आजादी के 70 साल बाद भी ग्रामीण अंचलों में अशिक्षा और अंधविश्वास के चलते मासूमों को इलाज के नाम पर दागा जा रहा है. तमाम मेडिकल साइंस की उन्नति के बीच आज भी ओझा, फकीरों और भोपा गर्म सलाखों से मासूमों को दाग रहे हैं. मंगलवार को भीलवाड़ा के सदर थाना क्षेत्र में इरास गांव में ऐसा ही एक मामला सामने आया था. 9 महीने का मासूम रविवार को 4 दिन से जिंदगी और मौत के बीच चल रही जंग में आखिर हार गया. मासूम की मौत के बाद पुलिस ने जांच शुरू की है.
दागने पर बच्चे की तबियत बिगड़ी
10 से 12 दिन पहले अच्छा इलाज के नाम पर अपने कलेजे के टुकड़े को परिजनों ने गर्म सलाख से दाग दिया. इसके बाद मासूम की तबीयत में सुधार की जगह और हालात बिगड़ गई. मंगलवार शाम को परिजन मासूम को भीलवाड़ा चिकित्सालय लेकर पहुंचे. जिला चिकित्सालय के अधीक्षक डॉ. अरुण गौड़ ने बताया कि मासूम की हालत को देखते हुए हमने पहले मासूम को आईसीयू में भर्ती किया, उसके बाद उसे गहन चिकित्सा पीएसयू में वेंटिलेटर पर रखा था. मगर दुखद है कि हम उसे मासूम को बचा नहीं सके.
बच्चे को हुआ था निमोनिया
9 माह के बच्चे को निमोनिया होने पर उपचार के नाम पर भोपे के कहने पर गर्म सलाखों से दागा, जिससे बच्चे की हालत और बिगड़ गई. परिजन महात्मा गांधी अस्पताल में लाए, जहां मासूम की स्थिति नाजुक बनती गई. सुधार नहीं होने पर इंचार्ज डॉ. इंदिरा सिंह के नेतृत्व में स्पेशल टीम डॉक्टरों की बनाई गई. जिन्होंने 3 दिन मासूम को ऑब्जरवेशन पर रखा. इस दौरान शिशु को वेंटिलेटर पर भी लिया गया, मगर आज रविवार को उसकी मौत हो गई.
मामले की कर रहे जांच
बाल कल्याण समिति सदस्य विनोद राव ने पूरे घटनाक्रम पर दुख व्यक्त किया है. उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी जिला चिकित्सालय से उनके पास में बच्चों को इलाज के नाम पर गर्म सलाख से दागने की सूचना मिली थी. हम इस मामले में जांच करवा रहे हैं. हम लोगों से अपील करते हैं कि इलाज के नाम पर बच्चों की जिंदगी के साथ खिलवाड़ नहीं करें. साल 2025 में अब तक 90 से अधिक मामले सामने आ चुके हैं. मासूमों को गर्म सलाखों से दागा गया.
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