
प्रेमानंद महाराज को चैलेंज करना रामभद्राचार्य को महंगा पड़ गया. सोशल मीडिया लोग कह रहे हैं कि प्रेमानंद महाराज को कम पढ़ा लिखा कहकर अपमानित करने का प्रयास किया है. ईर्ष्या, तू गई ना मेरे मन से. दूसरे यूजर लिख हे हैं कि कोई बताओ वो खुद चमत्कार में विश्वास नहीं रखते, और दूसरी बात ऐसे श्लोक का क्या करेंगे, जो जनता न पढ़ सके और न उसका अर्थ समझ सके. एक यूजर ने लिखा कि ये महराज जी को चुनौती दे रहे हैं. जब कोई शक्ति नहीं है तो वो 20 साल से दोनों किडनी फेल होने के बाद कैसे जी रहे हैं. ये बिना शक्ति के संभव नहीं है. कोई संत दूसरे संत से कैसे बोल सकते हैं.
एक यूजर ने दोनों में तुलना कर डाली
- प्रेमानंद महाराज जी कभी किसी के मंच पर नहीं गए. रामभद्राचार्य जी को लोग जगतगुरु कहते हैं, लेकिन वो (रामभद्राचार्य) जाकर मंच साझा करते हैं.
- नेताओं और अन्य तमाम लोगों के साथ. प्रेमानन्द महाराज ने कभी भी जातीय दम्भ की बात नहीं की. बल्कि खुद को संत कहते हुए जातीय नाम यश आदि से विरक्त ही बताया है.
- रामभद्राचार्य जी अक्सर जातिगत बात करते हुए मिल जाते हैं. ब्राह्मणों में भी भेद बताते हुए नीच और उच्च बताने लगते हैं.
- प्रेमानन्द जी ने कभी किसी महापुरुष पर कोई अभद्र टिप्पणी नहीं की है, न ही आहत करने वाली कोई बात कही हो.
- रामभद्राचार्य जी कथावाचन करते हुए मंच से ही वंचितों के मसीहाओं ( मुलायम सिंह जी, कांशीराम जी) पर अभद्र टिप्पणी की थी.
- प्रेमानन्द महाराज जी घूम घूमकर कथा करके पैसे कमाने का प्रयास नहीं करते हैं, लोगों को शिक्षा देते हैं, मार्ग दिखाते हैं और अपनी भक्ति करते हैं. धर्म के साथ सामाजिक तार्किक जीवन में आस्था रखते हैं.
- रामभद्राचार्य जी कथावाचक भी हैं, राजनीतिक दलों से संबंध रखते हैं, नेताओं से मिलते हैं, उनकी सराहना में बातें करते हुए मंच से जिताने की बात करते हैं.
- प्रेमानंद जी महाराज ने कभी किसी से कुछ नहीं मांगा है, और न ही कोई लोभ मोह है उन्हें. उन्होंने अहित नहीं किया है किसी का.
- रामभद्राचार्य जी ने मंच से कहा है कि एक बार उन्होंने किसी बड़े नेता या अधिकारी के यहां पर कथा करवाई थी, तो गुरु दक्षिणा में अपने एक शिष्य को समीक्षा अधिकारी बना देने की मांग रखी और बोले कि बनवा दिया. ये अहित नहीं तो क्या है?
- सवर्णों, दलितों, पिछड़ों और अन्य धर्म के लोगों द्वारा प्रेमानन्द के प्रति बड़ी आस्था और प्रेम है. जबकि, रामभद्राचार्य जी के प्रति केवल सवर्ण ही झुकाव रखते हैं. बाकी हम जैसे तमाम पिछड़ी जाति से आने वाले चाहकर भी आस्था नहीं रख पाते हैं. क्योंकि, वो ऊंच-नीच की बात करते हैं.
रामभद्राचार्य ने कहा कोई चमत्कार नहीं
NDTV को दिए इंटरव्यू में सवाल पूछा गया कि लोग वृंदावन आते हैं, और प्रेमानंद महाराज के लिए चमत्कार की बात कहते हैं. खान सर भी उन्हें भगवान के समान कहते हैं कि बिना किडनी के भी जीवन चल रहा है. इस सवाल के जवाब में रामभद्राचार्य ने कहा कि कोई चमत्कार नहीं है. चमत्कार यदि है तो प्रेमानंद महाराज जी एक अक्षर मेरे सामने संस्कृत बोलकर दिखा दें बस. या मेरे कहे गए संस्कृत श्लोकों का अर्थ समझा दें. मैं खुलकर कह रहा हूं. रामभद्राचार्य ने कहा, "वो (प्रेमानंद महाराज) मेरे बालक के समान हैं. अवस्था में भी. शास्त्र जिसको आए, वही चमात्कार है. डायलिसिस के भरोसे वो जी रहे हैं. जीने दीजिए."
"लोकप्रियता कुछ पलों के लिए होती है"
उन्होंने कहा, "मैं प्रेमानंद से द्वेष नहीं रखता हूं लेकिन मैं उन्हें विद्वान नहीं कह रहा हूं और न ही उन्हें चमत्कारी कह रहा हूं. चमत्कार उसे कहते हैं जो शास्त्री चर्चा करता हो". उनकी लोकप्रियता पर रामभद्राचार्य ने कहा, "अच्छी है लेकिन ये लोकप्रियता कुछ पलों के लिए होती है लेकिन यह कहना कि वो चमत्कारी है, यह मुझे स्वीकार्य नहीं है."
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