाओं पर नाराजगी जताते हुए कहा कि पथराव करने वाले असामाजिक तत्व हैं. उन लोगों को भी गुमराह किया जा रहा है कि आदिवासियों पर आईपीसी लागू नहीं होती. 

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