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Rajasthan: करीब 20 साल पुरानी है गुर्जर आरक्षण आंदोलन की लड़ाई, वसुंधरा राजे-गहलोत ने भी झेला था भारी विरोध

Gujrar Mahapanchayat: कल (8 जून) को जिस पीलूपुरा पर महापंचायत होनी है, यह वही जगह है जहां 2008 के आरक्षण आंदोलन के दौरान भारी हिंसा हुई थी.

Rajasthan: करीब 20 साल पुरानी है गुर्जर आरक्षण आंदोलन की लड़ाई, वसुंधरा राजे-गहलोत ने भी झेला था भारी विरोध

Gurjar Andolan: राजस्थान में गुर्जर आरक्षण आंदोलन की आहट एक बार फिर सुनाई दे रही है. इसकी तैयारी के लिए 8 जून को महापंचायत बुलाई गई है. गुर्जर समाज पीलूपुरा (भरतपुर) में महापंचायत आयोजित करेगा. इससे पहले प्रशासन अलर्ट मोड पर है और समाज के लोगों से बातचीत की कवायद शुरू हो गई है. हालांकि गुर्जर आरक्षण संघर्ष समिति पीछे हटती नजर नहीं आ रही है. समिति अध्यक्ष विजय बैंसला ने साफ कह दिया है कि बंद कमरे में बात नहीं होगी, सरकार से जो भी बात होगी वो समाज के सामने होगी. जिस पीलूपुरा पर महापंचायत होनी है, यह वही जगह है जहां 2008 के आरक्षण आंदोलन के दौरान भारी हिंसा हुई थी. अब एक बार फिर गुर्जर समाज उसी स्थान से अपनी आवाज फिर से बुलंद करने की तैयारी कर रहा है.

दरअसल, गुर्जर समुदाय लंबे समय से विशेष पिछड़ा वर्ग (SBC) के तहत 5% आरक्षण की मांग कर रहा है. 2006 से चले आ रहे इस आंदोलन ने 2008, 2010 और 2015 में उग्र रूप लिया था. रेल पटरियों, हाईवे जाम और टकराव के बाद सरकार और समाज के बीच समझौते हुए, लेकिन गुर्जर नेताओं का कहना है कि मांगें अब भी अधूरी हैं. वसुंधरा और गहलोत सरकार ने गुर्जरों की मांगों को स्वीकार करते हुए कई समझौते किए और 5% एमबीसी आरक्षण का प्रावधान भी किया, लेकिन गुर्जर समाज का मानना है कि इन समझौतों के अधिकांश बिंदु पूरी तरह से लागू नहीं हुए हैं. यही कारण है कि अब वर्तमान भाजपा सरकार के कार्यकाल में भी गुर्जर समाज अपनी पुरानी मांगों को लेकर एक बार फिर आंदोलन की राह पर है. 

आरोप- गहलोत सरकार ने भी वादा पूरा नहीं किया

गुर्जर नेताओं का मुख्य आरोप यह है कि पिछली गहलोत सरकार ने आरक्षण आंदोलन के दौरान दर्ज किए गए सभी मुकदमों को पूरी तरह से वापस नहीं लिया. पूर्ववर्ती सरकार ने गुर्जरों के साथ आरक्षण के मुद्दे पर कई बार समझौते किए, जिनमें से सबसे महत्वपूर्ण 2019 और 2020 में हुए समझौते थे. इन समझौतों में गुर्जर, रायका-रेबारी, गडिया लुहार, बंजारा और गाड़ोलिया जातियों को कुल 5% आरक्षण देने का प्रावधान किया. यह आरक्षण ओबीसी (OBC) को दिए जाने वाले आरक्षण के अतिरिक्त था, ताकि कुल आरक्षण की सीमा 50% से अधिक न हो जाए. यह तय किया गया था कि प्रक्रियाधीन भर्तियों में भी गुर्जरों को इस 5% आरक्षण का लाभ मिलेगा. 

