
Rajasthan News: राजस्थान की रेतीली धरती मारवाड़ के दिग्गज नेता और पूर्व सांसद कर्नल सोनाराम चौधरी (Colonel Sonaram Chaudhary) का दिल्ली के अपोलो अस्पताल (Apollo Hospital) में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया. बुधवार रात 11 बजे उन्होंने अपनी अंतिम सांस ली. वे 75 वर्ष के थे. अपनी बेबाक शैली, दबंग व्यक्तित्व और आम जनता के प्रति समर्पण के लिए वे हमेशा याद किए जाएंगे. मारवाड़ की राजनीति में उन्हें 'खरा सोना' कहा जाता था.
संघर्ष भरा रहा बचपन
कर्नल सोनाराम चौधरी का जन्म जैसलमेर के मोहनगढ़ गांव में हुआ था. उनके बचपन में ही माता-पिता का निधन हो गया था, जिसके बाद उन्होंने अकेले ही जिंदगी की हर चुनौती का सामना किया. अभावों में पले-बढ़े सोनाराम ने अपनी मेहनत से ग्रेजुएशन की और भारतीय सेना में भर्ती हुए. 25 साल तक उन्होंने देश की सेवा की, जिसमें 1971 के भारत-पाक युद्ध में उनका योगदान भी शामिल है.
सेना से सियासत तक का सफर
1994 में सेना से वीआरएस लेने के बाद कर्नल सोनाराम ने कांग्रेस पार्टी के साथ अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत की. 1996, 1998 और 1999 में उन्होंने लगातार तीन बार बाड़मेर से सांसद का चुनाव जीता. 2008 में वे बायतू विधानसभा सीट से विधायक बने. राजनीति में उनकी एंट्री के बाद मारवाड़ में एक नया अध्याय शुरू हुआ.
दल बदल की राजनीति के सूरमा
कर्नल सोनाराम की राजनीति में कई उतार-चढ़ाव आए. 2014 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले उन्होंने कांग्रेस छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया था. यह फैसला उनके लिए बेहद अहम साबित हुआ. इसी चुनाव में उन्होंने बीजेपी के दिग्गज नेता जसवंत सिंह जसोल को हराकर बाड़मेर से सांसद का चुनाव जीता. 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के टिकट पर बाड़मेर से चुनाव लड़ने के बाद वे हार गए. इसके बाद बीजेपी से उनकी दूरी बढ़ गई और 2023 में वे वापस कांग्रेस में शामिल हो गए. उन्होंने गुड़ामालानी विधानसभा से चुनाव लड़ा, लेकिन इस बार भी उन्हें हार का सामना करना पड़ा.
'जाट आरक्षण' के बड़े समर्थक
कर्नल सोनाराम हमेशा जाट आरक्षण आंदोलन के प्रबल समर्थक रहे. कांग्रेस में रहते हुए भी उन्होंने जाट समाज के लिए आवाज उठाई और उनकी मांगों को केंद्र सरकार तक पहुंचाया. उनकी दबंग शैली और बेबाकी ने उन्हें जनता के बीच बेहद लोकप्रिय बनाया.
रिफाइनरी आंदोलन और सियासी तल्खी
कर्नल सोनाराम चौधरी ने बायतू विधायक रहते हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की सरकार के खिलाफ खुलकर मोर्चा खोल दिया था. पचपदरा रिफाइनरी को लेकर उनका आंदोलन काफी सुर्खियों में रहा, जिसने सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी थीं. उनके इस आंदोलन के बाद तत्कालीन मंत्री हेमाराम चौधरी ने इस्तीफे की पेशकश तक कर दी थी.
राजनीति के गलियारों में उनकी अपनी पार्टी और अपने नेताओं से तल्खियां भी खूब चर्चा में रहीं. हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा से उनकी नजदीकियां जगजाहिर थीं.
आखिरी दो चुनाव बड़े अंतर से हारे
कर्नल सोनाराम ने अपने जीवन के आखिरी दो विधानसभा चुनाव बड़े अंतर से हारे, लेकिन उनका राजनीतिक सफर हमेशा से मारवाड़ की राजनीति में एक अलग पहचान बनाए रखेगा. एक अनुशासित सैनिक से लेकर एक बेबाक राजनेता तक, उनका जीवन संघर्ष और जनसेवा की मिसाल है.
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