Rajasthan Assembly Elections: राजस्थान में चुनावी शोर अब जोर पकड़ने लगा है. प्रदेश में इसी साल के अंत तक चुनाव होना है. जिसको लेकर माहौल बनना शुरू हो चुका है. देश की आजादी के बाद से राजस्थान में लंबे समय तक कांग्रेस का राज रहा. कांग्रेस को चुनौती भाजपा ने दी. फिर बीते दो दशक से ज्यादा समय से हर पांच साल के बाद राज्य में सत्ता बदल रही है. राजस्थान के लोग एक बार कांग्रेस तो एक बार भाजपा को चुनते हैं. राजनीतिक दलों और नेताओं की सबसे बड़ी परीक्षा जनता का बार-बार विश्वास जीतना की होता है. वर्तमान दौर में इस परीक्षा में खब्बू राजनेता भी मात खा जाते हैं. लेकिन राजस्थान में एक नेता ऐसे भी हुए, जिन्होंने कभी भी हार नहीं झेली. राजस्थान के सियासी रण के पहले आज हम आपको बताने जा रहे हैं प्रदेश के उस इकलौते नेता की कहानी, जिन्होंने 10 लगातार विधानसभा चुनाव जीते. यह कहानी है राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी (Haridev Joshi) की.
हरिदेव जोशी का एक हाथ नहीं था, लेकिन उसकी सियासत पर पकड़ इतनी मजबूत थी इंदिरा गांधी की नापसंदगी के बाद भी उन्होंने राजस्थान के सियासी रण में बड़े-बड़े धुरंधरों को पछाड़ते हुए अपने आप को स्थापित किया.
10 साल की उम्र में हाथ टूटा, फिर एक हाथ से कमाया बड़ा नाम
राजस्थान के आदिवासी बहुल जिला बांसवाड़ा में 17 दिसंबर 1921 को जन्मे हरिदेव जोशी ने प्रदेश की राजनीति में बड़ा नाम कमाया. बांसवाड़ा के खांदू गांव में जन्मे हरिदेव जोशी का बांया हाथ मात्र 10 साल की उम्र में टूट गया था. तब ये आदिवासी इलाका डूंगरपुर रियासत के अधीन आता था.
गांव के आस-पास डॉक्टर नहीं था तो शुरू में घरवालों ने देसी इलाज करवाया. लेकिन हरिदेव के टूटे हाथ का दर्द आराम नहीं हुआ. बाद में डॉक्टर को दिखाया तो पचा चला कि जोशी के हाथ में जहर फैल गया है. फिर डॉक्टर ने कहने पर हरिदेव जोशी का बांया हाथ काटना पड़ा. इसके बाद एक हाथ से हरिदेव ने राजनीति में कई बड़े कीर्तिमान लिखे.
1965 में पहली बार मंत्री बने
1950 में हरिदेव जोशी राजस्थान के प्रदेश महासचिव बनाए गए. आजादी के बाद सूबे में पहले चुनाव में हरिदेव जोशी डूंगरपुर सीट से लड़े और जीतकर विधायक बन गए. इसके बाद 1957 और 1962 में वे घाटोल सीट से चुनाव लड़े और जीत हासिल की. साल 1965 में उन्हें मोहनलाल सुखाड़िया की सरकार में मंत्री बनाया गया. साल 1971 की बरकतुल्लाह खान की सरकार में जोशी सबसे सीनियर मंत्री थे.
1977 में कांग्रेस विरोधी लहर में जीते
इसके बाद 1967 से लेकर 1993 तक वे बांसवाड़ा सीट से लगातार सात बार विधायक चुने गए. 1977 की कांग्रेस विरोधी लहर में भी उन्होंने जीत हासिल की. तब बांसवाड़ा के कई कार्यकर्ताओं ने हरिदेव जोशी को चुनाव नहीं लडने की सलाह दी थी. लेकिन जोशी ने कहा कि विपरीत परिस्थितियों में चुनाव नहीं लडने से कार्यकर्ता निराश हो जाएगे. मुझे जनता पर भरोसा है. चुनाव में हरिदेव जोशी गांव-गांव पैदल घूमकर जन संपर्क करते रहे. अंत में वे विजयी रहे.
वैचारिक भिन्नता के बाद भी पेश की मित्रता की मिसाल
वर्तमान राजनीति में पक्ष और विपक्ष के नेताओं में आपसी मित्रता देखने को नहीं मिलती है लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी और पूर्व मुख्यमंत्री भैरोसिंह शेखावत की मित्रता एक मिसाल बन चुकी थी. हमेशा पक्ष-विपक्ष में रहे लेकिन उनकी मित्रता अंतिम समय तक बनी रही. जब पूर्व मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी की मौत हुई तो सबसे पहले पहुंचने वाले नेताओं में भैरोसिंह शेखावत शामिल थे जो उस समय मुख्यमंत्री थे.