समझौते के एक महत्वपूर्ण बिंदु में आरक्षण आंदोलन के दौरान गुर्जर समाज के लोगों पर दर्ज किए गए मुकदमों को वापस लेने का आश्वासन दिया गया था. आंदोलन में जान गंवाने वाले या घायल हुए लोगों के परिजनों को सरकारी नौकरी और आर्थिक सहायता देने की भी बात कही गई थी. कांग्रेस के चुनावी घोषणा पत्र में किए गए वादे के अनुसार, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़ा वर्ग, अति पिछड़ा वर्ग के बैकलॉग पदों को भरने का आश्वासन दिया गया था. देवनारायण बोर्ड और उससे संबंधित योजनाओं के क्रियान्वयन में सुधार और अनियमितताओं को दूर करने की बात भी समझौते में शामिल थी. हालांकि गहलोत सरकार ने इन समझौतों पर हस्ताक्षर किए थे, लेकिन गुर्जर समाज का आरोप है कि अधिकांश बिंदुओं पर पूरी तरह से अमल नहीं हुआ है.

देवनारायण योजना, रोस्टर प्रणाली समेत कई मुद्दों पर नाराजगी

5% एमबीसी आरक्षण को संविधान की 9वीं अनुसूची में शामिल कराने की मांग पूरी नहीं हो पाई है. यह केंद्र सरकार के दायरे में आता है. गुर्जर समाज का कहना है कि रोस्टर प्रणाली में खामियों के कारण उन्हें 5% एमबीसी आरक्षण का पूरा लाभ नहीं मिल पा रहा है और बैकलॉग के पदों को भी सही ढंग से भरा नहीं गया है. देवनारायण योजनाओं के क्रियान्वयन र लेकर भी गुर्जर समाज में असंतोष है.

क्या है गुर्जर समाज के आंदोलन का इतिहास 

आरक्षण आंदोलन की शुरुआत 2006 में हुई थी. इस दौरान कई बार उग्र हिंसा, धरना प्रदर्शन और सरकारों के साथ बातचीत हुई है. इस आंदोलन के अगुआ नेता कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला रहे. वसुंधरा राजे सरकार के कार्यकाल में 2006 में पहला बड़ा आंदोलन हुआ था. गुर्जर समुदाय को अनुसूचित जनजाति (ST) में शामिल करने की मांग को लेकर राजस्थान के हिंडौन जिले में गुर्जर सड़कों और रेल पटरियों पर उतरे. सरकार ने एक कमेटी का गठन किया, लेकिन इसका कोई ठोस सकारात्मक नतीजा नहीं निकला.

इसके बाद 2007 में इस आंदोलन ने उग्र रूप ले लिया. 21 मई 2007 को दौसा जिले के पाटोली में आंदोलन फिर से शुरू हुआ. इस दौरान प्रदेश में विभिन्न स्थानों पर यातायात रोका गया और उग्र प्रदर्शन हुए. पुलिस से झड़प में 28 से अधिक गुर्जरों की मौत हुई और एक पुलिसकर्मी की भी मृत्यु हुई. पूर्व न्यायाधीश जसराज चोपड़ा की अध्यक्षता में एक कमेटी बनी. इस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में गुर्जरों को एसटी आरक्षण के लायक नहीं माना, जिससे गुर्जर समाज में भारी आक्रोश पैदा हुआ. 2008 पीलूपुरा में गुर्जर एसटी आरक्षण की मांग पर अड़े रहे.

