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This Article is From Oct 17, 2024

हनुमान बेनीवाल के लिए खींवसर में इस बार राह आसान नहीं, 47 साल पुरानी विरासत बचाने की चुनौती

Rajasthan By-Election 2024: सियासत के जानकार मानते हैं कि अपने पिता की तरह हनुमान बेनीवाल में भी राजनीतिक तौर पर प्रासंगिक बने रहने के लिए 'किसी के भी साथ चले जाने' का हुनर है.

हनुमान बेनीवाल के लिए खींवसर में इस बार राह आसान नहीं, 47 साल पुरानी विरासत बचाने की चुनौती
खींवसर में इस बार हनुमान बेनीवाल के लिए राह आसान नहीं है

Khinwsar Assembly constituency: हनुमान बेनीवाल, राजस्थान की सियासत का ऐसा नाम जो हमेशा चर्चा में रहता है. उनके बयान मीडिया की हेडलाइन बनते हैं, और ठेठ देसी अंदाज उन्हें प्रदेश की राजनीति में अलग पहचान दिलाता है. बेनीवाल प्रदेश के उन राजनेताओं में शामिल हैं जिन्होंने कांग्रेस और भाजपा की बायनरी वाली राजस्थान की सियासत में एक अलग राह अख्तियार की है.  

राजस्थान में 13 नवम्बर को 7 सीटों पर विधानसभा उपचुनाव हैं और विधायकी छोड़ सांसद बने हनुमान बेनीवाल के सामने खींवसर सीट बचाने की चुनौती होगी, जिसमें इस बार उन्हें कड़ी टक्कर मिल सकती है. 

47 साल पुरानी विरासत 

हनुमान बेनीवाल राजनीतिक घराने से आते हैं और उनकी यह विरासत 47 साल पुरानी है. बेनीवाल के पिता रामदेव बेनीवाल दो बार विधायक रहे हैं. 1977 में रामदेव बेनीवाल ने मुंडावा सीट से कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा चुनाव जीता और बाद में 1985 में वो लोकदल से विधायक रहे. 2008 में परिसीमन के बाद इस सीट को खींवसर विधानसभा सीट बना दिया गया और बेनीवाल भारतीय जनता पार्टी के चुनाव चिन्ह पर जीत कर पहले बार विधानसभा पहुंचे थे. 

प्रासंगिक बने रहने का हुनर 

अपने पिता की तरह हनुमान बेनीवाल में भी प्रासंगिक बने रहने के लिए 'किसी के भी साथ चले जाने' का हुनर है. 2008 में पहली बार विधायक बने बेनीवाल की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से सियासी लड़ाई चलती रही, जिसके बाद उन्हें 2013 में भाजपा से निष्काषित कर दिया गया था. उसके बाद उन्होंने खींवसर से निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की थी. 

'ना काहू से दोस्ती, न काहू से बैर'

राजस्थान में 2018 का विधानसभा चुनाव उन्होंने अपनी अलग पार्टी- राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी- बना कर लड़ा और शानदार परफॉरमेंस के साथ 3 विधायक जीत कर विधानसभा में पहुंचे. 2019 के लोकसभा चुनाव में बेनीवाल ने एक बार फिर भाजपा से गठबंधन कर लिया और नागौर से सांसद बन गए, लेकिन अगले ही साल 2020 में किसान आंदोलन को समर्थन देते हुए NDA से अलग हो गए. 

2023 के विधानसभा चुनाव में बेनीवाल की पार्टी ने फिर से विधानसभा चुनाव में हिस्सा लिया, लेकिन इस बार स्थिति इतनी बेहतर नहीं थी. हनुमान बेनीवाल खुद खींवसर से बमुश्किल 2000 वोटों से जीत सके. हालांकि, 2024 के लोकसभा चुनाव उन्होंने INDIA गठबंधन के बैनर तले लड़ा और जीता भी. लेकिन सियासत के जानकार मानते हैं कि बेनीवाल की विधानसभा चुनाव में कड़ी टक्कर वाली जीत उपचुनाव में कहीं उन पर भारी न पड़ जाये.

किसे टिकट देंगे, यही सबसे बड़ा सवाल 

2018 में जब हनुमान बेनीवाल ने विधायकी छोड़ी थी तो अपने भाई नारायण बेनीवाल को खींवसर से चुनाव लड़वाया था. ऐसे में इस बार वो किसे मैदान में उतारते हैं यह देखने वाली बात है. जानकारों का कहना है कि बेनीवाल की विधानसभा चुनाव में करीबी जीत से शायद वो परिवार से बाहर किसी को टिकट देने पर विचार कर सकते हैं, क्योंकि खींवसर की 47 साल की विरासत को बचाने की वो किसी भी हद तक कोशिश करेंगे. 

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