
Rajasthan News: देशभर में पांच दिवसीय दीपोत्सव यानी दिवाली (Diwali) के त्योहार की शुरुआत आज धनतेरस (Dhanteras) के पावन पर्व के साथ हो गई है. यह दिन न केवल खरीददारी और समृद्धि से जुड़ा है, बल्कि आस्था और सदियों पुरानी परंपराओं का भी संगम है. इसी कड़ी में, राजस्थान के मेवाड़ अंचल (राजसमंद) में धनतेरस के अवसर पर एक अनूठी और गहरी आस्था वाली रस्म निभाई जाती है, जो यहां की संस्कृति और लोक-जीवन का अभिन्न अंग है.
मेवाड़ की सुहागिन महिलाएं आज सूर्योदय से भी पहले नदी के तटीय इलाकों में पहुंची और एक विशेष पीली मिट्टी को 'धन' मानकर अपने घर लेकर आईं. यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है, जिसे घर की बुजुर्ग महिलाएं नई पीढ़ियों को सौंपती हैं.
'सोने-चांदी के सामान पवित्र मिट्टी'
स्थानीय मान्यताओं और परंपरा के अनुसार, राजसमंद के कांकरोली क्षेत्र की सुहागिन महिलाएं धनतेरस की सुबह अंधेरा रहते ही स्थानीय नदी या जलाशयों के तटीय क्षेत्रों की ओर रुख करती हैं. सूर्योदय से पूर्व, यानी ब्रह्म मुहूर्त में, ये महिलाएं नदी तट पर पहुंचती हैं. वहां विधिवत पूजा-अर्चना करने के बाद, वे नदी के तटीय इलाके की पीली मिट्टी को श्रद्धापूर्वक इकट्ठा करती हैं. इस पीली मिट्टी को भौतिक धन (सोने-चांदी) के समान ही पवित्र और समृद्धिदायक माना जाता है. महिलाएं इस मिट्टी को कलश या तगारी (मिट्टी का पात्र) में भरकर अपने सिर पर रखकर घर लाती हैं.
पीली मिट्टी लाने के पीछे पौराणिक मान्यता
मेवाड़ में इस परंपरा के पीछे की मान्यता सीधे तौर पर धनतेरस के पौराणिक महत्व से जुड़ी है. हिंदू धर्म में, धनतेरस पर समुद्र मंथन के दौरान भगवान धन्वंतरि (आयुर्वेद के जनक) का प्राकट्य हुआ था. भगवान धन्वंतरि अपने साथ एक स्वर्ण कलश में अमृत और आरोग्य लेकर आए थे. मान्यता यह है कि जब वे इन दोनों निधियों को लेकर जा रहे थे, तो अमृत की कुछ बूंदें धरती की मिट्टी में गिर गईं. मेवाड़ की महिलाएं मानती हैं कि नदी के तटीय इलाके की यह पीली मिट्टी उन्हीं अमृत की बूंदों के स्पर्श से पवित्र हो गई है, इसीलिए इसे घर लाना साक्षात धन और आरोग्य को आमंत्रित करना है.
'साक्षात धनवंतरि भगवान के अमृत की बूंदें'

मीनाक्षी देवी ( श्रद्धालु महिला, कांकरोली )
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कांकरोली की रहने वाली श्रद्धालु मीनाक्षी देवी ने NDTV संवाददाता को बताया, 'हम वर्षों से इस परंपरा का निर्वहन कर रहे हैं. बुजुर्गों ने बताया है कि यह सिर्फ मिट्टी नहीं है, यह साक्षात धनवंतरि भगवान के अमृत की बूंदें हैं. इसे घर लाने से पूरे साल सुख-समृद्धि बनी रहती है और घर में बीमारी नहीं आती.'
घर में कैसे होता है इस मिट्टी का इस्तेमाल?
घर लाई गई इस पीली मिट्टी का उपयोग भी विशेष रूप से किया जाता है. पुराने समय में, और आज भी कई ग्रामीण क्षेत्रों में, इस मिट्टी से घर के आंगन और रसोई के चूल्हे को लीपा जाता था. इसे शुद्धिकरण और समृद्धि के प्रतीक के रूप में देखा जाता है. धनतेरस की शाम को होने वाले लक्ष्मी पूजन में इस पवित्र मिट्टी को भी पूजा स्थल पर रखा जाता है, जिससे यह माना जाता है कि मां लक्ष्मी और भगवान धन्वंतरि दोनों का आशीर्वाद घर पर बना रहता है.
'हमारे घर की लक्ष्मी कभी रूठती नहीं'

सुन्दर बाई (बुजुर्ग महिला, कांकरोली)
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सिर पर मिट्टी की तगारी लिए हुए कांकरोली की बुजुर्ग महिला सुन्दर बाई ने बताया, 'यह परंपरा हमारी पहचान है. मेरी सासू मां ने मुझे सिखाया था, और अब मैं अपनी बहुओं और बेटियों को यह बताती हूं. इसे निभाने से हमारे घर की लक्ष्मी कभी रूठती नहीं है.' इस पूरी रस्म के दौरान महिलाओं में उत्साह और गहरी धार्मिक आस्था देखने को मिलती है.
'पवित्र परंपरा से पूरा त्योहार शुरू हो जाता है'

गायत्री कुंवर (श्रद्धालु महिला, कांकरोली)
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वहीं, राजपूती पोशाक पहने गायत्री कुंवर ने कहा कि दीपोत्सव की शुरुआत ही इतनी पवित्र परंपरा से हो, तो पूरा त्योहार शुभ हो जाता है.
मेवाड़ की यह परंपरा बताती है कि भारतीय संस्कृति में धन का अर्थ केवल भौतिक समृद्धि नहीं है, बल्कि प्रकृति, आरोग्य और मिट्टी से जुड़ाव भी उतना ही महत्वपूर्ण है.
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