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राजस्थान के इस गांव में ERCP के लाभार्थियों के सामने पेयजल संकट, पानी के लिए कर रहे 2 किलोमीटर का सफर

डीडवाना जिले में इंदिरा गांधी नहर परियोजना पर जापान के सहयोग से सरकार ने 3 हजार करोड़ रुपए खर्च कर गांव-गांव तक पानी पहुंचाया है. इसके बावजूद ग्रामीण क्षेत्रों के लोग पेयजल के लिए तरसने को मजबूर हैं.

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राजस्थान के इस गांव में ERCP के लाभार्थियों के सामने पेयजल संकट, पानी के लिए कर रहे 2 किलोमीटर का सफर
डीडवाना में पेयजल संकट

Rajasthan News: राजस्थान की सरकार प्रदेश में पेयजल संकट को दूर करने के लिए बड़ी योजनाओं का दावा कर रहे हैं. लेकिन धरातल पर चीजें इसके उलट है. जहां एक ओर ERCP के करोड़ों के प्रोजेक्ट के बावजूद पेजजल संकट खत्म नहीं हो रहा है. वहीं जलदाय विभाग के काम को लेकर उदासीनता देखने को मिल रही है. गर्मी का मौसम शुरू होने वाला है और राजस्थान के कई इलाकों में पेयजल की समस्या दिखने लगी है. ऐसे में राजस्थान के डीडवाना में पेयजल संकट देखा जा रहा है. जहां पीने के पानी के लिए लोगों को 2 किलोमीटर तक का सफर तय करना पड़ रहा है. 

डीडवाना जिले में इंदिरा गांधी नहर परियोजना पर जापान के सहयोग से सरकार ने 3 हजार करोड़ रुपए खर्च कर गांव-गांव तक पानी पहुंचाया है. इसके बावजूद ग्रामीण क्षेत्रों के लोग पेयजल के लिए तरसने को मजबूर हैं. डीडवाना के ग्राम आस की ढाणी में भी लोग लम्बे समय से पेयजल समस्या से जूझ रहे हैं. ग्रामीण पिछले कई सालों से ज्यादा समय से जलदाय विभाग की उदासीनता और लापरवाही का दंश झेल रहे है. बार-बार मांग किए जाने ओर ज्ञापन दिए जाने के बावजूद भी अब तक ग्रामीणों की पेयजल समस्या का स्थाई रूप से समाधान नहीं हो सका है. 

महिलाएं सिर पर मटके रखकर कर रही 2 किलोमीटर का सफर

आस की ढाणी के मुख्य हौद पर पानी भरने के लिए गांव की महिलाएं एकत्रित हुई हैं. यहां से पानी भरने के बाद यह महिलाएं सिर पर मटके रखकर दो किलोमीटर का सफर तय करती है. ऐसे हालात एक दिन के नहीं, बल्कि रोज ही नजर आते हैं. दरअसल, यह गांव डीडवाना जिला मुख्यालय से सटा हुआ है. जिला मुख्यालय से मात्र 5 किलोमीटर दूर स्थित इस गांव में लंबे समय से पेयजल संकट बना हुआ है. गांव में जलदाय विभाग का जीएलआर बना हुआ है, और नहर परियोजना की पाइप लाइन भी बिछाई गई है. इस पाइप लाइन के बिछने से ग्रामीणों को पेयजल संकट से निजात की उम्मीद बंधी थी, लेकिन कुछ ही समय बाद यह उम्मीद भी टूट गई. हालात यह है कि पेयजल संकट से जहां ग्रामीणजन के सामने अपनी प्यास बुझाने का संकट उठ खड़ा हुआ है तो वहीं मवेशी भी प्यासे भटकने को मजबूर हैं. स्थिति यह है कि ग्रामीणों को अपनी प्यास बुझाने के लिए टैंकरों से पानी मंगवाना पड़ रहा है, लेकिन ग्रामीणों के लिए टैंकरों से पानी मंगवाना भी भारी पड़ता है. प्रत्येक टैंकर के लिए ग्रामीणों को 500 से 700 रुपये तक खर्च करना पड़ता है, जिससे टैंकर वालों की चांदी हो रही है तो वहीं लोगो लिए पानी अनाज से भी ज्यादा महंगा पड़ रहा है. 

ग्रामीणों का कहना है कि पेयजल समस्या के समाधान के लिए ग्रामीणजन विधायक, जिला कलेक्टर, उपखंड अधिकारी तक से गुहार लगा चुके हैं और कई बार ज्ञापन भी दे चुके हैं. लेकिन कोई समाधान नहीं हुआ. इस संबंध में अधिकारियों से जब पेयजल संकट के बारे में पूछा गया तो वे समस्या से बचते नजर आए.

एक ओर सरकार पेयजल समस्या के समाधान के लिए करोड़ों रुपए खर्च कर रही है और नई नई योजनाएं बना रही है, मगर पेयजल की समस्या दूर करने में विभागीय अधिकारी और कर्मचारियों की उदासीनता पेयजल संकट को दूर करने की है बजाय बढ़ा ही रही है. ऐसे में सरकार को चाहिए कि वो इस तरह की समस्याओं के प्रति गंभीर हो और अधिकारियों को समस्याओं के समाधान के सख्त निर्देश दे, ताकि हर गांव-ढाणी में रहने वाले लोगों की प्यास बुझ सके.

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