Rajasthan News: पश्चिमी राजस्थान के बीकानेर से लगभग 50 किलोमीटर दूर स्थित श्री कोलायत तीर्थस्थल एक बार फिर आस्था और सामाजिक सौहार्द के रंग में सराबोर है. यह प्राचीन स्थल सदियों से दो धर्मों के संगम स्थल के रूप में भाईचारे का संदेश देता आया है. हर साल की तरह, इस बार भी 3 से 5 नवंबर तक तीन दिवसीय कोलायत महोत्सव (मेला) ( kolayat Festival) का आयोजन किया जा रहा है. इस दौरान कपिल सरोवर के तट पर एक अनूठा दृश्य देखने को मिलता है, जहां एक ही समय में हिंदू और सिख धर्म में आस्था रखने वाले श्रद्धालु एक साथ आस्था की डुबकी लगाते हैं.जो दीपदान के साथ साथ गुरुनानक देव जी की जयंती को भी श्रद्धालुओं आस्था के साथ मना रहे है.

जहां हुई थी कपिल मुनी और गुरु नानक देव की मुलाकात
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कोलायत का महत्व
वेदों और उपनिषदों में 'कपिलायतन' नाम से यह भूमि आदि काल से ऋषि-मुनियों की तपोस्थली के रुप में जानी जाती रही है.यह भूमि विष्णु के पंचम अवतार महर्षि कपिल मुनि( kapil muni )की कर्मस्थली है, जिन्होंने यहीं अपनी मां देहुति को सांख्य दर्शन का ज्ञान दिया था. इसीलिए कोलायत को 'पश्चिमी राजस्थान का हरिद्वार' भी कहा जाता है, जहां श्रद्धालु कपिल सरोवर(Kapil Sarovar) में स्नान कर 84 लाख योनियों से मुक्ति की कामना करते हैं. महर्षि कपिल के बाद, ऋषि दत्तात्रेय और च्यवन की इस तपोभूमि पर सिख धर्म के प्रथम गुरु, गुरु नानक देव(Guru Nanak Dev) ने भी कपिल सरोवर के पास भक्ति की अलख जगाई और साधना की थी. यही कारण है कि यह स्थान सिख धर्म में भी एक महत्वपूर्ण तीर्थ के रूप में जाना जाता है.
गुरु नानकदेव ने महर्षि कपिल से तप के पल की थी मुलाकात

महाआरती करते हुए श्रद्धालु
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महाआरती और दीपदान का आलौकिक दृश्य
महोत्सव का सबसे विहंगम और भक्तिमय दृश्य पूर्णिमा की संध्या पर देखने को मिलता है. इस समय कपिल सरोवर में भव्य महाआरती का आयोजन किया जाता है. सरोवर के सभी 52 घाटों पर हजारों श्रद्धालु एकत्र होते हैं और शास्त्र के अनुसार दीपदान कर अपनी मनोकामनाए मांगते हैं.
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