Kota News: छात्रों की आत्महत्याओं, कोचिंग सेंटरों को रेगुलेट करने के नए दिशा-निर्देशों और अन्य शहरों में कोचिंग ब्रांड के विस्तार से कोटा में कोचिंग सेंटर और छात्रावासों का कारोबार धीमा पड़ गया है. संबंधित उद्योग से जुड़े लोगों का कहना है कि कोटा में छात्रों की संख्या सामान्य दो से 2.5 लाख से घटकर इस वर्ष 85,000 से एक लाख रह गई है, जिससे वार्षिक राजस्व 6,500 से 7,000 करोड़ रुपये से घटकर 3,500 करोड़ रुपये रह गया है.
वैकल्पिक अवसरों की तलाश में उद्योगपति
यूनाइटेड काउंसिल ऑफ राजस्थान इंडस्ट्रीज के क्षेत्रीय चेयरपर्सन गोविंदराम मित्तल ने कहा कि कोटा की शैक्षणिक प्रणाली और माहौल बेजोड़ है और अगले सत्र में छात्रों को आकर्षित करेगा, जो गिरावट की भरपाई करेगा. उन्होंने कहा कि उद्योगपति वैकल्पिक अवसरों की तलाश कर रहे हैं और वे शहर में बेंगलुरु की तर्ज पर सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) केंद्र स्थापित करने की योजना बना रहे हैं.
इसी साल कर्नाटक सरकार ने एक विधेयक को मंजूरी दी थी, जिसमें निजी क्षेत्र में 50 प्रतिशत प्रबंधन पद और 75 प्रतिशत गैर-प्रबंधन पद स्थानीय लोगों के लिए आरक्षित करने की बात कही गई थी, जिसकी पूरे उद्योग जगत ने आलोचना की थी. मित्तल ने कहा कि यहां के उद्योगपतियों ने कोटा में अपना आधार स्थापित करने के लिए बेंगलुरु स्थित कंपनियों से संपर्क किया है और इन कंपनियों की मंजूरी के बाद लोकसभा स्पीकर और कोटा-बूंदी के सांसद ओम बिरला के निर्देश पर आईटी सेक्टर के लिए भूमि चिन्हित कर ली गई है.
हॉस्टल मालिक के सामने नई मुश्किल
कोटा हॉस्टल एसोसिएशन के अध्यक्ष नवीन मित्तल ने कहा कि यहां कोचिंग सेंटर और हॉस्टल उद्योग निश्चित रूप से संकट में है. कुछ मालिक जिन्होंने लोन लेकर कई हॉस्टल बनाए हैं, उन्हें किश्तें चुकाने में मुश्किल हो रही है. उन्होंने कहा कि इस संकट ने हॉस्टल मालिकों को बुरी तरह प्रभावित किया है. शहर के 4,500 हॉस्टल में से अधिकांश 40 से 50 प्रतिशत तक रिक्त हो गए हैं.
नवीन ने जोर देकर कहा कि राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के अनुसार, आत्महत्या दर के मामले में कोटा 50 शहरों से पीछे है, फिर भी शहर को नकारात्मक रूप से चित्रित किया गया है. कोरल पार्क में एक छात्रावास प्रबंधक माणिक साहनी ने कहा कि कमरों का किराया 15,000 रुपये से घटकर 9,000 रुपये हो गया है और कई छात्रावास खाली पड़े हैं.
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