Freedom Fighter Madanmohan Somtia Death: भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले मेवाड़ प्रजामंडल के योद्धा और राजसमंद जिले के अंतिम स्वतंत्रता सेनानी मदनमोहन सोमटिया का रविवार सुबह निधन हो गया. सुबह करीब सवा सात बजे 102 वर्ष की उम्र में उन्होंने अंतिम सांस ली. इस दौरान उनके बेटे और पूरा परिवार उनके साथ था. 1 बेटे और 5 बेटियों के पिता सोमटिया लंबे समय से बीमार चल रहे थे. पिछले दो हफ़्तों से वह श्री गोवर्धन राजकीय जिला चिकित्साल में भर्ती थे. उन्हें दिल की बीमारी थी और सांस लेने में तकलीफ हो रही थी. मदनमोहन सोमटिया 11 भाई बहनों में सबसे छोटे थे, उनके दो बड़े भाई नरेंद्रपाल चौधरी और राजेन्द्र सिंह चौधरी भी स्वतंत्रता सेनानी थे.
2013 ने राष्ट्रपति ने किया था सम्मानित
मदनमोहन सोमटिया का जन्म 14 सितम्बर 1922 को मध्यम परिवार के रामकृष्ण जाट व नानकी बाई के घर मे हुआ. उनको देश की आजादी में योगदान के साथ ही सामाजिक कार्यों के लिए कई बार सम्मानित किया गया था. पहली बार 02 अक्टूबर 1987 को ताम्रपत्र दिया गया, दूसरी बार 14 सितंबर 2000 को उनके जन्मदिन पर ताम्रपत्र से सम्मनित किया गया था. 14 मई 2009 को उपराष्ट्रपति भैरूसिंह शेखावत ने उनके निवास पर पहुंचकर उन्हें सम्मनित किया था. वहीं वर्ष 2013 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी द्वारा उन्हें सम्मनित किया गया. इसके अलावा राज्य व जिला स्तर पर अनेकों बार उन्हें सम्मनित किया गया था. पिछले वर्ष ही मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी उनके निवास स्थान पर पहुंचे और उनको सम्मानित किया.
13 साल की उम्र में स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया, जेल भी गए
सोमटिया के पुत्र योगेश कुमार चौधरी ने बताया कि बाउजी आजादी लड़ाई में कई बार जेल गए थे, वे बताते थे कि कैसे उन्होंने अपने बड़े भाइयों की प्रेरणा से स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया और देश को आजादी दिलाने में योगदान दिया. योगेश चौधरी ने बताया कि पिताजी बताते थे कि अप्रैल 1938 में मेवाड़ प्रजामंडल की स्थापना हुई थी, उस वक़्त उनकी उम्र करीब 13 - 14 वर्ष थी. लेकिन आजादी की ऐसी दीवानगी थी कि वे अपने बड़े भाइयों के साथ इस संग्राम के हिस्सा बन गए और फिर कई बार ब्रिटिश शासन द्वारा प्रताड़ित और गिरफ्तार भी किए गए. लेकिन कभी उनके इरादों में कमी नही आई.
1938 से 1942 तक वे कई बार पकड़े गए!
छात्र जीवन मे ही मेवाड़ प्रजामंडल से जुड़ना ओर लोगों को जागृत करने के लिए रैलियां - जुलूस निकालना, सभाओं में भाग लेना, स्वयं सेवक के रूप में कार्य करना और पत्र संदेश एक जगह से दूसरी जगह तक पहुंचाना उनकी दैनिक जीवन का हिस्सा बन गया था. उन्होंने बताया कि 1938 से 1942 तक वे कई बार पकड़े गए. लेकिन हर बार उन्हें बालक समझ कर छोड़ दिया गया.
पहली बार वे 1942 में दो बार भारत छोड़ो आंदोलन में 6 महिने तक जेल में रहे. मदनमोहन सोमटिया जी का अंतिम संस्कार नाथद्वारा स्थित शमशान में राजकीय सम्मान के साथ किया गया, इससे पहले उनके निवास स्थान पर जिला कलेक्टर, तहसीलदार, पुलिस उप अधीक्षक व अन्य अधिकारियों ने उन्हें पुष्पचक्र भेंट कर श्रद्धांजलि अर्पित की.
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