Rajasthan News: कृमि शरीर में किस प्रकार नुकसान पहुंचा सकते है, इसका प्रत्यक्ष उदाहरण डीडवाना जिले के कुचामनसिटी में देखने को मिला, जहां 30 वर्षीय एक युवक के पेट में कृमि का एक कीड़ा (राउंडवर्म) पनप गया. युवक के शरीर से कीड़े को लगातार पोषण मिलता रहा और वह 30 सेमी तक लंबा हो गया. इससे युवक के पेट में बार-बार दर्द उठने लगा. डॉक्टरों ने जब युवक की हाई रिजॉल्यूशन सोनोग्राफी की, तब आंत में 30 सेमी लम्बा कीड़ा नजर आया.
जानकारी के अनुसार कुचामनसिटी निवासी युवक दिल्ली में रहकर मजदूरी का काम करता है. कुछ दिनों से वह पेट दर्द से परेशान था. मेडिसिन से थोड़ी देर फायदा रहने और बार-बार दर्द होने पर जब वह निजी अस्पताल पहुंचा, तो डॉक्टर ने सोनोग्राफी का सुझाव दिया.
इस पर रेडियोलॉजिस्ट डॉक्टर प्रदीप चौधरी ने हाई रिजॉल्यूशन सोनोग्राफी की तो पेट में छोटी आंत में लंबा वयस्क कीड़ा (राउंडवर्म) दिखा. इस पर डॉक्टरों ने उसे तुरन्त एलबेंडाजोल टेबलेट दी, जिससे अगले ही दिन मल के रास्ते 30 सेंटीमीटर लंबा कीड़ा युवक के शरीर से बाहर निकल आया और युवक को पेट दर्द में आराम मिला.
क्या होता है कृमि कीड़ा, कैसे पहुंचता है नुकसान?
प्रभावित मानव या पशु के मल से परजीवी के अंडे मिट्टी में रहते है. छोटे बच्चे अक्सर मिट्टी में खेलते है, और मिट्टी से सने या गंदे हाथ मुंह में डाल लेते है. ऐसा करने से उनके मिट्टी से यह परजीवी अंडे या कीड़े पेट में प्रवेश कर जाते है. इसके अलावा बगैर सही ढंग से धुली हुई फल और सब्जियों का सेवन करने, अधपकी सब्जियों का सेवन करने से भी यह कीड़े पेट में पहुंच सकते हैं. जैसे ही कृमि के अंडे या कीड़े हमारे पेट में पहुंचते है, वे हमारी आंतों से चिपक जाते है और शरीर के पोषण पर जीना शुरू कर देते है. जिससे पेट दर्द, उल्टी जैसी समस्याएं हो सकती है.
मानसिक विकास अवरूद्ध कर सकते है परजीवी कीड़े
श्रीराम हॉस्पिटल के सर्जन डॉ. भागीरथ चौधरी ने बताया कि ये कृमि परजीवी आंत में रहते है और सामान्यतः कोई लक्षण पैदा किए बिना कुपोषण या एनीमिया पैदा कर सकते है. ये मानसिक विकास अवरुद्ध कर सकते है. साथ ही पेट दर्द, उल्टी कर सकते है. कभी-कभार बड़ी संख्या में वयस्क परजीवी होने पर आंत में रूकावट या आंत में छेद कर सकते है और आंतों के बाहर जाकर न्यूमोनिया या रूकावट कर सकते है.
नेशनल डिवर्मिंग डे पर दी जाती है ये दवा
गौरतलब है कि मिट्टी जनित हेलमिंथ की रोकथाम हेतु हर साल नेशनल डिवर्मिंग डे पर बच्चों को एलबेंडाजोल दवा दी जाती है, ताकि यह परजीवी कीड़ा बच्चों के शरीर को नुकसान न पहुंचा सके. स्वच्छ भारत अभियान के अंतर्गत खुले में शौच से मुक्ति और हैंड हाइजीन की जनजागरूकता भी इसकी रोकथाम में प्रभावी कदम है.
एसटीएच के 27 प्रतिशत मामले अकेले भारत में
कुचामन इमेजिंग के रेडियोलॉजिस्ट डॉ. प्रदीप चौधरी ने बताया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू.एच.ओ.) के अनुसार विश्व की लगभग 24 प्रतिशत जनसंख्या मृदा-संचारित कृमि या सॉयल ट्रांसमिटेड हेलमिंथ (एस.टी.एच) यानि पेट के कीड़े से संक्रमित है, लेकिन पूरे विश्व में एसटीएच के मामलों में से 27 प्रतिशत मामले अकेले भारत में ही है.
मिट्टी से होने वाले हेलमिंथिक इंफेसटेशन में एस्केरियसिस या राउंड वर्म मुख्य है. इसका प्रभाव मुख्यत बच्चों में देखा जाता और ये भारत में सभी जगह नजर आता है, लेकिन मुख्यत दक्षिण और पूर्वी राज्यों में इसका प्रभाव ज्यादा मिलता है. वयस्क परजीवी कभी कभी हाई रिजॉल्यूशन सोनोग्राफी में दिख जाते है.
ऐसे कर सकते हैं बचाव
कुचामन के राजकीय हॉस्पिटल के माइक्रोबायोलॉजिस्ट डॉ. लक्ष्मण मोहनपुरिया ने बताया कि कृमि संक्रमण से बचाव के लिए खुली जगह में शौच नहीं करना चाहिए. खाने से पहले और शौच के बाद साबुन से अच्छी तरह हाथ धोना चाहिए. फलों और सब्जियों को खाने से पहले पानी से अच्छी तरह धोना चाहिए. नाखून साफ एवं छोटे रखना चाहिए. इसके अलावा साफ पानी पीएं, खाना ढक कर रखें और नंगे पांव बाहर ना खेलें और जूते पहनकर रखें.
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