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This Article is From Jan 15, 2024

 विवादित ढांचे की ईट को यादगार के तौर पर लेकर आ गए थे जोधपुर, रस्सों के सहारे चढ़कर तोड़ा था गुंबद

जोधपुर की सन 1992 में जोधपुर से भी फैजाबाद में कारसेवा करने के लिए सैकड़ो की संख्या में सत्याग्रही जोधपुर से फैजाबाद पहुंचे थे और वहां पर उन्होंने अपने-अपने तरीके से आंदोलन में सहयोग किया.

 विवादित ढांचे की ईट को यादगार के तौर पर लेकर आ गए थे जोधपुर, रस्सों के सहारे चढ़कर तोड़ा था गुंबद
ढांचे को तोड़ने के दौरान वह अपने साथ वहां की ईंट और छोटा सा पिलर

Ram Mandir: राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा की तारीख नजदीक आ रही है ऐसे में राम मंदिर से जुड़े इतिहास की परत धीरे-धीरे सबके सामने खुल रही है. ऐसी ही एक कहानी है जोधपुर की सन 1992 में जोधपुर से भी फैजाबाद में कारसेवा करने के लिए सैकड़ो की संख्या में सत्याग्रही जोधपुर से फैजाबाद पहुंचे थे और वहां पर उन्होंने अपने-अपने तरीके से आंदोलन में सहयोग किया.

जिसमें से एक राम स्वरूप सांखला उनकी धर्मपत्नी और उनके बेटे महा रतन सांखला भी फैजाबाद पहुंचे थे. जहां उन्होंने विवादित ढांचा गिराने के लिए अपना योगदान दिया था और वहां से विवादित ढांचे में से निकली ईट और एक छोटा सा गुंबद का पिलर यादगार के रूप में जोधपुर लेकर आ गए. जिसे आज भी उसे सहेज कर रखा हुआ है.

रस्सों के सहारे चढ़कर पूरा गुंबद तोड़ा

राम रतन सांखला के बेटे महारत्न सांखला ने बताया कि 1992 को वे अपने माता पिता के साथ 4 दिसंबर को अयोध्या पहुंचे थे और 6 दिसंबर को उन्होंने विवादित ढांचे पर रस्सों के सहारे चढ़कर पूरा गुंबद तोड़ा था और उस विवादित ढांचे को तोड़ने के लिए 24 घंटे लगे थे.

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ढांचे को तोड़ने के दौरान वह अपने साथ वहां की ईंट और छोटा सा पिलर लेकर आए. वहीं उस समय उनके पिताजी और उनके साथ अन्य 34 लोगों को फैजाबाद में पाबंद करके छोड़ा गया, जिनके दस्तावेज आज भी उनके पास मौजूद है.

ढांचे के अंदर हिंदू देवी देवताओं की मूर्ति देखी

महारत्न सांखला ने बताया कि उनके पिताजी ने बताया था कि जब हाईकोर्ट के फैसले के बाद विवादित स्थल का ताला खोला गया. तब भी उनके पिताजी ने वहां जाकर भगवान रामलला के दर्शन किए थे और वह भी जब वहां गए तो विवादित ढांचे के अंदर हिंदू देवी देवताओं से जुड़ी हुई कई आकृतियां वहां उन्होंने देखी थी और मूर्तियां देखी थी.

सिर्फ बाहर एक बोर्ड लगा हुआ था, जिस पर बाबरी मस्जिद लिखा हुआ था. लेकिन 31 साल बाद आज उनका सपना पूरा हो रहा है आज अगर उनके माता-पिता जिंदा होते तो उन्हें बहुत ज्यादा खुशी होती. वहीं उनके द्वारा वहां से लाई गई ईट व संगमरमर के पिलर के टुकड़े को वह 22 जनवरी को लोगों को दर्शन कराएंगे.

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