23 मई 2008 को भरतपुर के बयाना के पास पीलूपुरा रेलवे ट्रैक और आगरा रोड पर सिकंदरा पर बड़े पैमाने पर जाम लगाया गया. यह आंदोलन बहुत उग्र हुआ और 42 लोगों की जान चली गई, जिनमें अधिकांश गुर्जर प्रदर्शनकारी थे. हिंसा और आगजनी की घटनाएं हुईं. भारी दबाव के बाद, तत्कालीन वसुंधरा राजे सरकार ने गुर्जरों सहित अति पिछड़ा वर्ग (एमबीसी) की पांच जातियों को 5% विशेष पिछड़ा वर्ग (SBC) आरक्षण देने का विधेयक पारित किया. यह आरक्षण 50% की उच्चतम न्यायालय की सीमा के भीतर रहते हुए दिया गया था. इसके साथ ही आंदोलन के दौरान हुए मुकदमों की वापसी और मृतकों के परिजनों को मुआवजे का भी आश्वासन दिया गया. हालांकि, इस आरक्षण को बाद में अदालती चुनौती मिली और कुछ समय के लिए यह अटक गया. 2010 में 5% SBC आरक्षण को लागू कराने और लंबित मांगों को पूरा करने के लिए दोबारा आंदोलन शुरू हुआ.

2010 में सरकार ने दिया 1 फीसदी आरक्षण

दिसंबर 2010 में गुर्जरों ने फिर से रेलवे ट्रैक जाम किए और प्रदर्शन किए. मई 2010 में सरकार ने 1% आरक्षण दिया था, लेकिन दिसंबर के आंदोलन के बाद 5 जनवरी 2011 को समझौता हुआ कि सरकार कोर्ट के आदेशानुसार आरक्षण देगी. 2015 पीलूपुरा में फिर से महापड़ाव शुरू हुआ.

21 मई 2015 को बयाना के पीलूपुरा में एक बार फिर बड़ा महापड़ाव और रेल रोको आंदोलन हुआ. इस दौरान भी हिंसा की छिटपुट घटनाएं देखी गईं. वसुंधरा राजे सरकार ने फिर से गुर्जर सहित पांच जातियों को 5% आरक्षण देने का प्रावधान किया. यह 2008 के विधेयक का ही एक तरह से पुनर्जीवन था, लेकिन इसे भी बाद में अदालती चुनौतियों का सामना करना पड़ा.

अशोक गहलोत के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार बनने के बाद गुर्जर समाज ने अपनी मांगें जारी रखीं. कर्नल बैंसला के नेतृत्व में कई दौर की बातचीत हुई. फरवरी 2019 में मलारना डूंगर पर बड़ा आंदोलन हुआ. गहलोत सरकार ने गुर्जरों को एमबीसी (Most Backward Classes) श्रेणी में 5% आरक्षण देने का विधेयक पारित किया. यह आरक्षण ओबीसी को दिए जाने वाले आरक्षण के अतिरिक्त था और कुल आरक्षण 50% की सीमा से ऊपर चला गया था, जिसे बाद में सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई. नवंबर-2020 में कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला और उनके बेटे विजय बैंसला के नेतृत्व में गुर्जर समाज ने फिर से रेल पटरियां जाम कीं और सड़कों पर प्रदर्शन किया. कई दिनों तक राज्य के विभिन्न हिस्सों में यातायात बाधित रहा. एक बार फिर आश्वासन दिया गया, लेकिन अभी तक समझौतों पर अमल नहीं होने के कारण समाज में असंतोष जारी है. 

अब विजय बैंसला ने संभाली कमान

कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला के पुत्र विजय बैंसला अब गुर्जर आरक्षण संघर्ष समिति के अध्यक्ष हैं. उन्होंने वर्तमान भाजपा सरकार पर आरोप लगाया है कि वह भी पिछली सरकारों के समझौतों पर अमल नहीं कर रही है. उन्होंने मुकदमों की वापसी न होने और केंद्र से संबंधित मांगों पर राज्य सरकार की निष्क्रियता पर नाराजगी जताई है. विजय बैंसला ने 2023 में बीजेपी के टिकट पर राजस्थान विधानसभा चुनाव लड़ा था. टोंक जिले की देवली-उनियारा विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा, लेकिन चुनाव हार गए. हालांकि पिछले साल हुए उपचुनाव में देवली-उनियारा सीट पर विजय बैंसला को टिकट नहीं दिया गया, जिससे उनके समर्थकों में नाराजगी भी देखी गई.

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