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Rajasthan News: बीकानेर में दीपावली पर अनोखी परंपरा, हर साल उर्दू में रामायण का होता है पाठ

बीकानेर के मौलवी बादशाह हुसैन राणा लखनवी ने 1935 में तुलसीदास की जयंती पर बनारस हिंदू विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित एक प्रतियोगिता के लिए उर्दू भाषा में रामायण का काव्यात्मक संस्करण तैयार किया था.

Rajasthan News: बीकानेर में दीपावली पर अनोखी परंपरा,  हर साल उर्दू में रामायण का होता है पाठ

Rajasthan News: बीकानेर में दिवाली पर सालों से एक अनूठी परंपरा चली आ रही है. परंपरा के अनुसार, हर साल दीपावली पर हिंदू महाकाव्य रामायण के उर्दू संस्करण का वाचन होता है. मतलब लोगों को उर्दू रामायण सुनाई जाती है. इस सालाना आयोजन में उर्दू शायर, रामायण के उर्दू संस्करण का पाठ करते हैं. उर्दू में यह रामायण लगभग 89 साल पहले लिखी गई थी और इसे बनारस हिंदू विश्वविद्यालय का 'स्वर्ण पदक' भी मिला था.

हर साल उर्दू रामायण का होता है पाठ

उर्दू शिक्षक और शायर डॉ. जिया-उल-हसन कादरी ने रविवार को एक समारोह में दो अन्य मुस्लिम शायरों के साथ उर्दू रामायण का पाठ किया. उन्होंने कहा कि इस कार्यक्रम का उद्देश्य सद्भाव और भाईचारे का सकारात्मक संदेश देना है. पर्यटन लेखक संघ और महफिल-ए-अदब संयुक्त रूप से हर साल उर्दू रामायण वाचन कार्यक्रम कराते हैं. उन्होंने बताया कि रामायण का यह संक्षिप्त रूपांतरण मूल महाकाव्य के दृश्यों, भगवान राम के वनवास, रावण पर विजय और अयोध्या लौटने का जीवंत वर्णन करता है जो शहर के श्रोताओं को खूब भाता है.

बीकानेर के मौलवी बादशाह हुसैन राणा लखनवी ने 1935 में तुलसीदास की जयंती पर बनारस हिंदू विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित एक प्रतियोगिता के लिए उर्दू भाषा में रामायण का काव्यात्मक संस्करण तैयार किया था. इसे प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक मिला, जिसके बाद बीकानेर के तत्कालीन शासक महाराजा गंगा सिंह ने राणा लखनवी के संस्करण को सुनने के लिए एक समारोह आयोजित किया. इस कार्यक्रम में तेज बहादुर सप्रू ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की ओर से राणा लखनवी को स्वर्ण पदक प्रदान किया था.

बीकानेर में 2012 से है ये परंपरा 

दिवाली से पहले बीकानेर में इसका वाचन करने वाले कादरी 2012 से चली आ रही परंपरा को आगे बढ़ाना चाहते हैं. कादरी ने कहा कि उर्दू रामायण का पाठ मुस्लिम कवि करते हैं और श्रोता हिंदू और मुस्लिम दो समुदाय से होते हैं. कादरी ने कहा कि पहले यह कार्यक्रम खुले में होता था, लेकिन बाद में आयोजन स्थल बदल गया और अब इसे होटल में आयोजित किया जाता है ताकि व्यवस्थाएं अच्छी हो जाएं. उन्होंने बताया कि मौलवी बादशाह हुसैन राणा लखनवी ने 1913 से 1919 तक तत्कालीन शासक गंगा सिंह के लिए काम किया और इस दौरान उन्होंने मुगल शासकों द्वारा जारी किए गए आदेशों का फारसी से उर्दू में अनुवाद किया. 1920 में गंगा सिंह ने उन्हें डूंगर कॉलेज में शिक्षक नियुक्त किया. 

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