अजमेर दरगाह में गुस्ल की रस्म पर सहमति बनने के साथ ही विवाद का पटाक्षेप हो गया. ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती के 814वें उर्स के मौके पर होने वाली गुस्ल की रस्म को लेकर विवाद चल रहा था. पिछले कई दिनों से जारी यह मामला शुक्रवार (19 दिसंबर) देर रात समाप्त हो गया. जिला प्रशासन और पुलिस विभाग के अधिकारियों की मध्यस्थता में लंबी बैठक हुई. इसके बाद सभी संबंधित पक्षों के बीच सहमति बन गई. इस दौरान तय हुआ कि इस बार गुस्ल की रस्म दरगाह दीवान सैयद जैनुल आबेदीन अली खान नहीं, बल्कि उनके बेटे नसीरुद्दीन चिश्ती अदा करेंगे. इस निर्णय के साथ ही उर्स से पहले पैदा हुई असमंजस और तनाव की स्थिति खत्म हो गई, जिससे दरगाह परिसर में राहत का माहौल बना है.
बैठक में सभी पक्ष रहे मौजूद
इस अहम बैठक में सभी पक्षों ने आपसी सहमति से निर्णय को स्वीकार किया और इसके समर्थन में सहमति पत्र पर हस्ताक्षर भी किए. बैठक के दौरान रस्म और उर्स की गरिमा को ध्यान में रखते हुए विस्तृत चर्चा की गई. यह स्पष्ट किया गया कि परंपरागत व्यवस्था को बनाए रखते हुए ही गुस्ल की रस्म संपन्न कराई जाएगी, ताकि किसी भी पक्ष की भावनाएं आहत न हों.
स्वास्थ्य कारणों से दीवान ने पुत्र को सौंपा जिम्मा
बताया गया कि दरगाह दीवान का स्वास्थ्य ठीक नहीं होने के कारण गुस्ल की रस्म अदा करने में असमर्थ थे. इसी वजह से उन्होंने अपने पुत्र नसीरुद्दीन चिश्ती को यह जिम्मेदारी सौंपने की इच्छा जताई थी. इस निर्णय को लेकर कुछ खादिमों द्वारा आपत्ति दर्ज कराई गई थी, जिससे माहौल तनावपूर्ण हो गया था.
अब प्रशासनिक मध्यस्थता के बाद बनी सहमति से दरगाह परिसर में सौहार्दपूर्ण वातावरण बन गया है. अधिकारियों ने सभी पक्षों से उर्स के दौरान शांति, परंपरा और आपसी भाईचारे को बनाए रखने की अपील की है.
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