राजस्थान की एकमात्र मुस्लिम रियासत रही टोंक की ईद रियासत काल में बहुत खास होती थी. उस समय जब टोंक नवाब शाही लवाजमे के साथ मुबारक महल से निकलकर मुख्य बाजार होते हुए ईदगाह पंहुचते थे तो टोंक की सड़कों पर नवाब की सवारी को देखने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ती थी. आज भी टोंक में राजस्थान की सबसे बड़ी ईदगाह पर सामूहिक नमाज का नजारा अद्भुत होता है. एक ही सफ में खड़े हो गए महमूद व अयाज, न कोई बंदा रहा और ना कोई बंदा नवाज.
ईद पर सुबह-सुबह सुनाई देती तोपों की गूंज
यह मंजर सोमवार को एक बार फिर ईदुलजुहा की नमाज में नजर आएगा. जब राजस्थान की सबसे बड़ी टोंक की ऐतिहासिक ईदगाह पर हजारों नमाजी एक साथ खुदा की ईबादत में सर झुकायेंगे और अमन-चैन की दुआ के लिए हाथ उठाएंगे. 1817 से लेकर मार्च 1948 तक टोंक रियासत पर नवाबों ने शासन किया. उस समय टोंक की ईद बहुत खास होती थी. ईद पर सुबह-सुबह तोप के गोलों की गूंज घोषणा करती थी कि टोंक नवाब शाही लवाजमे के साथ ईदगाह पर नमाज के लिए निकलने वाले है.
उसके बाद उस समय टोंक में बड़ा कुआ से लेकर काफला बाजार, पांच बत्ती, घण्टाघर होते हुए टोंक नवाब की सवारी ईदगाह पंहुचती थी. ईदगाह पर नमाज के दौरान भी खास नजारा होता था. नमाज पूरी होने पर एक बार फिर से तोप से गोले दागे जाते थे. जो नमाज समाप्त होने का संदेश होते थे. इसके बाद टोंक नवाब अपने परिवार सहित किले या महल वापस लौटते थे.
1864 से टोंक में शुरू हुई ऊंट की कुर्बानी
बकरा ईद पर टोंक में ऊंट की कुर्बानी नवाबी शासन काल से ही होती रही, जो ऊंट को राज्य पशु का दर्जा दिए जाने पर बंद हुई. माना जाता है कि टोंक रियासत के चौथे नवाब इब्राहिम अली खां के समय 1864 से टोंक में ऊंट की कुर्बानी ईदुलजुहा पर शुरू हुई थी. उस समय की जाने वाली ऊंट की कुर्बानी भारत में खाड़ी देशों के बाद टोंक में ही होती थी. यह परम्परा लगभग 150 साल तक जारी रही.
टोंक में रियासत की स्थापना 1817 में अमीर खां के टोंक रियासत के नवाब बनने के साथ हुई, जिनका शासन 1834 तक रहा. उसके बाद इस रियासत के दूसरे नवाब वजीरुद्दोला खां रहें. जिनका शासन काल 1834 से 1864 तक रहा, तीसरे शासक के रूप में मोहम्मद अली खां ने 1864 से 1867 तक शासन किया.
वही टोंक रियासत के चौथे नवाब इब्राहिम अली खां का शासन काल 1867 से लेकर 1930 तक रहा जो सबसे लंबा शासन काल था. वह पांचवे नवाब के रूप में 1930 से लेकर 1947 तक सआदत अली खां नवाब रहे उसके बाद 1947 से लेकर देश आजाद होने बाद तक फारुख अली नवाब रहे.
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