राजस्थान के डूंगरपुर जिले में आदिवासी समाज में मौत के बाद आत्मा ले जाने की अनूठी परंपरा है. हालांकि, यह परंपरा अंधविश्वास से जुड़ी है. पीढ़ियों से चली आ रही ये परंपरा आज भी कायम है. ऐसा ही नजारा मंगलवार को डूंगरपुर मेडिकल कॉलेज अस्पताल में देखने को मिला. जहां दो अलग-अलग परिवार अपने परिजनों की मौत के बाद आत्मा लेने पहुंचे. अस्पताल में पूजा-अर्चना कर दोनों की आत्मा को बुलावा दिया. आत्मा के आने का प्रतिकात्मक दिपक जलाकर ढोल-धमाके के साथ घर के लिए रवाना हो गए.
आदिवासी परंपरा का निर्वहन किया
प्रदेश के आदिवासी बहुल डूंगरपुर जिले में अनेक आदिवासी परम्पराओं का निर्वहन किया जाता है. उसी में से एक परम्परा है, मौत के बाद आत्मा ले जाने की परम्परा की. गलियाकोट तहसील के महुआवाडा निवासी मणिलाल ताबियाड ने बताया कि उसके 27 वर्षीय बेटे रामलाल का लीवर खराब हो गया था. करीब एक साल पहले उसे डूंगरपुर जिला अस्पताल में भर्ती करवाया था, जहां ईलाज के दौरान उसकी मौत हो गई थी.

ढोल नगाड़े बजाते हुए आत्मा को ले गए.
आत्मा की घर में करते हैं पूजा-अर्चना
आत्मा की शांति के लिए आदिवासी परंपरा के अनुसार, उसे घर ले जाकर पूजा-अर्चना करना जरूरी था. महुआवाडा से मृतक के पिता, भाई सहित परिवार के अन्य लोग आज जिला अस्पताल पहुंचे. उन्होंने पहले पूजा की थाल सजाई, जिसमें फूल-माला, कुमकुम, दीपक लेकर परिवार के लोग वार्ड तक गए, जहां रामलाल की मौत हुई थी. वार्ड में पूजा करने के बाद प्रतिकात्मक दीपक जलाकर उसकी आत्मा को जलते हुए दीपक के रूप में लेकर हॉस्पिटल से बाहर आ गए.
मान्यता:आत्मा की पूजा से घर में नहीं आती संकट
ऐसी मान्यता है कि आत्मा की पूजा से घर-परिवार में भी खुशहाली रहती है. किसी तरह का संकट नहीं आता है. जीवालाल ने बताया कि आदिवासी समाज में आत्मा ले जाने की परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है. इसमें व्यक्ति की जिस जगह पर मौत हुई है, वहां परिवार के लोग एक साथ जाते हैं, और फिर पूजा-अर्चना कर ढोल-धमाके के साथ आत्मा को लेकर आते हैं.
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